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El-Nino: IMD ने कुछ दिनों पहले कहा था कि इस मानसून में एल नीनो के विकसित होने की लगभग 70 फीसदी संभावना है. (Express photo by Nirmal Harindran)
El-Nino in India: 2016 के बाद अब यानी सात साल बाद एल-निनो फिर से प्रशांत महासागर में वापस आ गया है. यूएस फेडरल एडमिनिस्ट्रेशन, नेशनल ओसनिक एंड एटमोस्फियरिक एसोसिएशन ने इस बात की जानकारी दी. हालांकि इसका अनुमान पहले ही लगाया जा चुका था. एल नीनो के इस दस्तक के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत के ऊपर इसका क्या असर होगा. भारतीय मौसम विभाग इसको लेकर पहले ही चेतावनी जारी कर चुका है. IMD ने कुछ दिनों पहले कहा था कि इस मानसून में एल-निनो के विकसित होने की लगभग 70 फीसदी संभावना है. अगर IMD की बात सच साबित हुई तो देश के खरीफ उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ सकता है.
क्या है El-Nino?
एक जगह से दूसरे जगह पर जाने वाली हवाएं जब कमजोर पड़ जाती हैं तब एल-निनो की स्थिथि बनती है. इसके वजह से से तापमान और बढ़ता है. इससे समुंद्र का तापमान भी 2-3 डिग्री तक बढ़ जाता है. इस घटना को ही एल- नीनो कहते हैं. एल-निनो कितना ताकतवर है वैज्ञानिक इसका अंदाजा ओसियन निनो इंडेक्स (ओएनआई) से लगाते हैं. इस इंडेक्स पर माप 0.5 से 0.9 के बीच आता है तो इसको कमजोर एल-निनो माना जाता है और 1 के उपर के माप को मध्यम एल-निनो माना जाता है. लेकिन अगर यही इंडेक्स 1.5 और 1.9 के बीच रहता है तो इसे एक मजबूत एल-निनो माना जाता है. एनओएए (NIO) ने इस बार 1.5 से अधिक के इंडेक्स की भविष्यवाणी कर दी है.
El-Nino भारत को कैसे करता है प्रभावित
भारतीय संदर्भ में अगर बात करें तो पिछले सौ वर्षों में देश को 18 बार सूखे का सामना करना पड़ा है. इसमें से 13 बार सुखा पड़ने में एल-निनो का हाथ रहा है. भारत में अगर एल-निनो विकसित होता है तो आमतौर देश में कम वर्षा होती है. साल 1900 से लेकर 1950 तक देश में 7 बार एल-निनो विकसित हुआ था. 1951-2021 के बीच 15 एल नीनो का सामना भारत को करना पड़ा था. 2000 के बाद इसके वजह से 4 बार सुखा का सामना करना पड़ा था. इस दौरान खरीफ या गर्मियों में बोए गए कृषि उत्पादन में भारी गिरावट देखी गई, जिससे इन्फ्लेशन काफी बढ़ा था.
भारत को क्या करने की है जरूरत?
केंद्रीय मौसम विभाग राज्यों को किसी भी प्रतिकूल स्थिति के लिए पहले से ही तैयार रहने के लिए कह चुका है. अगर भारत इसके लिए अभी से तैयार नहीं होता है बाद में उसे गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है. भारत को इस स्थिती से निपटने के लिए कई कदम और उठाने होंगे. जानकारों की मानें तो भारत को मौसम की भविष्यवाणी में सुधार, समय से पहले इसकी चेतावनी, जल संरक्षण को बढ़ावा देना, सूखा प्रतिरोधी फसलें और किसानों की क्रेडिट और बीमा विकल्पों तक पहुंच बढाने होंगें ताकि इसके जोकिमों को कम किया जा सके.