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सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि किसी आर्मी जवान को तभी दिव्यांगता पेंशन मिलेगा, अगर दिव्यांगता मिलिट्री से जुड़े कार्यों को पूरा करने में हुई हो और वह भी 20 फीसदी से अधिक.
Disability Pension: सुप्रीम कोर्ट ने आज सैन्य बलों के दिव्यांग पेंशन को लेकर अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने आज 19 जुलाई को कहा कि किसी आर्मी जवान को तभी दिव्यांगता पेंशन मिलेगा, अगर दिव्यांगता मिलिट्री से जुड़े कार्यों को पूरा करने में हुई हो और वह भी 20 फीसदी से अधिक. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की बेंच ने यह बात केंद्र सरकार की आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान कही है दी गई है. ट्रिब्यूनल ने आर्मी के एक जवान को दिव्यांग पेंशन ग्रांट किया था.
क्या है पूरा मामला?
आर्मी के एक जवान ने 4 जून 1965 को आर्मी ज्वाइन किया था. 10 साल 88 दिनों की कलर सर्विस के बाद उन्हें 30 अगस्त 1975 को रिजर्व्ड एस्टैब्लिशमेंट में ट्रांसफर कर दिया गया. रिजर्व्ड पीरियड के दौरान उन्होंने खुद को 7 जनवरी 1976 को वॉल्यूंटरली डिफेंस सिक्योरिटीज में एनरोल किया. 6 नवंबर 1999 को एनुअल लीव पर जाने के बाद सड़क पार करने के दौरान उनका एक्सीडेंट हो गया. मेडिकल बोर्ड ने दिव्यांगता के हिसाब से उसे निचले मेडिकल कैटेगरी में रखा. मेडिकल रिपोर्ट के हिसाब से 80 फीसदी दिव्यांगता के चलते वह 28 सितंबर 2000 को मिलिट्री सेवा के अयोग्य हो गए तो उन्होंने ट्रिब्यूनल के पास दिव्यांग पेंशन के लिए आवेदन किया. ट्रिब्यूनल ने उसी पेंशन की अर्जी को स्वीकृत कर दिया जिसके खिलाफ केंद्र सरकार ने याचिका दायर किया था.
सुप्रीम कोर्ट में ट्रिब्यूनल के तर्क खारिज
ट्रिब्यूनल के मुताबिक अगर किसी आर्मी जवान के साथ अधिकृत छुट्टी के दौरान कोई हादसा होता है और हादसे के दौरान उसने मिलिट्री सर्विस के हिसाब से गलत कार्य नहीं किया था तो वह मिलिट्री सर्विस की दिव्यांग पेंशन के लिए योग्य है. इसी आधार पर ट्रिब्यूनल ने आर्मी जवान की दिव्यांग पेंशन को मंजूरी दी थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट केंद्र की याचिका पर सुनवाई के दौरान एडीशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज के इस तर्क से समहत दिखा कि अगर कोई आर्मी जवान दिव्यांग होता है तो इसका मिलिट्री सेवा से कोई तर्कसंगत कनेक्शन होना चाहिए. इस केस में आर्मी जवान की छुट्टी शुरू होने के दो दिन बाद सड़क दुर्घटना में दिव्यांगता की स्थिति आई थी जिसका मिलिट्री सर्विस से कोई लेना-देना नहीं था. इस वजह से कोर्ट ने आर्मी जवान के दावे को खारिज कर दिया.
(Input: PTI)