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रुपये में लगातार गिरावट का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? आम लोगों की जिंदगी इससे किस हद तक प्रभावित होगी? यह सवाल आज बेहद प्रासंगिक हो गए हैं. (Illustration: Indian Express)
Rupee Falls to A New Low : How it Impacts Indian Economy : डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. गुरुवार को एक डॉलर 77.72 रुपये का हो गया और इस तरह देश की करेंसी का भाव एक नए रिकॉर्ड स्तर तक गिरकर बंद हुआ. रुपये में इस गिरावट ने सरकार को विपक्ष के निशाने पर ला दिया है. कांग्रेस ने इसे सरकार की नाकामी और चौतरफा महंगाई से जोड़ते हुए तीखा हमला किया. पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्विटर पर लिखा, "रुपया एक बार फिर गिरा! रुपये, पेट्रोल और गैस सिलेंडर में होड़ मची है! हर भारतीय चिंता में डूबा है, लेकिन क्या प्रधानमंत्री-वित्तमंत्री को इसकी परवाह है?"
रुपये के गिरने पर सवाल तो उठेंगे !
किसी भी मजबूत लोकतंत्र में विपक्ष का काम ही होता है सरकार की खामियों को उजागर करना और जनता के हित में उससे सवाल पूछना. लेकिन क्या भारतीय विपक्ष सरकार से यह सवाल पूछकर अपनी वही भूमिका निभा रहा है? क्या उसके सवाल वाजिब हैं? क्या रुपये में गिरावट और पेट्रोल-रसोई गैस की आसमान छूती कीमतों को जोड़कर सरकार को घेरना सही है? सियासत की दुनिया में इन सवालों के जवाब अपने-अपने राजनीतिक रुझान के हिसाब से दिए जाएंगे. लेकिन रुपये में लगातार गिरावट को देखकर सवाल सिर्फ विपक्षी नेताओं के मन में ही नहीं, आम लोगों के मन में भी जरूर उठ रहे होंगे. सवाल यह कि रुपये में गिरावट का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? और आम लोगों की जिंदगी इससे किस हद तक प्रभावित होगी?
रुपये में गिरावट यानी भारी इंपोर्ट बिल
रुपये में गिरावट का देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर यह होता है कि हमारे इंपोर्ट बिल बढ़ जाते हैं. यानी हम विदेशों से जो सामान खरीदते हैं, रुपये में गिरावट आने पर उनके लिए पहले से ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ती है. मसलन, डॉलर जब 75 रुपये का था, तो सौ डॉलर के सामान के लिए हम 7500 रुपये देते थे, लेकिन डॉलर अगर 78 रुपये का हो जाए, तो उसी सामान के लिए हमें 7800 रुपये देने पड़ेंगे. पूरे देश को एक इकाई मानकर सोचें तो देश का पूरे इंपोर्ट बिल पर कीमतों का दबाव बढ़ जाता है.
महंगा आयात मतलब कीमतों में उछाल
अगर कोई चीज विदेश से खरीदने की लागत बढ़ेगी तो देश में उसकी कीमतें बढ़ना भी स्वाभाविक है. हम जानते हैं कि भारत के इंपोर्ट बिल में बहुत बड़ा हिस्सा क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल का होता है, जिसे रिफाइन करके पेट्रोल-डीज़ल बनाते हैं. जो एलपीसी या पीएनजी गैस हमारे घरों में खाना पकाने के काम आती है या जो सीएनजी कारों में भरी जाती है, वह भी बड़े पैमाने पर इंपोर्ट की जाती है. जाहिर है रुपये का मूल्य गिरने यानी डॉलर महंगा होने पर इनकी लागत भी बढ़ जाती है. यानी रुपये में गिरावट का एक बुरा असर यह भी है कि इनकी पहले से आसमान छू रही कीमतें और बढ़ने की आशंका मजबूत हो जाती है. पिछले कुछ दिनों में सरकार ने सीएनजी, विमान में भरे जाने वाले ईंधन एटीएफ और रसोई गैस के दाम जिस तेजी से बढ़ाए हैं, उसमें कुछ हाथ गिरते रुपये का भी है.
गिरते रुपये का यह असर सिर्फ पेट्रोल-डीजल, सीएनजी और रसोई गैस जैसे ईंधन पर ही नहीं इंपोर्ट की जाने वाली तमाम चीजों पर पड़ता है. इनमें खाने के तेल से लेकर फर्टिलाइजर और स्टील तक हर तरह की चीजें शामिल हैं. इतना ही नहीं, इन इंपोर्टेड चीजों का कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल करके बनने वाली वस्तुओं की लागत भी बढ़ जाती है. जाहिर है, रुपये में गिरावट का एक बड़ा असर महंगाई बढ़ने के रूप में भी देखने को मिलता है.
