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COVID-19: दिल्ली में 5-17 साल वालों में कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव, Serological सर्वे में खुलासा

Serological Survey, Delhi/COVID-19: दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी को लेकर हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं.

Serological Survey, Delhi/COVID-19: दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी को लेकर हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं.

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Delhi Covid-19: दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी को लेकर हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं.

Serological Survey, Delhi, COVID-19 Delhi, Delhi Sero Survey, second serological survey, 5-17 age group most exposed to covid-19, anti bodies, maulana azad medical college, coronavirus pandemic, which group most infected from coronavirus Delhi Covid-19: दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी को लेकर हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं.

Serological Survey, Delhi/COVID-19: दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी को लेकर हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं. इस महीने दिल्ली में किए गए दूसरे सीरोलॉजिकल (Serological) सर्वे में पाया गया है कि 5 से 17 साल की आयु के नॉवेल कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले देखने को मिल रहे हैं. 5-17 साल के 34.7 फीसदी लोगों में कोविड-19 के एंटीबॉडी थे. ज​बकि 50 साल से अधिक आयु वाले 31.2 फीसदी लोगों में यह पाया गया. बता दें कि पहले यह कहा जा रहा था कि कोविड-19 का ज्यादा खतरा अधिक उम्र वर्ग वालों में है. सर्वें के अनुसार 18-49 साल के 28.5 फीसदी लोगों में कोविड-19 के एंटीबॉडी पाए गए.

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न्यूज एजेंसी के अनुसार दिल्ली गवर्नमेंट कमिटी के हेड डॉ महेश वर्मा का कहना है कि बच्चों और युवाओं को घर में रखना मुश्किल है. यहां तक ​​कि अगर वे स्कूल नहीं जा रहे हैं, तो वे खेलने के लिए बाहर जा सकते हैं. या वे इन डायरेक्ट रूट से कांट्रैक्ट में आ सकते हैं. उनका कहना है कि फिलहाल इसमें व्यापक स्टडी की जरूरत है. उनका कहना है कि यह समझना बहुत ही जटिल है कि कोरोना वायरस किन किन तरह से फैल रहा है. मैं एक परिवार को जानता हूं, जो घर से बाहर नहीं निकला, लेकिन उनके सदस्यों को फिर भी कोरोना का संक्रमण हो गया.

स्कूल बंद फिर भी बच्चे संक्रमित

सीरो के सर्वे में पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में 29.1 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ एंटी बॉडीज विकसित हो गए हैं. इससे पहले के सर्वे में पाया गया था कि 22 फीसदी लोगों में एंटी बॉडीज विकसित हुए हैं. अब अगस्त में हुआ सर्वेक्षण दिखाता है कि यह आंकड़ा बढ़कर 29.1 फीसदी हो गया है. हालांकि सर्वे के रिजल्ट्स के बाद सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर स्कूल बंद और फिर भी कम उम्र के लोगों में मामले क्यों बढ़े.

15000 वॉलंटियर्स पर हुआ सर्वे

यह सर्वे 1 अगस्त से 7 अगस्त के बीच किया गया था. सर्वे के लिए 15,000 से अधिक वॉलंटियर्स को एंटीबॉडी की उपस्थिति के लिए परीक्षण किया गया था. इसके रिजल्ट का मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) में विश्लेषण किया गया था. सर्वेक्षण में 4 आयु वर्ग के लोगों ने भाग लिया. इसमें लगभग 25 फीसदी 18 साल से कम उम्र के, 50 फीसदी 18 से 50 साल के बीच और शेष 50 साल से ऊपर आयु वर्ग के थे.

साउथ ईस्ट में सबसे ज्यादा प्रभाव

सर्वे दिल्ली के सभी 11 जिलों में आयोजित किया गया था. बीमारी का सबसे अधिक प्रसार साउथ ईस्ट जिले में पाया गया, जहां 32.2 फीसदी प्रतिभागी एंटीबॉडी के साथ पाए गए. इस जिले ने पिछली बार से सबसे बड़ी छलांग लगाई है. पिछले सर्वे में यहां 22.2 फीसदी प्रतिभागी एंटीबॉडी के साथ पाए गए थे.

तीसरा सर्वे 1 से 5 सितंबर के बीच

कोरोना पर काबू पाने के लिए दिल्ली सरकार ने हर महीने सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण (सीरो सर्वे) कराने का फैसला किया था. दिल्ली में अबतक दो सीरो सर्वे हो चुके हैं और तीसरा 1 से 5 सितंबर के बीच किया जाएगा. इसमें लगभग 17 हजार लोगों के सर्वेक्षण किए जाने की उम्मीद है. सीरो सर्वे के लिए नमूने दिल्ली के सभी 11 जिलों और सभी आयु वर्ग में एकत्र किए जाएंगे. बता दें कि पहला सीरो सर्वे 27 जून से 10 जुलाई के बीच आयोजित किया गया था. पहले सीरो सर्वे में 21,387 लोगों से नमूने लिए गए थे ,जबकि दूसरे दौर में 15 हजार नमूने एकत्र किए थे.

क्या होता है सीरोलॉजिकल सर्वे?

संक्रामक बीमारियों के संक्रमण को मॉनिटर करने के लिए सीरो सर्वे कराए जाते हैं. इन्हें एंटीबॉडी सर्वे भी कहते हैं. इसमें किसी भी संक्रामक बीमारी के खिलाफ शरीर में पैदा हुए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है. कोरोनावायरस या SARS-CoV-2 जैसे वायरस से संक्रमित मामलों में ठीक होने वाले मरीजों में एंटीबॉडी बन जाती है, जो वायरस के खिलाफ शरीर को प्रतिरोधक क्षमता देती है. बता दें कि कोरोनावायरस पहले से मौजूद रहा है, लेकिन SARS-CoV-2 इसी फैमिली का नया वायरस है, ऐसे में हमारे शरीर में पहले से इसके खिलाफ एंटीबॉडी नहीं है. लेकिन हमारा शरीर धीरे-धीरे इसके खिलाफ एंटीबॉडी बना लेता है.