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बढ़ते डॉलर के दौर में आप कर सकते हैं पर्सनल फाइनेंस हितों की रक्षा.
पिछले एक साल में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 9.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. साल की शुरुआत में US Dollar के मुकाबले में 73.21 रुपये रहने वाला जहां रुपया अब गिरकर 81.50 रुपये हो गया है. इस बीच अमेरिका में हाई इन्फ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए यूएस फेड द्वारा 2022 के साथ ही 2023 में रेपो रेट समेत अन्य जरुरी दरों में इजाफा जारी रखे जाने की संभावना है. जिसकी वजह से साल की शुरुआत से ही डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट देखी जा रही है. साथ ही इस गिरावट के आगे जारी रहनी की आशंका बनी हुई है.
डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने का मतलब क्या है ?
2017 में आपको एक डॉलर खरीदने के लिए 64 रुपये खर्च करने पड़े थे, लेकिन अब एक डॉलर लेने के लिए आपको 80 रुपये से ज्यादा का भुगतान करना होगा, जो रुपये आज की स्थिति को दिखाता है. इससे यह भी पता चलता है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में सालाना आधार पर करीब 5 फीसदी की गिरावट आई है. दूसरी ओर रुपये की मजबूती का मतलब होता है कि आपको पहले की तुलना में डॉलर खरीदने के लिए कम भारतीय मुद्रा का भुगतान करना होगा.
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रुपये की कमजोरी या उसमें आई गिरावट से आपका व्यक्तिगत वित्त प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं. अर्थव्यवस्था पर भी अच्छे और बुरे दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं. जब INR में गिरावट आती है तो निर्यातकों की जीत होती है, लेकिन चूंकि भारत मुख्य रूप से एक आयात पर निर्भर देश है, इसलिए कमजोर INR के परिणाम अधिक गंभीर होते हैं. कुछ वस्तुओं की लागत में इजाफा और परिणामस्वरूप हाई इन्फ्लेशन एक इनडायरेक्ट इफेक्ट है. क्योंकि हमारा देश एक बड़ा तेल आयातक है, जिसकी वजह से रुपये में कमजोरी आने का असर अन्य वस्तुओं पर पड़ा तय है. रुपये में गिरावट की वजह से आयात किये गए सामान के बदले में ज्यादा भारतीय मुद्रा का भुगतान करना होगा. जिससे उस सामान या वस्तु की लागत बढ़ जाएगी.
रुपये में आई गिरावट आप की EMI में इजाफा कर देती है
डॉलर के मुकाबले में रुपये में गिरावट आने से मार्केट में हाई इन्फ्लेशन शुरु हो जाता है, जिसे कंट्रोल करने के लिए आरबीआई द्वारा रेपो रेट में इजाफा किया जाता है. जिसकी वजह से आप के लोन की EMI में बढ़ोतरी हो जाती है. यानी आप को अपने लोन के एवज में दी जाने वाली EMI के लिए ज्यादा पैसों का भुगतान करना होगा. हाल ही में RBI ने 29 सितंबर को रेपो रेट में एक बार फिर से 50 बेसिक पॉइंट्स का इजाफा किया है.
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अगर आप का बच्चा विदेश में पढ़ता है तो आप को इंटरनेशनल एजुकेशन के लिए डॉलर भेजने के लिए ज्यादा भारतीय मुद्रा का पेमेंट करना होगा. INR में गिरावट से खुद को बचाने के लिए विदेशों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स को विदेशी बैंक के अकाउंट में पैसे रखने चाहिए. इसके साथ ही अगर आप अपने परिवार के साथ विदेश में घुमने का प्लान बना रहे हैं तो ये ध्यान में रखना होगा कि रुपये में कमजोरी की वजह से आपको ज्यादा राशि का भुगतान करना पड़ेगा.
डॉलर की मजबूती के दौर में अपने आर्थिक हितों की ऐसे करे रक्षा
डॉलर के मुकाबले में रुपये में मजबूती में लंबा समय लग सकता है. ऐसे में अगर आप अपने बच्चों को किसी विदेश में पढ़ाने के लिए प्लान बना रहे हैं तो आप को अमेरिकी इक्विटी खरीदने या विदेशी बैंक खाते में पैसे जमा करने पर विचार करना चाहिए. भारतीय रिजर्व बैंक लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम विदेशों में भेजे गए पैसों को नियंत्रित करती है. इस स्कीम के तहत नाबालिगों सहित सभी निवासियों को किसी भी कानूनी चालू या पूंजी खाता लेनदेन या दोनों के संयोजन के लिए प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में 2,50,000 अमरीकी डालर तक स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई है.
(Article by Sunil Dhawan)