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केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की EAC को जिन एनर्जी प्रोजेक्ट्स पर विचार करना है उनमें AGEL की कम से कम 6 परियोजनाएं शामिल हैं. (File Photo: Reuters)
Adani Green advisor in hydel appraisal committee of Environment Ministry: अडानी ग्रुप की कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी (AGEL) के एक एडवाइजर जनार्दन चौधरी को मोदी सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की उसी एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (EAC) में सदस्य बनाया गया है, जिसे AGEL के कई प्रोजेक्ट्स पर विचार करना है. दरअसल, चौधरी को सदस्य बनाए जाने के बाद हुई EAC की एक बैठक में AGEL के एक 1500 मेगावाट के प्रोजेक्ट पर विचार करके कंपनी के पक्ष में सिफारिश भी की जा चुकी है. ये सनसनीखेज खुलासा द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में किया गया है. हालांकि जनार्दन चौधरी का कहना है कि वे उस बैठक में शामिल नहीं हुए थे, जिसमें AGEL के प्रोजेक्ट पर विचार किया गया, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कमेटी की बैठक की कार्यवाही में उनके शामिल नहीं होने का कहीं जिक्र नहीं है. बहरहाल, अडानी समूह के मोदी सरकार के साथ करीबी रिश्तों के विपक्ष के आरोपों के बीच, यह खुलासा सियासी रंग भी ले सकता है.
सितंबर में EAC के सदस्य बने जनार्दन चौधरी
दरअसल मोदी सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 27 सितंबर को हाइड्रो-इलेक्ट्रिसिटी और रिवर वैली प्रोजेक्ट्स पर विचार के लिए बनी एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (EAC) का पुनर्गठन करके उसमें जनार्दन चौधरी को शामिल किया. चौधरी इस कमेटी में शामिल 7 गैर-संस्थागत सदस्यों में एक हैं. जनार्दन चौधरी अप्रैल 2022 से अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (AGEL) को एडवाइजर (पंप स्टोरेज प्लांट एंड हाइड्रो) के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इससे पहले मार्च 2020 में वे एनएचपीसी के तकनीकी निदेशक के पद से रिटायर हुए थे. ईएसी सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति को लेकर हितों के टकराव का आरोप लग सकता है, क्योंकि AGEL के पंप स्टोरेज प्रोजेक्ट क्लियरेंस के लिए इसी EAC के पास आती हैं.
17-18 अक्टूबर की बैठक में AGEL के प्रोजेक्ट पर हुआ विचार
पुनर्गठित एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (हाइडल) की पहली बैठक 17-18 अक्टूबर को हुई. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि चौधरी ने 17 अक्टूबर को बैठक में हिस्सा लिया था और इसी दिन महाराष्ट्र के सतारा में अडानी ग्रीन एनर्जी की 1500 मेगावाट की तराली पंपिंग स्टोरेज परियोजना पर विचार किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक AGEL ने बैठक के दौरान प्रोजेक्ट के लेआउट में बदलाव के लिए परियोजना से जुड़ी शर्तों (ToR) में संशोधन की मांग की. कंपनी ने ऐसा तब किया, जब उसे पता चला कि प्रोजेक्ट का प्रस्तावित वाटर कंडक्टर सिस्टम एक मौजूदा विंड फॉर्म के नीचे से गुजरता है, जिसके लिए अंडर-ग्राउंड कंस्ट्रक्शन करना काफी मुश्किल होगा. कमेटी की बैठक में विस्तृत विचार-विमर्श के बाद AGEL की इस मांग को मानने के पक्ष में सिफारिश की गई.
