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Akshaya Tritiya Special: क्यों मनाई जाती है अक्षय तृतीया? सोने के अलावा इन चीजों को खरीदना भी शुभ, क्या है मुहूर्त और पूजा विधि

Akshay Tritiya Special: वैदिक पंचांग के अनुसार यह त्यौहार हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है. इस बार अक्षय तृतिया 22 अप्रैल को मनाया जाएगा.

Akshay Tritiya Special: वैदिक पंचांग के अनुसार यह त्यौहार हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है. इस बार अक्षय तृतिया 22 अप्रैल को मनाया जाएगा.

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FE Hindi Desk
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Akshay Tritiya Special: वैदिक पंचांग के अनुसार यह त्यौहार हर साला वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है. इस बार अक्षय तृतिया 22 अप्रैल को मनाया जाएगा.

Akshay Tritiya Special: अक्षय तृतीया भारतीय घरों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्यौहार हिंदू और जैन समुदाय के लोगों के लिए काफी मायने रखता है. चूंकि यह सबसे भाग्यशाली दिन माना जाता है, इसलिए इस दिन सभी आध्यात्मिक और भौतिक कार्य किए जाते हैं. वैदिक पंचांग के अनुसार यह त्यौहार हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है. इस बार अक्षय तृतिया 22 अप्रैल को मनाई जाएगी. इस दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है लेकिन अगर आप इसे खरीद नहीं सकते हैं तो कोई बात नहीं. इसके अलावा भी 5 ऐसी चीजें हैं जिसे आप खरीद सकते हैं, जिससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है. 

क्या है वो 5 चीजें  

पांचांग के अनुसार अक्षय तृतीय 22 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 28 मिनट पर शुरू हो रही है, जो सुबह 7 बजकर 46 मिनट पर खत्म हो जाएगी. यूं तो आज के दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है लेकिन इसके अलावा भी आप ये 5 चीजें खरीद सकते हैं. आज के दिन 11 कौड़ियां खरीदने और इसकी विधिवत पूजा करने से भी कृपा मिलती है. इसके अलावा आप दक्षिणावर्ती शंख, एकाक्षी नारियल, पारद शिवलिंग और स्फटिक का कछुआ खरीद सकते हैं. ऐसा करने से आपको धन, सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होगी. 

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पूजन विधि 

अक्षय तृतीया को हिंदू धर्म में काफी शुभ दिन माना जाता है. खरीदारी के लिहाज से नहीं बल्कि आध्यत्मिक दृष्टिकोण से भी आज के दिन का महत्त्व है. अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठाकर शीतल जल से स्नान करना चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. पूजन के दौरान उन्हें फल, मिठाई और सफेद फूल चढ़ाना चाहिए. इसके बाद आपको भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का विधिवत जाप करना चाहिए. इस दौरान कुछ दान का संकल्प लेकर आप भगवान् से अपनी इच्छा बता सकते हैं. कहते हैं कि आज के दिन भगवान सबकी मुराद पूरा करता है. 

क्यों इतना धूमधाम से मनाया जाता है अक्षय तृतिया 

अक्षय तृतीया का उत्सव भगवान कृष्ण की आस्था और सुदामा के साथ दोस्ती से जुड़ा हुआ है. आज के दिन हिंदू घरों में एक कहानी बहुत ही चाव से सुनाई जाती है. कहानी भगवान कृष्ण और उनके बचपन के सबसे करीबी दोस्त सुदामा की है. दोनों गुरुकुल में एक साथ रहते और पढ़ते थे. इस दौरान एक दिन उन्हें लकड़ी लाने के लिए जंगल में भेजा गया था, लेकिन बारिश होने लगी, इसलिए उन्हें एक पेड़ के नीचे छुपना पड़ा. इस दौरान कृष्ण को भूख लग गई और उन्होंने अपने मित्र सुदामा की ओर देखा. सुदामा के पास कुछ मुरमुरे थे, जिसे उन्होंने कृष्ण से साझा किया और उनकी भूख मिटाई. गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भगवान कृष्ण अपना राज-पाठ संभालने लगे लेकिन सुदामा की गरीबी लगातार बढ़ती गई और वह भिक्षा मांगकर अपना गुजर-बसर करने लगे. एक दिन सुदामा ने कृष्ण से मिलने का फैसला किया और कृष्ण को देने के लिए एक मुट्ठी चावल लेकर चले गए. कृष्ण अपने सबसे अच्छे दोस्त को देखकर बहुत खुश हुए और उनका स्वागत शाही तरीके से किया. कृष्ण की इस उदारता को देखकर सुदामा अभिभूत हो गए और उनसे कुछ भी मांगने का साहस नहीं जुटा सके. कुछ देर बाद वह खाली हाथ घर लौटने लगे और वापस आकर देखा की उनका घर धन से भरा हुआ है. आज के दिन लोग इसी दोस्ती को याद करते हैं और भगवान कृष्ण को याद कर खरीदारी करते हैं. इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मदिन अक्षय तृतीया के दिन मनाया जाता है.

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अक्षय तृतिया का क्या है महत्व?

अक्षय तृतिया के दिन दुकानदार और सेलर दोनों ही अच्छी बिक्री की उम्मीद करते हैं. खासतौर से ही आज के दिन हिंदू और जैन धर्म को मानने वाले सोना खरीदने पर जोर देते हैं. माना जाता है आज के दिन सोना खरीदने से सौभाग्य जागता है और आने वाले साल में बरक्कत बनी रहती है. यही नहीं, जैन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन भगवान ऋषभदेव का दिन माना जाता है. ऋषभदेव जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और आज ही के दिन वह गन्ने का रस पीकर अपनी एक साल की तपस्या समाप्त की थी. उन्हीं को देखते हुए जैन धर्म के अनुयायी आज दिन व्रत रखते हैं और गन्ने का रस पीकर अपनी तपस्या समाप्त करते हैं. 

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