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यूपी में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का राज्य सरकार का आदेश रद्द, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

यूपी का सियासी पारा बढ़ा, एसपी और कांग्रेस ने बीजेपी पर लगाया 18 ओबीसी जातियों को धोखा देने का आरोप

यूपी का सियासी पारा बढ़ा, एसपी और कांग्रेस ने बीजेपी पर लगाया 18 ओबीसी जातियों को धोखा देने का आरोप

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FE Hindi Desk
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Allahabad HC, UP, lawyers,

Special Secretary (justice department) Indrajeet Singh said the engagement of private lawyers not only causes heavy financial burden on the exchequer but also lowers the image of existing state lawyers who are competent enough to handle cases.

उत्तर प्रदेश की 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति (SC) की कैटेगरी में रखने के राज्‍य सरकार के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रद्द किये जाने के बाद राज्य में सियासी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है. प्रदेश के मुख्‍य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (SP) ने इन 18 पिछड़ी जातियों के 'हक' की लड़ाई लड़ने का इरादा जताया है, वहीं कांग्रेस ने सत्‍तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर इन जातियों के वोट लेकर उन्‍हें धोखा देने का आरोप लगाया है. बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी ने कहा है कि 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने के लिए राज्‍य सरकार द्वारा पहले जारी की गई अधिसूचनाएं गलत और 'असंवैधानिक' थीं. निषाद पार्टी ने साफ किया है कि वह इस मामले में अपना संघर्ष जारी रखेगी.

2016 और 2019 में जारी अधिसूचनाएं रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की बेंच ने 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की कैगेटरी में शामिल करने के लिए राज्‍य सरकार द्वारा 2016 और 2019 में जारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली अर्जी को स्‍वीकार करते हुए उन्हें रद्द कर दिया है. राज्‍य की तत्‍कालीन अखिलेश यादव सरकार ने साल 2016 में और योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने साल 2019 में 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की कैगेटरी में शामिल करने की अधिसूचना जारी की थी. लेकिन इन अधिसूचनाओं के अमल पर अदालत ने रोक लगा दी थी.

सन 2005 में मुलायम सरकार ने भी की थी ऐसी कोशिश

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इससे पहले 2005 में भी समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में बनी सरकार ने एक आदेश जारी करके इन पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कोशिश की थी, लेकिन उस वक्त भी इस आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. इसके दो साल बाद मायावती की बीएसपी सरकार ने पिछली सरकार के इस आदेश को रद्द कर दिया था. हालांकि बाद में मायावती ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर इनमें से कुछ जातियों को अनुसूचित जाति की कैगेटरी में शामिल करने को अपना समर्थन दे दिया था.

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यूपी में काफी अहम हैं ये 18 जातियां

यूपी की कुल ओबीसी आबादी में करीब 50 फीसदी हिस्सेदारी इन 18 जातियों - मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ की है. राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से ज्‍यादातर के नतीजे इनके वोटों से काफी हद तक प्रभावित होते हैं. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में इन जातियों का सियासी रुख काफी मायने रखता है. लिहाजा राजनीतिक दल इन जातियों को अपनी तरफ खींचने की पूरी कोशिश करेंगे.

आमतौर पर यादव बिरादरी में मजबूत समझी जाने वाली समाजवादी पार्टी भी अब अन्य पिछड़ी जातियों के बीच अपना असर बढ़ाना चाहती है. इसके लिए उसने अपना दल (कमेरावादी), महान दल और जनवादी पार्टी के साथ गठबंधन भी किया है. ये वो दल हैं, जो अन्य पिछड़ी जातियों के बीच असर रखती हैं. वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी भी यूपी में ओबीसी कैटेगरी की गैर-यादव जातियों का समर्थन हासिल करने पर काफी जोर देती रही है. अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी यूपी में बीजेपी के साथ हैं.

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2024 के लोकसभा चुनाव पर है विपक्ष की नजर

विपक्षी दलों के ताजा रुख से साफ है कि वे 18 पिछड़ी जातियों के इस मामले को अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश करेंगी. समाजवादी पार्टी के नेता राजपाल कश्यप ने इस मामले पर अपनी पार्टी के प्रयासों की तारीफ करते हुए कहा कि 2016 में अखिलेश यादव ने बहुत चर्चा के बाद 18 जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की अधिसूचना जारी करवाई थी. बीजेपी ने इन जातियों के लिए वादा तो किया लेकिन उसे निभाया नहीं. यह इन सबसे पिछड़ी जातियों के साथ विश्वासघात है. कश्‍यप ने कहा, ‘‘वे बीजेपी नेता और उनके सहयोगी नेता कहां हैं, जो पिछड़ी जातियों की राजनीति करते हैं?

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कांग्रेस ने भी बीजेपी पर हमला करते हुए दावा किया कि सत्तारूढ़ दल ने इन 18 पिछड़ी जातियों को धोखा दिया है. कांग्रेस प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश से यह साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने चुनाव में वोट डालने के लिए इन 18 जातियों के लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का भरोसा दिलाया और उनके वोट लेने के बाद उन्हें धोखा दे दिया. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है. अगर बीजेपी इन 18 जातियों की सचमुच हितैषी होती तो संसद में कानून लाकर इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने के फैसले को संवैधानिक रूप दे सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं करके धोखा दिया है.

निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने कहा कि राज्य सरकार के रद्द किए गए आदेश में एक "तकनीकी खामी" थी. उन्‍होंने कहा, “हम मझवार के आरक्षण के लिए लड़ना जारी रखेंगे जिसके तहत निषाद, केवट, मल्लाह और बिंद सहित सात जातियां आती हैं और इस संबंध में एक हस्ताक्षर अभियान शुरू करेंगे. निषाद ने इस बारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की बात भी कही है.

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