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रुपये की गिरावट का दौर थमता नहीं दिख रहा है. आज यह 79.36 के रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ है.
Rupee Touches A New Low: रुपये में गिरावट का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. आज यानी मंगलवार, 5 जुलाई को डॉलर के मुकाबले रुपया 79.37 पर बंद हुआ, जो भारतीय करेंसी का अब तक का सबसे कम बंद भाव है. मंगलवार को दिन के कारोबार के दौरान तो एक डॉलर का भाव 79.38 तक चला गया था. इस बीच अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी नोमुरा (Nomura) ने कहा है कि रुपये में अभी और तेज गिरावट देखने को मिल सकती है. नोमुरा के एक्सपर्ट्स के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर 82 तक जा सकता है.
और क्या बताती है नोमुरा की रिपोर्ट
नोमुरा का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत का करेंस अकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़कर 3.3 फीसदी पर पहुंच सकता है, जिसका असर पहले से कमजोर चल रहे रुपये पर दिख सकता है. पिछले वित्त वर्ष यानी 2021-22 के दौरान देश का CAD 1.2 फीसदी रहा था. नोमुरा की अर्थशास्त्री सोनल वर्मा के मुताबिक भारत के करेंट अकाउंट डेफिसिट में बढ़ोतरी होने की आशंका के कारण रुपये पर लगातार दबाव बना रहेगा. FPI के लगातार देश से बाहर जाने की वजह से FDI और अन्य विदेशी निवेश भी इस हालात को बहुत हद तक संभाल नहीं पाएंगे. इन हालात में हमारा अनुमान है कि Q3 2022 के दौरान एक डॉलर की कीमत 82 रुपये तक चली जाएगी. इसके बाद Q4 2022 में यह 81 रुपये प्रति डॉलर तक संभल सकती है. वर्मा के मुताबिक रिजर्व बैंक की तरफ से डॉलर की बिक्री किए जाने पर रुपये में गिरावट की रफ्तार कुछ कम हो सकती है.
नोमुरा की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी फेड की सख्त मौद्रिक नीतियों के चलते विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) भारत समेत उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों से पैसे निकाल रहे हैं. इसके अलावा चालू खाते के बढ़ते घाटे से भी दबाव बढ़ा रहा है. भारत सरकार ने हाल ही में सोने के आयात पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर 15 फीसदी करने और तेल के निर्यात पर टैक्स बढ़ाने का भी ऐलान किया है. लेकिन नोमुरा के मुताबिक इन कदमों से भी घाटे को पाटने में ज्यादा मदद नहीं मिलेगी. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक ताजा आंकड़े बताते हैं कि जून के महीने में भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़कर अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर चला गया. जून 2022 में यह घाटा 25.63 अरब डॉलर रहा, जबकि जून 2021 में यह 9.61 अरब डॉलर था.
गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) ने भी हाल ही में एक नोट में कहा था कि डॉलर के मुकाबले रुपये का भाव अगले तीन महीने में 80 और 6 महीने पर 81 तक जा सकता है. इसी ब्रोकरेज हाउस ने इससे पहले तीन और छह महीने के दौरान एक डॉलर का भाव 79 रुपये रहने का अनुमान जाहिर किया था, जिसे अब उसने 2 रुपये तक बढ़ा दिया है.
कच्चे तेल की महंगाई से बढ़ा दबाव
आनंद राठी शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स के रिसर्च एनालिस्ट जिगर त्रिवेदी (कमोडिटीज एंड करेंसीज फंडामेंटल) के मुताबिक कैश में डॉलर की कमी, कच्चे तेल के बढ़ते भाव और एक साल के फॉरवर्ड प्रीमियम के ढहने से रुपये पर दबाव बढ़ रहा है. त्रिवेदी का आकलन है कि इस साल के आखिरी तक एक अमेरिकी डॉलर का भाव 80.5/81 रुपये तक जा सकता है. त्रिवेदी के मुताबिक अमेरिकी फेड जुलाई में ब्याज दरों में 75 बेसिस प्वाइंट (0.75 फीसदी) की बढ़ोतरी कर सकता है, जिससे भारत से पूंजी की निकासी और बढ़ने की आशंका है. भारतीय रिजर्व बैंक नुकसान से बचने के लिए विदेशी बाजार (फॉरेक्स मार्केट) में डॉलर बेचकर दखल दे सकता है लेकिन इसका कोई खास असर पड़ने के आसार नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि फंडामेंटल कमजोर हैं.
यूरो दो दशक के निचले स्तर पर
इस बीच, डॉलर के मुकाबले यूरो भी दो दशक के निचले स्तर तक फिसल चुका है. नेचुरल गैस के बढ़ते भाव ने यूरो इकॉनमी पर दबाव बढ़ाया है और जून में कारोबारी ग्रोथ को तेज झटका लगा है जिसके चलते मंगलवार को यूरो डॉलर के मुकाबले दिसंबर 2002 के बाद से सबसे निचले स्तर पर फिसल गया.
(Input : Reuters, PTI)