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Union Budget 2021: सरकारी बैंकों के लेखा-जोखा में फंसे हुए कर्जों (NPA) की भारी समस्या के निराकरण के लिए कई ‘बैड बैंकों’ की जरूरत है. यह सुझाव उद्योग मंडल सीआईआई ने सरकार को दिया है. बैड बैंक ऐसे वित्तीय संस्थान होते हैं, जो दूसरे वित्तीय संस्थानों और बैंकों के वसूली में उलझे कर्जों को खरीद कर उसका प्रबंध करते हैं.
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) ने अपने बजट पूर्व (प्री-बजट) मैमोरेंडम में कहा है कि देश में एक नहीं अनेक बैड बैंक की जरूरत है. कोविड19 महामरी और उसकी रोकथाम के लिए सार्वजिनक पाबंदियों को लागू किए जाने के बाद एनपीए की समस्या बढ़ी है. सीआईआई की सिफारिश है कि सरकार को ऐसे नियम कानून बनाने चाहिए, जिनके आधार पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) और वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) बैंकों के एनपीए खाते खरीद सकें.
सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने कहा कि कोविड के बाद के दौर में, इस समस्या (फंसे हुए कर्जों) के निपटान के लिए बाजार में तय कीमतों पर आधारित समाधान तंत्र खोजना जरूरी है. फिलहाल बैंक अपने अटके कर्जों को विवेकपूर्ण बैंक-कार्य के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के तय नियमों के अनुसार एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को बेच सकते हैं. कर्जदाता इकाइयों को नए दिवाला कानून के तहत नीलामी की प्रक्रिया में भी डाला जा सकता है.
2017 के इकोनॉमिक सर्वे में भी उठा था मुद्दा
आर्थिक समीक्षा 2017 में सार्वजिनक क्षेत्र परिसम्पत्ति पुनर्वास एजेंसी (Public Sector Asset Rehabilitation Agency, PARA) नाम से बैड बैंक बनाने की सिफारिश की गयी थी. बैंकों का एनपीए बढ़ने से उनकी कर्ज देने की क्षमता घटती है, जिसका असर बाजार पर पड़ता है. संकटग्रस्त बैंकों की वित्तीय स्थिति ठीक करने के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में 80000 करोड़, 2018-19 में 1.08 लाख करोड़ और 2019-20 में 70000 करोड़ रुपये का बैंक रिकैपिटलाइजेशन किया. इस साल सितंबर में ससंद ने सरकारी बैंकों में और 20000 करोड़ रुपये की पूंजी डालने को मंजूरी दी.