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SMART INVESTING : क्या है निवेश का स्मार्ट तरीका, कैसे मिल सकता है आपको बेहतर रिटर्न

यह तरीका सोचने में अच्छा लगता है कि किसी स्टॉक को कम कीमत पर खरीदो और कीमत ज्यादा होने पर बेच दो. लेकिन इस तरीके में जोखिम काफी ज्यादा होता है.

यह तरीका सोचने में अच्छा लगता है कि किसी स्टॉक को कम कीमत पर खरीदो और कीमत ज्यादा होने पर बेच दो. लेकिन इस तरीके में जोखिम काफी ज्यादा होता है.

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FE Online
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SMART INVESTING: Spend time in market for long-term wealth

स्मार्ट इनवेस्टर जानते हैं कि बाजार को लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.

SMART INVESTING : बाजार में निवेश करते समय निवेशकों की सबसे बड़ी चिंता ज्यादा रिटर्न का पीछा करने में शामिल जोखिमों को लेकर होती है. स्मार्ट इनवेस्टर अच्छी तरह जानते हैं कि बाजार को लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. छोटी अवधि में किसी भी निवेश पर फायदा या नुकसान हो सकता है लेकिन ज्यादा रिटर्न की चाहने वाले निवेशक लंबी अवधि तक निवेश करना पसंद करते हैं. अक्सर बाजार में टाइम इन द मार्केट (Time in the market) और टाइमिंग द मार्केट (Timing the market) को लेकर बहस होती रहती है. कई निवेशक निवेश करते समय किसी स्टॉक के भविष्य के बाजार मूल्य का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं. इसमें जोखिम काफी ज्यादा होता है. निवेश की इस रणनीति को ही टाइमिंग द मार्केट कहते हैं. इसके उलट, कई निवेशक लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं. ऐसे निवेशक यह अनुमान लगाने की कोशिश किए बिना स्टॉक खरीदते हैं कि बाजार में कब तेजी या मंदी होगी. निवेश की इस रणनीति को टाइम इन द मार्केट कहा जाता है. अब सवाल यह है कि दोनों में बेहतर रणनीति क्या है.

टाइमिंग द मार्केट

टाइमिंग द मार्केट का मतलब यह है कि एक निवेशक स्टॉक के भविष्य के शेयर की कीमत का अनुमान लगाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि यह तरीका सोचने में अच्छा लगता है कि कम कीमत पर खरीदो और कीमत ज्यादा होने पर बेच दो. लेकिन इस तरीके में जोखिम काफी ज्यादा होता है. हो सकता है कि किसी दिन आपकी ‘किस्मत’ अच्छी हो और आपको इस रणनीति से ज्यादा रिटर्न मिल जाए, पर इस रणनीति की सबसे बड़ी कमजोरी ‘किस्मत’ ही है. किसी दिन ऐसा भी हो सकता है कि आपकी किस्मत अच्छी ना हो ओर आपको काफी ज्यादा नुकसान हो जाए. स्टॉक मार्केट में भविष्य के बारे में किसी भी तरह का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. स्टॉक की कीमतें तेजी के साथ बदलती हैं, इसका मतलब यह है कि आपका अनुमान हमेशा सटीक नहीं हो सकता. अगर आपको कोई भी वित्तीय सलाहकार इस रणनीति के साथ निवेश की सलाह देता है तो आपको सचेत हो जाना चाहिए. टाइमिंग द मार्केट में कई बार आपको बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर आप ब्रोकर की मदद ले रहे हैं तो बार-बार ट्रेडिंग करने से ब्रोकरेज कमीशन की लागत बढ़ जाती है. जितना अधिक स्टॉक खरीदा और बेचा जाता है, उतना ही ज्यादा कमीशन ब्रोकर कमाता है. इसमें सबसे बुरी बात यह है कि इस कमीशन का भुगतान निवेशक को ही करना होता है, भले ही उसे बाजार में नुकसान उठाना पड़ रहा हो.

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टाइम इन द मार्केट

टाइम इन द मार्केट, टाइमिंग द मार्केट से बिल्कुल अलग है क्योंकि इस रणनीति में छोटी अवधि के लिए भविष्यवाणी नहीं किए जाते. यहां निवेशक यह अनुमान लगाने की कोशिश नहीं करेगा कि बाजार अपने सबसे निचले स्तर पर है या उच्चतम स्तर पर. इसमें निवेशक को स्टॉक खरीदते समय यह पता होता है कि हो सकता है उसकी टाइमिंग सही ना हो, लेकिन लंबी अवधि में वह स्टॉक ज्यादा रिटर्न दे सकती है. अगर स्टॉक फंडामेंटली स्ट्रांग है और उसमें लंबी अवधि में ज्यादा रिटर्न देने की संभावनाएं हैं, तो ऐसे में शॉर्ट टर्म में उस स्टॉक की कीमत में होने वाला उतार-चढ़ाव से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.

यह रणनीति साबित करती है कि बाजार को समय देना और धैर्य बनाकर रखना, छोटी अवधि के निवेश से ज्यादा फायदेमंद है. जब कोई किसी शेयर को 10 साल के लिए अपने पास रखता है, तो चक्रवृद्धि और इनवेस्टमेंट ग्रोथ के सकारात्मक प्रभाव से बढ़िया रिटर्न मिलता है. धैर्य के साथ निवेश करने वाले निवेशकों को रिटर्न ज्यादा मिलता है. लंबी अवधि में ज्यादा रिटर्न जनरेट करने के लिए बाजार में समय बिताना जरूरी होता है. ऐसा करने से, निवेशक नेचुरल मार्केट साइकिल पर काबू पा लेता है. कुछ लोगों को बाजार में ज्यादा समय बिताना मुश्किल लग सकता है, लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए लंबी अवधि में उनका फाइनेंशियल गोल क्या है. समय के साथ स्थिर ग्रोथ के लिए इंतजार करके, स्मार्ट निवेशक अपनी लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं.

(इस आर्टिकल को Parthajit Kayal और Malvika Saraf ने लिखा है. Kayal मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, वहीं Saraf मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से हाल ही में ग्रेजुएट हुए हैं.)

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