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कूनो नेशनल पार्क में 10 चीतों का रेडियो कॉलर हटाने की तैयारी, एक्सपर्ट बता रहे मौत का कारण

सरकार का दावा, रेडियो कॉलर की वजह से नहीं हो रही चीतों की मौत, लेकिन इंटरनेशनल एक्सपर्ट अपनी बात पर कायम

सरकार का दावा, रेडियो कॉलर की वजह से नहीं हो रही चीतों की मौत, लेकिन इंटरनेशनल एक्सपर्ट अपनी बात पर कायम

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FE Hindi Desk
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मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में 3 दिन के भीतर 2 चीतों की मौत हो गई. (IE File Photo)

तीन दिनों के भीतर 2 चीतों की मौत के बाद मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में 10 चीतों के शरीर से रेडियो कॉलर हटाए जाएंगे. वन्यजीव अधिकारियों की नसीहत पर इसकी तैयारी की जा रही है. दो दक्षिण अफ़्रीकी चीता एक्सपर्ट ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि चीतों की मौत के लिए रेडियो कॉलर जिम्मेदार हो सकते हैं. लेकिन भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने कहा है कि चीतों की मौत के लिए रेडियो कॉलर को कारण बताना वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है. मंत्रालय ने दावा किया कि चीतों की मौत प्राकृतिक कारणों (natural causes) से हुई है.

दक्षिण अफ्रीकी एक्सपर्ट अपनी बात पर कायम

दक्षिण अफ्रीका के चीता एक्सपर्ट एड्रियन टॉर्डिफ (Adrian Tordiffe) सरकार का बयान आने के बावजूद अपने इस निष्कर्ष पर कायम हैं कि चीतों की मौत की एक वजह रेडियो कॉलर भी हो सकते हैं. एड्रियन ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उनके कहने का यह मतलब भी नहीं है कि रेडियो कॉलर ही चीतों की मौत की इकलौती वजह हैं. उन्होंने कहा कि चीतों को रेडियो कॉलर अफ्रीका में भी लगाए जाते हैं, लेकिन वहां का मौसम भारत से काफी अलग है. भारत में मानसून के दौरान जिस तरह कुछ दिनों में ज्यादा बारिश होती है, वैसा अफ्रीका में नहीं होता. कूनो में रखे गए चीतों के लिए यह भारतीय मानसून का पहला अनुभव है. गीले मौसम में रेडियो कॉलर की वजह से बिलकुल अलग ढंग की समस्या देखने को मिल रही है. अगर अधिकारी इस बात को मानने से इनकार कर रहे हैं तो यह चिंता की बात है. अगर आप सच्चाई को स्वीकार नहीं करेंगे तो और जानवरों की मौत हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार के अधिकारी उनके विश्लेषण को भले ही खारिज कर रहे हों, लेकिन उन्होंने अपनी कोई अलग डायग्नोसिस नहीं दी है. एड्रियन का बयान इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों को भारत लाए जाने के प्रोजेक्ट से भी जुड़े रहे हैं.

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चीतों में रेडियो कॉलर से संक्रमण की रहती है आशंका

मध्य प्रदेश के चीफ फारेस्ट कंजर्वर (वाइल्डलाइफ) जे एस चौहान ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि मंगलवार को इस मुद्दे पर बैठक बुलाई गई है. उन्होंने भी माना कि मानसून के मौसम में रेडियो कॉलर के कारण संक्रमण फैलने की आशंका रहती है. ज्यादा नमी के कारण चीते की स्किन पर कॉलर की रगड़ लगने से घाव बन सकता है, जिसमें मक्खियों के कारण संक्रमण फैल सकता है. जे एस चौहान ने कहा कि चीतों के मौत की वजह एक ये भी हो सकती है. उन्होंने कहा कि उनकी मौत के लिए दूसरे कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं, जिसके लिए गहराई से जांच करने की ज़रूरत है. चौहान ने बताया कि हाल में जिन दो चीतों की मौत हुई है, उनके किडनी, हार्ट, स्प्लीन डैमेज हो गए. चीफ फारेस्ट कंजर्वर ने कहा कि रेडियो कॉलर कोई घातक मुद्दा नहीं है, यह एक कांट्रिव्यूटिंग फैक्टर हो सकता है और इसके समाधान किए जाने की बात उन्होंने कही है.

चीतों के शरीर से रेडियो कॉलर हटाने में लगेगा काफी वक्त

एक बयान में कहा गया कि हमें संदेह है कि इन दोनों नर चीतों में एक जैसी समस्या हो सकती है. हमारी मॉनिटरिंग के दौरान यही देखने को मिला. हम उनके रेडियो कॉलर हटाने जा रहे हैं. कॉमन सेंस तो यही कहेगा. सभी 10 जंगली चीतों के शरीर से रेडियो कॉलर हटाने में काफी वक्त लगेगा. बाड़े के अंदर 5 चीते भी हैं. हम यह नहीं कह सकते कि आज़ाद घूम रहे चीतों के रेडियो कॉलर हटाने में कितना समय लगेगा, लेकिन हमें उनके कॉलर हटा देना चाहिए और उन सभी की निगरानी करनी चाहिए हम इस मुद्दे पर सख्ती से निगरानी रखेंगे.

रेडियो कॉलर से चीतों की मौत को सरकार ने बताया अफवाह

मंत्रालय ने रविवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि रेडियो कॉलर के कारण होने वाली मौतों की खबरें अफवाहें थीं और वह वैज्ञानिक सबूतों पर आधारित नहीं थीं. मंत्रालय के तहत आने वाली नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) को चीता प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है. NTCA ने इस विज्ञप्ति में कहा कि सभी मौतें प्राकृतिक कारणों से होती हैं. विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि मीडिया में ऐसी रिपोर्टें हैं जिनमें चीतों की मौत के लिए उनके रेडियो कॉलर आदि सहित अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया है. ऐसी रिपोर्टें किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं हैं बल्कि अटकलें और अफवाहें हैं.

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