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देश में 92 फीसदी महिलाओं की सैलरी 10 हजार रुपये से भी कम

रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आमदनी 10,000 रुपये थी जबकि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आमदनी 10,000 रुपये थी जबकि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है.

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IANS
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रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आमदनी 10,000 रुपये थी जबकि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है.

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देश में एक तरफ जहां महिला सशक्तिकरण का बड़ा जोरो-शोरो से ढिंढोरा पीटा जाता है, वहीं एक यूनिवर्सिटी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कामकाजी 92 फीसदी महिलाओं को प्रति माह 10,000 रुपये से भी कम की सैलरी मिलती है. इस मामले में पुरुष थोड़ा बेहतर स्थिति में हैं. लेकिन हैरत की बात यह है कि 82 फीसदी पुरुषों को भी 10,000 रुपये प्रति माह से कम की सैलरी मिलती है.

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अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सतत रोजगार केंद्र ने श्रम ब्यूरो के पांचवीं सालाना रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (2015-2016) पर आधार पर स्टेट ऑफ वर्किं ग इंडिया, 2018 एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें उन्होंने देश में कामकाजी पुरुषों और महिलाओं पर आंकड़े तैयार किए हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आमदनी 10,000 रुपये थी जबकि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है. इससे साफ होता है कि भारत में एक बड़े तबके को मजदूरी के रूप में उचित भुगतान नहीं मिल रहा है.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज, अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर और देश में बढ़ती बेरोजगारी पर से पर्दा उठाने वाली स्टेट ऑफ वर्किं ग इंडिया, 2018 रिपोर्ट के मुख्य लेखक अमित बसोले ने बेंगलुरू से आईएएनएस को ई-मेल के जरिए बताया, "यह आंकड़े श्रम ब्यूरो के पांचवीं वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (2015-2016) पर आधारित है. यह आंकड़े पूरे भारत के हैं."

उन्होंने कहा, "मेट्रो शहरों में इसकी स्थिति अलग होगी क्योंकि गांवों और छोटे शहरों की तुलना में इन शहरों में महिलाओं और पुरुषों की आमदनी अधिक है."

स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया, 2018 रिपोर्ट के मुताबिक, चिंता की बात यह है कि विनिर्माण क्षेत्र में भी 90 फीसदी उद्योग मजदूरों को न्यूनतम वेतन से नीचे मजदूरी का भुगतान करते हैं. असंगठित क्षेत्र की हालत और भी ज्यादा खराब है. अध्ययन के मुताबिक, तीन दशकों में संगठित क्षेत्र की उत्पादक कंपनियों में श्रमिकों की उत्पादकता छह फीसदी तक बढ़ी है, जबकि उनके वेतन में मात्र 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

क्या आप मानते हैं कि शिक्षित युवाओं के लिए वर्तमान हालात काफी खराब हो चुके हैं, जिस पर सहायक प्रोफेसर अमित बसोले ने कहा, "आज की स्थिति निश्चित रूप से काफी खराब है, खासकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में. हमें उन कॉलेजों से बाहर आने वाले बड़ी संख्या में शिक्षित युवाओं का बेहतर उपयोग करने की आवश्यकता है."

इस स्थिति को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है, के सवाल पर उन्होंने आईएएनएस को बताया, "स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं, जैसे अगर सरकार सीधे गांवों व छोटे शहरों में रोजगार पैदा करे, इसके साथ ही बेहतर बुनियादी ढांचे (बिजली, सड़कों) उपलब्ध कराएं और युवाओं को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध को सुनिश्चित करें, जिससे कुछ हद तक हालात सुधर सकते हैं."

श्रम ब्यूरो के पांचवीं वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (2015-2016) के मुताबिक, 2015-16 के दौरान, भारत की बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत थी जबकि 2013-14 में यह 4.9 फीसदी थी. रिपोर्ट में यह साफ किया गया है कि बेरोजगारी दर शहरी क्षेत्रों (4.9 फीसदी) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (5.1 फीसदी) नें मामूली रूप से अधिक है.

अध्ययन के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर अधिक है. राष्ट्रीय स्तर पर महिला बेरोजगारी दर जहां 8.7 फीसदी है वहीं पुरुषों के बीच यह दर चार फीसदी है. काम में लगे हुए व्यक्तियों में से अधिकांश व्यक्ति स्वयं रोजगार में लगे हुए हैं. राष्ट्र स्तर पर 46.6 प्रतिशत श्रमिकों स्वयं रोजगार में लगे हुए हैं, इसके बाद 32.8 फीसदी सामयिक मजदूर हैं.

अध्ययन के मुताबिक, भारत में केवल 17 फीसदी व्यक्ति वेतन पर कार्य करते हैं और शेष 3.7 प्रतिशत संविदा कर्मी हैं.