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किसान यूनियनों ने सरकार का प्रस्ताव ठुकराया, कानूनों को वापस लेने की मांग दोहरायी

प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने गुरुवार को सरकार के तीनों कृषि कानूनों को निलंबित करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.

प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने गुरुवार को सरकार के तीनों कृषि कानूनों को निलंबित करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.

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farmer unions reject government proposal says to repeal laws completely

प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने गुरुवार को सरकार के तीनों कृषि कानूनों को निलंबित करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.

प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने गुरुवार को सरकार के तीनों कृषि कानूनों को निलंबित करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. इसके साथ प्रस्ताव में गतिरोध खत्म करने के लिए समाधान खोजने के लिए एक संयुक्त समिति स्थापित करने की भी बात थी, जिसे ठुकरा दिया गया है. इसका एलान संयुक्त किसान मोर्चा ने किया, जो दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर प्रदर्शन की अगुवाई कर रही यूनियनों का संयुक्त संगठन है.

मोर्चा द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि गुरुवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में सरकार द्वारा बुधवार को सामने रखा गया प्रस्ताव ठुकरा दिया गया. बयान में कहा गया है कि मोर्चा उन 143 किसानों को श्रद्धांजलि देता है जो अब तक इस आंदोलन में शहीद हुए हैं. ये साथी इस आंदोलन को लड़ते हुए हमसे अलग हो गए. इनका बलिदान बेकार नहीं जाएगा और वे इन कृषि कानूनों की वापसी के बिना नहीं जाएंगे.

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इसमें आगे कहा गया है कि तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों की संपूर्ण वापसी और सभी किसानों के लिए MSP का कानून लागू करने की मांग को दोहराया जाता है, जो आंदोलन की मांगे हैं.

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सरकार ने कानूनों को होल्ड पर रखने की कही थी बात

बुधवार की बैठक में सरकार की ओर से नए कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन किसान नेता कानूनों को वापस लेने पर अड़े रहे. बाद में सरकार ने नए कृषि कानूनों को 1-1.5 साल होल्ड करने का प्रस्ताव रखा और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल करने की भी बात कही.

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा था कि बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है. 22 जनवरी को किसी समाधान पर पहुंचने की संभावना है. किसान संगठनों के साथ बातचीत में हमने कहा कि सरकार नए कृषि कानूनों को एक या डेढ़ साल होल्ड करने के लिए तैयार है. मुझे खुशी है कि किसान संगठनों ने इसे बेहद गंभीरता से लिया है और कहा है कि वह इस पर गुरुवार को विचार करेंगे और 22 जनवरी को अपना फैसला बताएंगे.

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