/financial-express-hindi/media/post_banners/6G14W0oXfDx16FcNfEtX.jpg)
भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पहली बार 81 के लेवल से भी नीचे चला गया.
Indian rupee on record low: भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पहली बार 81 के लेवल से भी नीचे चला गया. रुपया आज 81.13 प्रति डॉलर के भाव पर ट्रेड कर रहा है. यह घरेलू करंसी के लिए अबतक का सबसे कमजोर स्तर है. जबकि अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में उछाल के कारण 10 साल का बॉन्ड यील्ड 6 बेसिस प्वॉइंट उछलकर 2 महीने के उच्च स्तर 3.719 फीसदी पर पहुंच गया है. बता देकं कि यूएस फेड ने सिंतबर महीने की पॉलिसी में ब्याज दरों में 75 बेसिस प्वॉइंट का इजाफा किया है और आगे भी सख्ती के संदेश दिए हैं. इससे डॉलर को सपोर्ट मिलेगा.
इस साल 8.5 फीसदी कमजोरी
भारतीय रुपया आज 81.03 प्रति डॉलर पर खुला और 81.13 प्रति डॉलर के आलटाइम लो को छू लिया. इसके पहले गुरूवार को रुपया 80.87 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. यानी इसमें आज करीब 0.35 फीसदी कमजोरी आई है. यह पिछले 8 सेशन में 7वां सेशन है, जब रुपये में गिरावट आई है. इस साल अब तक रुपये में करीब 8.48 फीसदी की गिरावट आई है.
Stock Tips: सस्ता शेयर कराएगा मोटी कमाई, इस PSU कंपनी में लगाएं पैसे, मिल सकत है 70% रिटर्न
रुपये में जारी रहेगी गिरावट
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स के ट्रेजरी हेड अनिल भंसाली का कहना है कि फेडरल रिजर्व के हॉकिश यानी आक्रामक रुख को देखते हुए रुपये में अभी और गिरावट आने की आशंका है. उनका मानना है कि रिजर्व बैंक रुपये को संभालने के लिए बाजार में दखल तो जरूर देगा, लेकिन मौजूदा हालात में रुपये में गिरावट आएगी. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार का मानना है कि मौजूदा हालात में आरबीआई का दखल भी अस्थायी सपोर्ट ही साबित होगा और उससे भारतीय करेंसी में गिरावट रुख पूरी तरह बदल नहीं जाएगा.
82 प्रति डॉलर का भी टूट सकता है लेवल
IIFL के वाइस प्रेसिडेंट रिसर्च अनुज गुप्ता के मुताबिक यूएस फेड के रेट हाइक के एलान के बाद डॉलर इंडेक्स को सपोर्ट मिला है. रुपये के साथ अन्य करंसी में भी गिरावट आई है. चाहे वह एशियाई करंसी हो, यूरो हो या ब्रिटिश पौंड. उनका कहना है कि रुपये में अभी और गिरावट आने के आसार हैं और यह जल्द ही 82 प्रति डॉलर का स्तर छू सकता है.
स्वस्तिक इनवेस्टमेंट के रिसर्च हेड संतोष मीणा के मुताबिक मौजूदा हालात में आरबीआई के लिए बाजार में ज्यादा दखल देना भी मुश्किल होगा, क्योंकि बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की स्थिति भी डेफिसिट मोड में आ चुकी है. इन हालात में रिजर्व बैंक ऐसा कोई भी कदम उठाने से परहेज करेगा, जिससे आर्थिक रिकवरी को नुकसान होने की आशंका हो.