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बुधवार को भारतीय करेंसी में तेज गिरावट आई. डॉलर पहली बार 83 रुपये के पार बंद हुआ . (Representational Image)
Indian currency plunges below 83-mark for first time Today : इसे रुपये की कमजोरी कहिए या डॉलर की मजबूती, सच तो यही है कि भारतीय करेंसी में गिरावट का सिलसिला जारी है. बुधवार को पहली बार एक डॉलर 83 रुपये के पार बंद हुआ. अमेरिकी करेंसी के मुकाबले भारतीय मुद्रा एक दिन में 61 पैसे यानी करीब 0.74 फीसदी गिर गई. विदेशी पूंजी का आउटफ्लो यानी पलायन जारी रहा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का रुझान भी. कुल मिलाकर हालात ऐसे बने हुए हैं, जो भारतीय करेंसी की परेशानी बढ़ाने वाले हैं.
दिन ढलने के साथ बिगड़ा रुपये का हाल
बुधवार को इंटर-बैंक फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में डॉलर के मुकाबले रुपया 82.32 पर खुला, जो मंगलवार के बंद भाव के मुकाबले 8 पैसे अधिक था. लेकिन शुरुआती कारोबार में दिखा यह सुधार, दिन ढलने तक भारी गिरावट में तब्दील हो गया और डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर 83.01 पर बंद हुआ. बुधवार का यह बंद भाव मंगलवार के मुकाबले 61 पैसे कम है. अमेरिकी करेंसी के मुकाबले हमारा रुपया मंगलवार को 10 पैसे गिरकर 82.40 पर बंद हुआ था.
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कैसा रहा डॉलर इंडेक्स का रुझान?
6 देशों की मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी करेंसी के उतार-चढ़ाव का संकेत देने वाला डॉलर इंडेक्स बुधवार को 0.31 फीसदी बढ़कर 112.48 पर बंद हुआ. इस इंडेक्स में जिन 6 करेंसी की तुलना डॉलर से की जाती है, वे हैं : यूरो, जापानी येन, ब्रिटिश पाउंड, कनाडा का डॉलर, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक.
कच्चे तेल ने भी बढ़ाई रुपये की मुश्किल
इस बीच, रुपये पर दबाव बढ़ाने वाले कच्चे तेल के भाव में बुधवार को ऊपर का रुझान नज़र आया. करीब 0.82 फीसदी की तेजी के साथ ब्रेंट क्रूड का भाव 90.77 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक चला गया. बुधवार को रुपये पर निगेटिव असर डालने वाली एक और बात हो रही है. विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) मंगलवार को भारतीय पूंजी बाजार में नेट सेलर रहे और उन्होंने 153.40 करोड़ रुपये भारतीय शेयर बाजार से निकाल लिए. बुधवार के आंकड़े आना अब तक बाकी है.
रुपये में क्यों आ रही है गिरावट
दरअसल, भारतीय मुद्रा में गिरावट के लिए भारतीय बाजार से पूंजी के पलायन और अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के लगातार मजबूत होने को बड़ी वजह माना जा रहा है. इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, भारत का भारी-भरकम व्यापार घाटा और अमेरिका में ऊंची ब्याज दरों के चलते निवेशकों के रुझान में आए बदलाव को भी रुपये में कमजोरी के लिए जिम्मेदार माना जाता है.