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Caste census timeline: राहुल गांधी बार-बार उठा रहे जातीय जनगणना की मांग, क्या है इस मसले का इतिहास?

Caste Census Demand: राहुल गांधी का सवाल, कांग्रेस के कार्यकाल में हुई थी जातीय जनगणना, फिर सरकार क्यों नहीं जारी करती जातियों के आंकड़े?

Caste Census Demand: राहुल गांधी का सवाल, कांग्रेस के कार्यकाल में हुई थी जातीय जनगणना, फिर सरकार क्यों नहीं जारी करती जातियों के आंकड़े?

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Viplav Rahi
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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी. कांग्रेस नेता ने अपनी इस यात्रा के दौरान भी एक बार फिर से जातीय जनगणना की मांग उठाई. (Photo shared by Congress on X)

Rahul Gandhi is raising caste census demand, what is the history of this issue: कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले कुछ अरसे से लगातार जातीय जनगणना की मांग उठा रहे हैं. सोमवार को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के कार्यक्रम में भी उन्होंने न सिर्फ एक बार फिर से यह मांग जोरशोर से उठाई, बल्कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर सबसे पहले जातीय जनगणना करके अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को उनका हक दिलाने का वादा भी कर दिया. साथ ही यह सवाल भी पूछ डाला कि मोदी सरकार को जातीय जनगणना कराने या कांग्रेस के राज में 2011 में हुई जातीय जनगणना के आंकड़े जारी करने से डर क्यों लग रहा है? दरअसल राहुल गांधी कुछ महीने पहले हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान भी अपनी रैलियों में भी इस मुद्दे को उठा चुके हैं. लेकिन संसद में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान उन्होंने इस मसले पर मोदी सरकार को जिस तरह से घेरने की कोशिश की, उससे साफ है कि कांग्रेस को जातीय जनगणना के मुद्दे में काफी संभावना नजर आ रही है.

क्या मंडल 2.0 साबित होगी जातीय जनगणना?

राहुल गांधी यह दावा भी कर रहे हैं कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए गठबंधन की सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान जातीय जनगणना कराई थी, लेकिन मोदी सरकार उसके आंकड़े जारी नहीं कर रही है. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बल्कि उसकी अगुवाई वाला विपक्ष का नया गठबंधन इंडिया (INDIA) जातीय जनगणना के मुद्दे को इसलिए उभारना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे की काट यही मुद्दा हो सकता है. कुछ लोग इसे मंडल 2.0 (Mandal 2.0) के तौर पर भी देखते हैं. जातीय जनगणना का मसला क्या वाकई मंडल 2.0 साबित होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है. लेकिन राहुल गांधी जातीय जनगणना की मांग को जिस तरह लगातार उठा रहे हैं, उससे इतना तो तय है कि चुनावी मौसम में इस पर फोकस बना रहेगा.

क्या है जातीय जनगणना का इतिहास

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कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान 2010 में समाजवादी पार्टी (SP), राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) जैसे सामाजिक न्याय की धारा से जुड़े दलों ने जातीय जनगणना की मांग उठाई. ये दल चाहते थे कि हर दस साल पर होने वाली जो जनगणना 2011 में होनी है, उसमें जनसंख्या के आंकड़े जातिगत आधार पर भी जुटाए जाएं. उस वक्त तक कांग्रेस या बीजेपी का जातीय जनगणना पर साफ रुख नहीं था. हालांकि सभी दलों में ओबीसी नेताओं का एक तबका इस मांग के साथ सहानुभूति रखता था. शुरुआत में यूपीए सरकार के गृह मंत्रालय ने जनगणना के दौरान पूछे जाने वाले सवालों की सूची में जाति को शामिल करने में हिचक जाहिर की.

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2010 में मंत्रियों के समूह के पास गया प्रस्ताव

आखिरकार मनमोहन सिंह की सरकार ने 27 मई 2010 को जातीय जनगणना के सुझाव को आगे विचार के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह (GOM) के पास भेज दिया. और फिर सितंबर 2010 में सरकार ने जातिगत गणना कराने का फैसला कर लिया.

2011 में शुरू हुई जातीय जनगणना

साल 2011 में यूपीए सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना (Socio-Economic Caste Census - SECC) की प्रक्रिया शुरू कर दी. इसके तहत आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया तो 2012 के अंत तक पूरी हो गई, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में जनगणना आंकड़ों की प्रोसेसिंग में काफी वक्त लगना स्वाभाविक है. लिहाजा, 2013 के अंत तक यह काम पूरा नहीं हो सका. इसके बाद 2014 में संसदीय चुनाव हुए और मोदी सरकार सत्ता में आ गई.

2016 में मोदी सरकार ने कही एक्सपर्ट कमेटी बनाने की बात

साल 2015-16 के दौरान मोदी सरकार ने देश के ग्रामीण इलाकों के लिए सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) के कुछ आंकड़े तो जारी किए, लेकिन उसमें जातियों से जुड़े आंकड़े शामिल नहीं थे. सरकार ने कहा कि उन आंकड़ों को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है. जुलाई 2016 में सरकार ने कहा कि जातीय आंकड़ों का वर्गीकरण करने और उन्हें अलग-अलग कैटेगरी में बांटने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अगुवाई में एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाएगी.

2018 में मोदी सरकार ने कहा आंकड़ों में गलतियां मिली हैं

इसके बाद मार्च 2018 में मोदी सरकार ने लोकसभा में कहा कि जातीय आंकड़ों की प्रोसेसिंग के दौरान उसमें कुछ गलतियां मिली हैं. गृह मंत्रालय ने कहा कि जातियों के आंकड़े प्रोसेसिंग के लिए रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस कमिश्नर को दिए गए हैं. इसके बाद अगस्त 2018 में सरकार ने राज्यसभा को बताया कि जातिगत आंकड़ों की प्रोसेसिंग में ज्यादा वक्त इसलिए लग रहा है, क्योंकि कुछ ऐसी समस्याएं सामने आई हैं, जो आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया से जुड़ी हैं. सरकार ने यह भी बताया कि उसने जो एक्सपर्ट कमेटी बनाने की बात 2016 में कही थी, उसका गठन अब तक नहीं किया गया है,

2021 में मोदी सरकार ने कहा, नहीं होगी जातीय जनगणना

इस बीच 2019 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आ गई. 2021 में मोदी सरकार के गृह मंत्रालय ने राज्य सभा में दिए एक जवाब में कहा कि जातीय जनगणना के बिना प्रोसेसिंग वाले आंकड़े (raw data) वर्गीकरण के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय को दे दिए गए हैं. सितंबर 2021 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में साफ कर दिया कि नई जनगणना में जातियों के आंकड़े जुटाने का उसका कोई इरादा नहीं है. सरकार ने अपने एफिडेविट में कहा कि सरकार ने काफी सोच-समझकर नीतिगत फैसला लिया है कि जनगणना के दौरान अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) को छोड़कर बाकी किसी भी जाति से जुड़ी जानकारियां नहीं जुटाई जाएंगी. बहरहाल, फिलहाल स्थिति यह है कि हर 10 साल पर होने वाली जो जनगणना 2011 के बाद 2021 में होनी थी, वह अब तक शुरू भी नहीं हो पाई है.

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