/financial-express-hindi/media/post_banners/iAo0jwT8yE0dBqyZlmpr.jpg)
भारत सहित दुनियाभर की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए महंगाई एक चुनौती बन गई है. (File)
Monsoon can give relief from inflation: भारत सहित दुनियाभर की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए महंगाई एक चुनौती बन गई है. भारत में महंगाई दर जहां कई महीनों के हाई पर है, यूएस में इसने 4 दशक का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. महंगाई के चलते कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था में सुस्ती का डर है. स्लोडाउन के डर से ग्लोबल लेवल पर मैन्युफैक्चरिंग एक्टिविटी या इंडस्ट्रिल एक्टिविटी पर भी असर पड़ रहा है, जिससे डिमांड भी कमजोर पड़ रही है. फिलहाल इन सबके बीच मॉनसून ने एक उम्मीद जताई है. इस मॉनसून सीजन में देशभर में अच्छी बारिश की उम्मीद है, जिससे एग्री कमोडिटी की कीमतों में बड़ी राहत मिल सकती है. इस मसले पर हमने केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया से बात चीत की है.
अब तक बेहतर है मॉनसून की प्रोग्रेस
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि पहले स्पेल की बात करें तो देशभर में मॉनूसन अनुमान से करीब 20 फीसदी पीछे रह गया था, लेकिन सेकंड स्पेल बेहतर है. ऐसे में आरबीआई का यह बाया बेहतर महत्वपूर्ण हो जाता है कि मॉनूसन महंगाई से कुछ रात दिलाा सकता है. महंगाई को लेकर जिस तरह से ग्लोबल कंसर्न बना हुआ है, अब निगाहें मॉलूसन पर टिक गई हैं. वैसे भी दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत में अभी भी महंगाई कुछ कंट्रोल में है. वहीं अगर इस साल खेती बेहतर रहती है और रूरल इनकम बढ़ती है तो महंगाई के जाल से कुछ हद तक निकलने में मदद मिलेगी.
कैसे मिलेगी राहत
केडिया का कहना है कि मॉनूसन का सीधा लिंक भारत की अर्थव्यवस्था से है. भारत का बाजार एग्री बेस्ड है. पूरे सीजन में अनुमान के मुताबिक बारिश होती है तो इससे एग्री आउटपुट बढ़ेगा. प्रोडक्शन बंपर रहता है तो इससे एग्री कमोडिटी की कीमतों में राहत मिलेगी. उनका कहना है कि वैसे भी पिछले कुछ दिनों से एग्री कमोडिटी की कीमतों में इसी वजह से नरमी आ रही है क्यों कि पैदावार ज्यादा रहने की उम्मीद है. दूसरी ओर एग्री एक्टिविटी बढ़ने से जहां एग्रीकल्चर से जुड़े सेक्टर को डिमांड बेहतर मिलेगी. वहीं रूरल इनकम अच्छी रहती है तो कंजम्पशन स्टोरी भी बेहतर होगी.
कहां बनेंगे निवेश के मौके
केडिया का कहना है कि महंगाई के चलते कई सेक्टर प्रभावित हुए हैं. कंपनियों की इनपुट कास्ट बढ़ी है. वहीं इससे कॉरपोरेट अर्निंग पर भी दबाव बढ़ा है, क्योंकि बहुत से कंपनियों के पास मजबूत प्राइसिंग पावर नहीं है. लेकिन अगर रॉ मटेरियल की कीमतों में कमी आती है तो निश्चित रूप से बैलेंसशीट पर से दबाव कम होगा. फिलहाल मौजूदा समय में निवेशकों को उन कंपनियों का रुख कर करना चाहिए, जिसके पास बेहतर प्राइसिंग पावर है. जो बढ़ी हुई लागत को कस्टमर्स पर आसानी से पास आन कर सकती हैं, और उनके सेंटीमतेंट पर ज्यादा असर नहीं आता है. मसलन नेस्ले, मैरिका और एचयूएल. लेकिन
सेक्टर की बात करें तो मॉनसून बेहतर रहने से एग्री एक्टिविटी बढ़ती हैं, जिससे इससे जुड़े सेक्टर केमिकल्स, फर्टिलाइजर्स, सीड इंडस्ट्री, फॉर्म रिलेटेड आटोमोबाइल्स, एग्री फाइनेंसिंग एनबीएफसी सेक्टर को डिमांड बेहतर मिलेगी. वहीं पैदावर बेहतर रहने से जब रूर इनकम बढ़ती है तो एफएमसीजी, कंज्यूमर कंपनियां और आटो कंपनियों की बिक्री बढ़ती है. कमोडिटी की बात करें तो रूरल एरिया में सोना और चांदी हमेशा से बेहतर विकल्प है. शहरी एरिया में निवेश के कई विकल्प हैं, लेकिन रूरल एरिया में सोना और चांदी निवेश के लिए पॉपुलर विकल्प हैं.
मेटल में कीमतों में क्यों आई गिरावट
अजय केडिया का कहना है कि महंगाई बढ़ने से रीसेशन का डर बना हुआ है, जिससे इंडस्ट्रियल एक्टिविटी में भी ग्लोबल लेवल पर सुस्ती आई है. जब भी रीसेशन का डर बनता है, इंडस्ट्रियल डिमांड भी कमजोर पड़ती है. हाल के दिनों में मेटल की कीमतों में गिरावट के पीछे यह बड़ा फैक्टर है.
क्रूड है रिस्क फैक्टर
केडिया का कहना है कि सेंट्रल बैंक, बेहतर मॉनसून और सरकार की कोशिशों के चलते महंगाई पर काबू होने की उम्मीद है. लेकिन महंगा क्रूड एक रिस्क फैक्टर है. खेती किसानी में फ्यूल का इस्तेमाल होता है जिनकी कीमतें लंबे समय से हाई बनी हुई हैं. ज्यादातर कंपनियां रॉ मटेरियल में क्रूड का इस्तेमाल करती हैं. इस साल जनवरी में जो क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल के आस पास था, अब 110 डॉलर प्रति बैरल के पार बना हुआ है. दुनियाभर में जिस तरह से महंगाई तेजी से बढ़ी है, उनमें क्रूड का सबसे ज्यादा योगदान है. ओपेक देश कूल आफ के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अगले कुछ महीने यह रिस्क फैक्टर रहेगा.