रिजर्व बैंक के लिए बढ़ी चुनौती
देश में महंगाई दर पहले से ही बरसों पुराने रिकॉर्ड तोड़ रही है. थोक और रिटेल दोनों कीमतों में बढ़ोतरी की रफ्तार लगातार बढ़ रही है, ऐसे में गिरते रुपये का असर उसे और कहां तक ले जाएगा, ये सबके लिए चिंता की बात है. खासतौर पर रिजर्व बैंक के लिए तो कमजोर रुपया एक बहुत बड़ी चुनौती है. क्योंकि इससे एक तरफ तो ब्याज दरें बढ़ाकर कीमतों पर काबू पाने की उसकी कोशिशों को झटका लगता है और दूसरी तरफ करेंसी में गिरावट पर काबू पाने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया खरीदकर अपने पास रखी बेशकीमती फॉरेन करेंसी खर्च करनी पड़ती है. हाल ही में ऐसी खबरें आयी हैं कि रिजर्व बैंक रुपये में गिरावट थामने के लिए सिर्फ मार्च के महीने में ही 20 अरब डॉलर से ज्यादा विदेशी मुद्रा स्पॉट मार्केट में खर्च कर चुका है. मौजूदा माहौल में इस बात की संभावना दिनों-दिन बढ़ती जा रही है कि जून के मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में रिजर्व बैंक एक बार फिर से ब्याज दरें बढ़ाएगा. इससे देश में पूंजी की लागत और बढ़ जाएगी, जिसका इकनॉमिक रिकवरी पर बुरा असर पड़ सकता है.
एक्सपोर्ट के मोर्चे पर कितना फायदा?
रुपये में गिरावट को आम तौर पर एक्सपोर्ट करने वालों के लिए अच्छी खबर माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि रुपये में गिरावट होने पर विदेशी बाजार में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की कीमत कम हो जाती है, जिससे उनकी मांग बढ़ने की उम्मीद रहती है. साथ ही डॉलर में मिलने वाले पेमेंट को रुपये में एक्सचेंज करने पर मिलने वाली रकम बढ़ जाती है. लेकिन एक अर्थव्यवस्था के रूप में ऐसी स्थिति से उन देशों को अधिक लाभ मिलता है, जो इंपोर्ट कम करते हैं और एक्सपोर्ट ज्यादा. लेकिन भारत का हाल उलटा है. हम एक देश के तौर पर इंपोर्ट के मुकाबले काफी कम एक्सपोर्ट करते हैं. यही वजह है कि अप्रैल में भारत के एक्सपोर्ट में 24.22 फीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद हमारा व्यापार घाटा यानी ट्रेड डेफिसिट, घटने की बजाय करीब 33 फीसदी बढ़कर 20 अरब डॉलर पर पहुंच गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में देश का करेंट एकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़कर जीडीपी के 2.6 फीसदी के बराबर पहुंच जाने की आशंका है, जबकि 2021-22 में यह जीडीपी के 1.7 फीसदी के बराबर था. जबकि इस दौरान रुपये का मूल्य लगातार गिरता जा रहा है. जाहिर है, कमजोर रुपया भारत के इंटरनेशल ट्रेड में कुलमिलाकर मददगार साबित नहीं हो रहा है.
शेयर बाजार पर भी होता है असर
रुपये में लगातार गिरावट होना शेयर बाजार के लिए भी अच्छी खबर नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) अमेरिका में ब्याज दरों में मजबूती के कारण पहले से ही पैसे निकाल रहे हैं. NSDL के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी निवेशक इस साल 1.38 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेच चुके हैं. रुपये में लगातार गिरावट और डॉलर के मजबूत होने के कारण वे और भी तेजी से पैसे निकालने लगेंगे. और उनका ऐसा करना, रुपये में कमजोरी बढ़ने की एक और वजह बन जाएगा. इस तरह भारतीय करेंसी के एक दुष्चक्र में फंसने का खतरा है, जो देश में महंगाई की आग को और हवा दे सकता है.
विदेशी कर्ज और ब्याज का बोझ बढ़ेगा
रुपये में गिरावट का एक बहुत बड़ा और सीधा नुकसान यह होता है कि इससे विदेशी मुद्रा में लिए गए सारे कर्जे और उन पर दिए जाने वाले ब्याज में अचानक बढ़ोतरी हो जाती है. इनमें सरकार द्वारा लिए गए विदेशी लोन के अलावा सरकारी और प्राइवेट बैंकों और कंपनियों द्वारा लिए गए फॉरेन करेंसी लोन भी शामिल हैं. इन सभी कर्जों पर अदा किए जाने वाले ब्याज की रकम रुपये में गिरावट से अचानक बढ़ जाती है. अगर उस कंपनी या बैंक की ज्यादा कमाई रुपये में होती है तो उसके लिए विदेशी मुद्रा में कर्ज की किस्त और ब्याज चुकाना पहले से ज्यादा महंगा हो जाता है.
विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों की बढ़ेगी मुश्किल
विदेशों में पढ़ाई करने वाले उन छात्रों पर रुपये में गिरावट का सीधा असर होता है, जो अपने अधिकांश खर्चों के लिए भारत में रहने वाले अपने पैरेंट्स पर निर्भर होते हैं. विदेश यात्रा पर जाने वाले भारतीयों के लिए भी यह एक आर्थिक बोझ बढ़ाने वाली स्थिति है.