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अनलिस्टेड शेयर में ट्रेडिंग और ग्रे मार्केट एक नहीं हैं, जानिए इनमें क्या है फर्क, मार्केट में लिस्टेड होने से पहले कैसे खरीदें शेयर?

Unlisted Market vs Grey Market: दोनों ही मार्केट में प्री-आईपीओ डीलिंग होती है जिसके चलते अधिकतर लोग अनलिस्टेड और ग्रे मार्केट को एकसमान समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है.

Unlisted Market vs Grey Market: दोनों ही मार्केट में प्री-आईपीओ डीलिंग होती है जिसके चलते अधिकतर लोग अनलिस्टेड और ग्रे मार्केट को एकसमान समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है.

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Jeevan Deep Vishawakarma
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unlisted market vs grey market know here about how to purchase share before listing

अनलिस्टेड मार्केट सेबी के गाइडलाइंस के मुताबिक रेगुलेट होता है जबकि ग्रे मार्केट को लेकर सेबी की कोई गाइडलाइंस नहीं है लेकिन यह न तो वैध और न ही अवैध.

Unlisted Market vs Grey Market: किसी कंपनी को पैसों की जरूरत पड़ती है तो उसके पास कई विकल्पों में एक शेयर इशू करने का होता है. आमतौर पर निवेशक सिर्फ उन्हीं शेयरों की खरीद-बिक्री के बारे में सोचते हैं जो मार्केट में लिस्टेड होते हैं. हालांकि लिस्टेड कंपनियों के अलावा भी शेयरों की खरीद-बिक्री होती है. इनकी बिक्री अनलिस्टेड मार्केट में होती है. इसके अलावा कंपनियां जब आईपीओ इशू करती हैं तो इसकी लिस्टिंग से पहले ग्रे मार्केट को लेकर बहुत सी बातें की जाती हैं और इसके प्रीमियम के आधार पर कई निवेशक निवेश का फैसला लेते हैं. चूंकि ग्रे मार्केट भी कंपनी के लिस्टेड होने से पहले शेयरों की खरीद-बिक्री से जुड़ा हुआ है तो ऐसे में अधिकतर लोग अनलिस्टेड और ग्रे मार्केट को एकसमान समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है.

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Unlisted Market vs Grey Market को ऐसे समझें

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  • जब कोई कंपनी आईपीओ के प्राइस बैंड का ऐलान करती है तो उसके आस-पास ग्रे मार्केट गतिविधियां शुरू हो जाती हैं. इसके विपरीत अनलिस्टेड मार्केट में शेयरों की ट्रेडिंग आईपीओ आने से बहुत पहले भी जारी हो सकती हैं जैसे कि नजारा टेक्नोलॉजीज का आईपीओ इस साल आया है लेकिन इसके शेयर अनलिस्टेड मार्केट में वर्ष 2018 से ही उपलब्ध हैं.
  • ग्रे मार्केट में शेयरों की डीलिंग में वास्तव में कोई शेयर नहीं मिलता है बल्कि एक तरह से यह अनऑफिशियल फ्यूचर/फारवर्ड की तरह हैं. इसके विपरीत अनलिस्टेड मार्केट में शेयरों को डीमैट खाते में रखा जाता है. सेबी के नियमों के मुताबिक सभी फिजिकल शेयरों को इलेक्ट्रिक फॉर्म में रखना अनिवार्य है.
  • ग्रे मार्केट में शेयरों की खरीद-बिक्री कैश के जरिए होती है और इसमें पूरी प्रक्रिया भरोसे पर टिकी होती है यानी इसमें रिस्क बहुत अधिक है. इसके विपरीत अनलिस्टेड मार्केट में ट्रेडिंग के लिए सेबी की गाइडलाइंस तो नहीं है लेकिन चूंकि इसमें लेन-देन कैश में नहीं होता है और शेयर डीमैट में रखे जाते हैं, इसलिए यह लीगल है और इसमें रिस्क नहीं है.

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  • ग्रे मार्केट में शेयरों की ट्रेडिंग किसी स्थानीय ब्रोकर के जरिए होती है और उसके जरिए शेयरों के लिए अनऑफिशियली फारवर्ड/फ्यूचर कांट्रैक्ट किए जाते हैं. इसके विपरीत अनलिस्टेड मार्केट में एक डीमैट खाते से दूसरे डीमैट खाते में शेयरों को ट्रांसफर किया जाता है.
  • ग्रे मार्केट में आईपीओ आने से पहले शेयर उपलब्ध नहीं रहते हैं जबकि अनलिस्टेड मार्केट में शेयर आईपीओ आने से पहले भी डीमैट खाते में रहते हैं. अनलिस्टेड मार्केट में कंपनी के प्रमोटर या एंप्लाई के जरिए शेयर उपलब्ध होते हैं. अनलिस्टेड मार्केट में शेयर खरीदने के लिए अनलिस्टेड मार्केट को डील करने वाले ब्रोकर से संपर्क किया जा सकता है.

(यह आर्टिकल अनलिस्टेड मार्केट में डील करने वाले और unlistedarena.com के फाउंडर अभय दोशी से बातचीत पर आधारित है.)

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