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इस साल की दूसरी तिमाही में देश में सोने की डिमांड 43 फीसदी बढ़कर 170.7 टन रही है. (reuters)
Gold Demand in India: भारत में सोने का क्रेज बना हुआ है. कई फैक्टर के चलते जहां दुनियाभर में सोने की डिमांड घटी है, भारत में इसकी मांग बढ़ गई है. अप्रैल से जून यानी 3 महीनों की बात करें तो इस साल की दूसरी तिमाही में देश में सोने की डिमांड 43 फीसदी बढ़कर 170.7 टन रही है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी है. हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महंगाई, डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी और मॉनेटरी पॉलिसी संबंधी कदमों समेत कई फैक्टर होंगे जो आगे जाकर उपभोक्ताओं के सेंटीमेंट को प्रभावित कर सकते हैं.
वैल्यू के टर्म में 79,270 करोड़ की डिमांड
WGC की रिपोर्ट में बताया गया कि अप्रैल से जून के दौरान भारत में सोने की मांग 170.7 टन रही जो 2021 की समान अवधि की मांग 119.6 टन से 43 फीसदी अधिक है. WGC की रिपोर्ट में कहा गया कि वैल्यू के टर्म में भारत में सोने की मांग जून तिमाही में 54 फीसदी बढ़कर 79,270 करोड़ रुपये हो गई, जो 2021 की समान तिमाही में 51,540 करोड़ रुपये थी.
इन वजहों से बढ़ी है मांग
WGC के क्षेत्रीय सीईओ (भारत) सोमसुंदरम पी आर ने न्यूज एजेंसी को बताया कि अक्षय तृतीया के साथ ही वेडिंग सीजन शुरू होने से ज्वैलरी की मांग 49 फीसदी बढ़कर 140.3 टन रही है. उन्होंने बताया कि 2022 के लिए WGC ने डिमांड आउटलुक 800-850 टन का रखा है. हालांकि आने वाले समय में वक्त में महंगाई, सोने की कीमत, रुपया-डॉलर दरें और मॉनेटरी पॉलिसी समेत अन्य फैक्टर कंज्यूमर्स के सेंटीमेंट को प्रभावित करेंगे.
रीसाइक्लिंग 18 फीसदी बढ़ी
उन्होंने बताया कि 2021 में सोने की कुल मांग 797 टन थी. जून तिमाही में, भारत में सोने का रीसाइक्लिंग 18 फीसदी बढ़कर 23.3 टन रहा जो पिछले वर्ष समान अवधि में 19.7 टन था. इस तिमाही में सोने का आयात भी 34 फीसदी बढ़कर 170 टन हो गया जो 2021 की समान अवधि में 131.6 टन था. रिपोर्ट के अनुसार सोने की ग्लोबल डिमांड सालाना आधार पर 8 फीसदी घटकर 948.4 हो गई है. 2021 की जून तिमाही में यह 1,031.8 टन थी.
रिस्क और मौके दोनों
WGC की सीनियर एनालिस्ट ऐमा लुईस स्ट्रीट ने कहा कि 2022 की दूसरी छमाही में सोने को लेकर रिस्क और अवसर दोनों ही हैं. सुरक्षित निवेश के लिहाज से सोने की मांग बनी रहने का अनुमान है. लेकिन और मौद्रिक सख्ती तथा डॉलर के और मजबूत होने की चुनौतियां भी हैं.