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मणिपुर मामले की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला (J B Pardiwala) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Manoj Misra) भी शामिल हैं. (Photo: AP)
सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मणिपुर में जो कुछ भी हुआ उसे यह दलील देकर उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि ऐसी घटनाएं देश बाकी हिस्सो में भी होती है. देश की सबसे अदालत में सुनवाई के दौरान महिला वकील ने पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की घटनाओं का जिक्र कर कहा कि जैसे अदालत मणिपुर में महिलाओं की नग्न परेड की घटना को संजीदगी से ले रही है वैसे ही दूसरे सूबों में हुई वारदातों का संज्ञान भी लिया जाना चाहिए. वकील की बात सुनकर सीजेआई भड़क गए और कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बंगाल में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं. लेकिन मणिपुर का मामला बिल्कुल अलग है.
मानवता को शर्मसार करने वाली है मणिपुर की घटना
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम पश्चिम बंगाल या किसी दूसरे सूबे में हुई वारदात से मणिपुर मामले को नहीं जोड़ सकते. मणिपुर में जो कुछ हुआ वो मानवता को शर्मसार करने वाला है. मणिपुर मामले की सुनवाई कर रही पीठ का नेतृत्व चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ नेतृत्व कर रहे हैं. चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला (J B Pardiwala) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Manoj Misra) भी शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के वीडियो को सोमवार को “भयावह” करार दिया और दर्ज प्राथमिकियों के सिलसिले में अब तक हुई कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगी. अदालत ने कहा कि वह नहीं चाहती की राज्य की पुलिस मामले की जांच करे क्योंकि उन्होंने महिलाओं को वस्तुत: दंगाई भीड़ को सौंप दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हिंसाग्रस्त राज्य में स्थिति की निगरानी के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) या पूर्व न्यायाधीशों वाली एक समिति का गठन कर सकती है. हालांकि यह मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र और मणिपुर की ओर से पेश विधि अधिकारियों की दलीलों पर निर्भर करेगा.
सुप्रीम ने पूछा- मणिपुर पुलिस को FIR दर्ज करने में क्यों लगा 14 दिन?
पीठ ने मणिपुर हिंसा से संबंधित विभिन्न याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध किया है. अदालत ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके उन्हें घुमाने का यह वीडियो चार मई को सामने आया था, ऐसे में मणिपुर पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने में 14 दिन का समय क्यों लगा और 18 मई को मामला दर्ज किया गया. चीफ जस्टिस डी.वाई. के अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “पुलिस क्या कर रही थी? वीडियो मामले से संबंधित प्राथमिकी दर्ज होने के एक महीने और तीन दिन बीतने के बाद 24 जून को मजिस्ट्रेट अदालत को क्यों भेजी गई?”
पीठ ने कहा, “यह भयावह है. मीडिया में खबरें आई हैं कि पुलिस ने इन महिलाओं को दंगाई भीड़ के हवाले कर दिया था. हम नहीं चाहते कि पुलिस इस मामले को संभाले.” जब अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सवालों का जवाब देने के लिए समय मांगा, तो पीठ ने कहा कि उसके पास समय की कमी है और राज्य को उन लोगों को राहत प्रदान करने की "बहुत जरूरत" है जिन्होंने अपने प्रियजनों और घरों समेत सब कुछ खो दिया है. पीठ ने राज्य सरकार से जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में दर्ज 'जीरो एफआईआर' की संख्या और अब तक हुईं गिरफ्तारियों के बारे में विवरण देने को कहा. ‘जीरो एफआईआर’ किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में हुआ हो या नहीं. पीठ ने कहा, “हम यह भी जानना चाहते हैं कि राज्य में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए क्या पैकेज उपलब्ध कराया जा रहा है.”
इससे पहले दिन में, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि यदि शीर्ष अदालत मणिपुर हिंसा के मामले में जांच की निगरानी करती है तो केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है. शीर्ष अदालत ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए एक व्यापक प्रणाली बनाने की वकालत करते हुए पूछा कि राज्य में मई महीने से इस तरह की घटनाओं के मामले में कितनी प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं. जब मामला सुनवाई के लिए आया तो वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उन दो महिलाओं की ओर से पक्ष रखा जिन्हें चार मई के एक वीडियो में कुछ लोगों द्वारा निर्वस्त्र करके घुमाते हुए दिखाया गया था. सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मामले में एक याचिका दायर की है.
शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को कहा था कि वह हिंसाग्रस्त मणिपुर की इस घटना से बहुत दुखी है और हिंसा के लिए औजार के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल करना एक संवैधानिक लोकतंत्र में पूरी तरह अस्वीकार्य है. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वीडियो पर संज्ञान लेने के बाद केंद्र और मणिपुर सरकार को निर्देश दिया था कि तत्काल उपचारात्मक, पुनर्वास और रोकथाम संबंधी कदम उठाये जाएं और उसे कार्रवाई से अवगत कराया जाए. केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने से संबंधित मामले में जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है.
केंद्र ने कहा था कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध के मामले में सरकार कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति रखती है. गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपने सचिव अजय कुमार भल्ला के माध्यम से दायर एक हलफनामे में शीर्ष अदालत से मामले की सुनवाई को समय पर पूरा करने के लिए इसे मणिपुर के बाहर स्थानांतरित करने का भी आग्रह किया है. मामले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.