मैं बैठक में शामिल नहीं हुआ : चौधरी
रिपोर्ट के मुताबिक जनार्दन चौधरी ने इंडियन एक्सप्रेस द्वारा संपर्क किए जाने पर कहा कि EAC में जब AGEL की परियोजना पर विचार किया गया, उस वक्त उन्होंने चर्चा में भाग नहीं लिया. उन्होंने कहा, ''जब यह मामला सामने आया तो मैं बैठक में अनुपस्थित रहा.'' इंडियन एक्सप्रेस ने जब उनसे कहा कि बैठक के मिनट्स यानी कार्यवाही में यह बात दर्ज नहीं है, तो उन्होंने कहा, "हम मिनट्स में बदलाव कर देंगे." चौधरी ने अपना पक्ष रखते हुए यह भी कहा कि “मंत्रालय को पता है कि मैं एक निजी कंपनी का सलाहकार हूं. लेकिन मैं किसी का कर्मचारी नहीं हूं और मैं दूसरों को भी सलाह दे सकता हूं.' ईएसी में मेरी नियुक्ति इस आधार पर की गई है कि एक सदस्य के रूप में मैं ईएसी के हित में अपनी राय दूंगा,''
EAC के चेयरमैन का पक्ष
आईआईटी-रुड़की के प्रोफेसर और AGEL के प्रोजेक्ट पर विचार करने वाली उपरोक्त EAC के चेयरमैन जी एच चक्रपाणि ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि “हमारी नियुक्ति की शर्तें कहती हैं कि अगर किसी सदस्य ने किसी परियोजना का प्रस्ताव देने वाले को सलाहकार के तौर पर अपनी सेवाएं प्रदान की हैं, तो वे उस परियोजना के अप्रेजल की प्रॉसेस से खुद को अलग कर लेंगे.” उन्होंने कहा कि हम सारे काम अपने नियमों के हिसाब से ही करते हैं. इसी EAC के सदस्य और पर्यावरण मंत्रालय में साइंटिस्ट (E) योगेन्द्र पाल सिंह ने भी इस बात की पुष्टि की है कि जनार्दन चौधरी AGEL के प्रोजेक्ट पर हुई चर्चा में शामिल नहीं हुए थे.
अप्रेजल समितियों में ऐसी नियुक्तियां कितनी सही?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि अप्रेजल समितियों में ऐसी नियुक्तियां होने के गंभीर नकारात्मक नतीजे देखने को मिल सकते हैं. उन्होंने कहा कि “सिर्फ इतना ही काफी नहीं है कि कोई सदस्य उस वक्त चर्चा में शामिल न हो, जब उसके एंप्लॉयर की परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा हो. क्या यह बात उसके एंप्लॉयर की प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के प्रोजेक्ट्स पर लागू नहीं होती? अगर ऐसे कई सदस्य समितियों में शामिल हों, तो वे कार्यवाही में शामिल न होते हुए भी क्या एक-दूसरे के हितों का ध्यान नहीं रख सकते?” उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में पक्षपात की गुंजाइश को दूर करना, पक्षपात साबित करने से ज्यादा जरूरी है.
क्या है EAC की अहमियत
एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी का काम प्रस्तावित सरकारी मंजूरी से पहले प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स पर विचार करके उनके बारे में अपनी सिफारिश देना होता है. दरअसल, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 2006 में जारी एनवायर्नमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट (EIA) नोटिफिकेशन में कहा गया है कि कुछ खास कैटेगरी में आने वाली परियोजनाओं के लिए मंजूरी से पहले एनवायर्नमेंटल क्लियरेंस हासिल करना जरूरी होता है. इसी काम के लिए 10 EAC बनाई गई हैं, जो अलग-अलग सेक्टर्स से जुड़े प्रस्तावों की जांच करने के बाद उनके क्लियरेंस के बारे में फैसला करती हैं. यानी इस कमेटी की सिफारिश एक तरह से सरकारी मंजूरी का आधार होती है या ये भी कह सकते हैं कि परियोजनाओं को मंजूरी से पहले हरी झंडी देने का काम यही समितियां करती हैं.
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AGEL की कई परियोजनाओं पर EAC को करना है विचार
फिलहाल AGEL की कई और परियोजनाओं पर भी इसी EAC को विचार करना है. इनमें 1500 मेगावाट के तराली प्रोजेक्ट के अलावा 2100 मेगावाट की पटगांव परियोजना, 2450 मेगावाट की कोयना-निवाकाने परियोजना और 1500 मेगावाट की मालशेज घाट भोरांडे परियोजना महाराष्ट्र में हैं, जबकि 850 मेगावाट की रायवाड़ा परियोजना और 1800 मेगावाट की पेडाकोटा परियोजना आंध्र प्रदेश में प्रस्तावित हैं. इनके अलावा अडानी ग्रीन एनर्जी आंध्र प्रदेश में कई और प्रोजेक्ट लगाने की योजना भी बना रही है, जिनमें कुरुकुट्टी में 1200 मेगावाट, करीवासला में 1000 मेगावाट, गंडीकोटा में 1000 मेगावाट और चित्रावती में 500 मेगावाट के प्रोजेक्ट शामिल हैं.