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Ayodhya Ram Mandir: शुभ मुहूर्त दिन के 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड तक का रहेगा.
Ayodhya Ram Mandir Puja Muhurat: सालों का इंतजार आज खत्म हो रहा है. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और अब यह शुभ मुहूर्त आ गया है. राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए सुरक्षा के भी काफी इंतजाम किए गए हैं, जिसके चलते वहां इस शुभ मुहूर्त पर सभी का जाना संभव नहीं हो पाएगा. लेकिन चिंता न करें. अगर आप अयोध्या में जाकर लाइव दर्शन नहीं कर पा रहे हैं, तो उसी शुभ मुहूर्त (Ayodhya Ram Mandir Shubh Muhurat) पर भगवान राम की पूजा कर सकते हैं, जिस मुहूर्त पर प्राण प्रतिष्ठा होनी है.
प्राण प्रतिष्ठा का पूरा कार्यक्रम
22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के लिए सुबह 10 बजे से 'मंगल ध्वनि' के भव्य वादन का कार्यक्रम हुआ है. विभिन्न राज्यों से 50 से अधिक मनोरम वाद्ययंत्र लगभग दो घंटे तक इस शुभ घटना का साक्षी बन रहे हैं. बुलाए गए मेहमानों को 10:30 बजे तक रामजन्मभूमि परिसर में प्रवेश करना होगा. सिर्फ निमंत्रण का लेटर दिखकर प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी. बल्कि उस पर बने क्यूआर कोड के मिलान के बाद ही एंट्री मिलेगी.
प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त
भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 22 जनवरी को दोपहर 12:20 बजे शुरू होगा. प्राण प्रतिष्ठा की मुख्य पूजा अभिजीत मुहूर्त में की जाएगी. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समय काशी के विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला है. यह कार्यक्रम पौष माह के द्वादशी तिथि (22 जनवरी 2024) को अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश में होगा. जानकारों का कहना है कि इस शुभ मुहूर्त पर हर किसी को घर में रहते भगवान राम और राम भक्त हनुमान के मंत्रों का जाप करना चाहिए. आप हनुमान चालीसा, अष्टक या सुंदरकांड का पाठ भी कर सकते हैं.
84 सेकंड का शुभ मुहूर्त
प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त सिर्फ 84 सेकंड का है. शुभ मुहूर्त दिन के 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड तक का रहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों श्रीरामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी. यह अनुष्ठान काशी के प्रख्यात वैदिक आचार्य गणेश्वर द्रविड़ और आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित के निर्देशन में 121 वैदिक आचार्य कराएंगे. इस दौरान 150 से अधिक परंपराओं के संत-धर्माचार्य और 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तटवासी, द्वीपवासी, जनजातीय परंपराओं की भी उपस्थिति होगी.