/financial-express-hindi/media/post_banners/X9e7O9wzJ8ito9pNy5Wo.jpg)
किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि नागरिकों को कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार है और इसमें कटौती करने का सवाल ही नहीं है. तीन नए कृषि कानूनों के मामले पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान भारत के चीफ जस्टिस (CJI) ने कहा कि नागरिकों को कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार है और इसमें कटौती करने का सवाल ही नहीं है. जिस चीज पर हम ध्यान दे सकते हैं, वह यह कि विरोध प्रदर्शन से किसी की जान को नुकसान नहीं होना चाहिए.
CJI ने कहा कि किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का हक है. हम इसके साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे लेकिन प्रदर्शन के तरीके के मामले को हम देख सकते हैं. कोर्ट केन्द्र सरकार से पूछेगी कि विरोध का क्या तरीका चल रहा है, इसमें थोड़ा बदलाव हो ताकि यह नागरिकों के आनेजाने के अधिकार को प्रभावित न करे. किसान हिंसा को भड़का नहीं सकते और न ही इस तरह एक शहर को अवरुद्ध कर सकते हैं.
तीन नए कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अपीलों की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बॉब्डे की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कोर्ट अभी कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा. आज फैसला किसानों के आंदोलन और नागरिकों की आवाजाही के मौलिक अधिकारों को लेकर होगा. कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है.
निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति पर विचार
CJI ने सुनवाई के दौरान कहा कि विरोध प्रदर्शन तब तक संवैधानिक है, जब तक यह किसी की जिंदगी या संपत्ति को नुकसान न पहुंचाए. केन्द्र और किसानों को बात करनी चाहिए. हम एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति के बारे में सोच रहे हैं. इससे पहले दोनों पक्ष अपनी बात रख सकते हैं. CJI ने सुझाव दिया कि स्वतंत्र समिति में पी साईंनाथ, भारतीय किसान यूनियन और अन्य लोग सदस्य बनाए जा सकते हैं. समिति जो फाइंडिंग्स देगी, उसका पालन किया जाना चाहिए. इस बीच प्रदर्शन जारी रह सकता है.
कोविड19 भी चिंता
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणगोपाल ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे किसानों में से किसी ने भी मास्क नहीं पहना हुआ है. वे बड़ी संख्या में एक साथ बैठे हैं. कोविड19 चिंता का विषय है, वे गांव जाएंगे और इसे फैलाएंगे. किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकते. पंजाब सरकार के प्रतिनिधि वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि राज्य को कोर्ट के इस सुझाव पर कोई आपत्ति नहीं है कि कुछ लोगों का समूह किसानों और केन्द्र के बीच बातचीत कराए. यह किसानों और सरकार का फैसला है कि कौन समिति में होगा.
शहर ब्लॉक करने से लोग रह सकते हैं भूखे
चीफ जस्टिस ने कहा कि दिल्ली को ब्लॉक करने से शहर के लोग भूखे रह सकते हैं. किसानों का मंतव्य बातचीत से पूरा हो सकता है. प्रदर्शन करते हुए केवल बैठे रहने से फायदा नहीं होगा. आगे कहा कि हम भी भारतीय हैं, हम किसानों की अवस्था से वाकिफ हैं और उनके मुद्दों के साथ सहानुभूति भी रखते हैं. लेकिन किसानों को अपने विरोध प्रदर्शन का तरीका बदलना चाहिए. हम सुनिश्चित करेंगे कि वे अपने मामले की पैरवी कर सकें और इसलिए हम समिति गठित करने के बारे में सोच रहे हैं. CJI ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे सभी किसान संगठनों को नोटिस पहुंच जाना चाहिए. यह भी सुझाव दिया कि मामले को विंटर ब्रेक के दौरान कोर्ट की वैकेशन बेंच के समक्ष रखा जाए.
कानून होल्ड करने की संभावना तलाशे सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से कानूनों को होल्ड पर रखने की संभावना खोजने को भी कहा है. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि क्या सरकार कोर्ट को आश्वस्त कर सकती है कि जब तक कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है, तब तक वह नए कृषि कानूनों को लागू करने पर कोई एग्जीक्यूटिव एक्शन नहीं लेगी.