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SBI Report on Rs 2000 Note: एसबीबाई की रिपोर्ट के अनुसार 2000 रुपये के नोट सिस्टम में वापस आने से इकोनॉमी मजबूत होगी.
Impact of Rs 2000 note withdrawal: रिजर्व बैंक का 2,000 रुपये के नोट चलन से वापस लेने का फैसला मौजूदा वित्त वर्ष में कंजम्पशन यानी खपत को बढ़ावा देगा. यहीं नहीं इस फैसले से इकोनॉमिक ग्रोथ रेट को 6.5 फीसदी से भी आगे ले जाने में मदद मिलेगी. देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा जारी हुए एक लेटेस्ट रिपोर्ट में यह आकलन पेश किया गया है. एसबीआई के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नोट वापस लेने के आरबीआई के कदम से मंदिरों और अन्य धार्मिक संस्थानों को मिलने वाले दान में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने 2000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने का फैसला किया है. ये नोट बदलने या जमा कराने के लिए 30 सितंबर 2023 तक का समय है.
Q1FY24 के लिए वास्तविक GDP ग्रोथ 8.1%!
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 8.1 फीसदी हो जाएगी. और पूरे वित्त वर्ष के लिए 6.5 फीसदी ग्रोथ का आरबीआई का अनुमान भी पीछे छूट सकता है. एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार हम 2000 रुपये के नोट वापस लेने के प्रभावों की वजह से अप्रैल-जून तिमाही में वृद्धि दर 8.1 फीसदी रहने की उम्मीद करते हैं. यह हमारे उस अनुमान की पुष्टि करता है कि वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी ग्रोथ आरबीआई के अनुमान 6.5 फीसदी से अधिक रह सकती है.
आधे से अधिक नोट सिस्टम में वापस
आरबीआई ने जून महीने की शुरुआत में कहा था कि 2,000 रुपये मूल्य वर्ग के आधे से अधिक नोट वापस आ चुके हैं. इनमें से 85 फीसदी नोट बैंकों में जमा के रूप में आए थे, जबकि 15 फीसदी नोट बैंक काउंटरों पर अन्य मूल्य के नोट से बदले गए थे. एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2,000 रुपये के नोट के रूप में कुल 3.08 लाख करोड़ रुपये प्रणाली में जमा के रूप में लौटेंगे. इनमें से करीब 92,000 करोड़ रुपये बचत खातों में जमा किए जाएंगे जिसका 60 फीसदी यानी करीब 55,000 करोड़ रुपये निकासी के बाद लोगों के पास खर्च के लिए पहुंच जाएंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक, खपत में मल्टीपल बढ़ोतरी की वजह से लंबे समय में यह कुल बढ़ोतरी 1.83 लाख करोड़ रुपये तक रह सकती है. एसबीआई के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नोट वापस लेने के आरबीआई के कदम से मंदिरों और अन्य धार्मिक संस्थानों को मिलने वाले दान में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. इसके अलावा टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और बुटीक फर्नीचर की खरीद को भी बढ़ावा मिलेगा.
बैंकिंग सेक्टर का सुधरेगा प्रदर्शन
रिपोर्ट के अलावा एक्सपर्ट भी माने रहे हैं कि 2000 रुपये के नोट सिस्टम में आने से बैंकिंग सेक्टर की सेहत में सुधार देखने को मिलेगा. बैंकों को डिपॉजिट की जरूरत है और रिजर्व बैंक के फैसले से उन्हें यह डिपॉजिट मिल जाएगा. बैंक के पास पैसा आएगा तो वह इसे यूटिलाइज कर सकेगा. इससे मार्केट में भी पैसा आएगा. ओवरआल बैंकिंग सिस्टम की सेहत में सुधार से बैंकिंग फंड का प्रदर्शन बेहतर रह सकता है.
बैंकिंग सिस्टम को जरूरी डिपॉजिट मिलने से बैंकों पर डिपॉजिट रेट बढ़ाने का दबाव कम होगा. यानी शॉर्ट टर्म में फिक्स्ड डिपॉजिट के रेट स्टेबल रह सकते हैं. हालांकि इसे कम किए जाने की संभावना कम है.
बैंकिंग एक्सपर्ट के अनुसार बैंकों में डिपॉजिट बढ़ने से लिक्विडिटी में सुधार होगा. इससे बॉरोइंग की कंडीशन में भी सुधार होगा. इसका एक असर यह हो सकता है कि पर्याप्त कैश के चलते इंटरेस्ट रेट हाइक पर पॉज लग सकेगा या आगे चलकर बैंक कर्ज की दरों में कमी कर सकते हैं. यह आम आदमी से लेकर रियल्टी सेक्टर के लिए पॉजिटिव कदम होगा.
यह फैसला क्यों किया गया?
2000 रुपये के नोटों को पहली बार 2016 में आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 24 (1) के तहत जारी किया गया था. तब नोटबंदी यानी 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बैन होने के बाद इसे अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए जारी किया गया था. आरबीआई ने 2019-20 में इसकी प्रिंटिंग बंद कर दी थी. माना जा रहा है कि 2000 रुपये के नोटों का इस्तेमाल भी अब बहुत कम लोग कर रहे हैं. इनका सर्कुलेंशन भी 2017 के मुकाबले बेहद कम हो गया है. वैसे भी 2000 रुपये के ज्यादातर नोट 4 से 5 साल का पीरियड पूरा कर चुके हैं. जिसके चलते इन्हें बंद करने का फैसला किया गया.