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भारत की पहली ऑस्कर पुरस्कार विजेता भानु अथैया का निधन, 91 साल की उम्र में ली आखिरी सांस

भारत की पहली ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली व्यक्ति और कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का गुरुवार को निधन हो गया.

भारत की पहली ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली व्यक्ति और कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का गुरुवार को निधन हो गया.

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PTI
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first indian oscar winner and costume designer Bhanu Athaiya passed away at age of 91

भारत की पहली ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली व्यक्ति और कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का गुरुवार को निधन हो गया.

भारत की पहली ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली व्यक्ति और कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का गुरुवार को निधन हो गया. उनकी बेटी ने बताया कि उनका अपने घर में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. उनकी उम्र 91 साल थी. अथैया को 1983 की फिल्म गांधी में अपने काम के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला था. उनकी बेटी के मुताबिक, उनका निधन शांति के साथ नींद में हुआ. उनका अतिम संस्कार दक्षिण मुंबई के चंदनवाड़ी शवगृह में किया गया.

ब्रेन में था ट्यूमर

अथैया की बेटी ने बताया कि उनका निधन आज सुबह हो गया. आठ साल पहले उनके ब्रेन में एक ट्यूमर पाया गया था. पिछले तीन सालों से, वे बिस्तर पर थीं क्योंकि उनके शरीर के एक हिस्से को लकवा मार गया था.

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अथैया का जन्म कोल्हापुर में हुआ था. उन्होंने हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त की 1956 की सुपरहिट फिल्म सीआईडी में कॉस्ट्यूम डिजाइनर के रूप में अपने करियर की शुरूआत की थी. रिचर्ड एटेनबॉरो की फिल्म गांधी के लिये उन्हें ब्रिटिश कॉस्ट्यूम डिजाइनर जॉन मोलो के साथ बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन का ऑस्कर पुरस्कार मिला था. महात्मा गांधी की भव्य बायोपिक ने उस ऑस्कर में सबसे ज्यादा आठ पुरस्कार जीते थे.

अथैया ने ऑस्कर अवॉर्ड में अपने भाषण में कहा था कि यह विश्वास करने के लिए ज्यादा ही अच्छा है. अकादमी और सर रिचर्ड एटेनबॉरो का दुनिया का ध्यान भारत पर आकर्षित करने के लिए धन्यवाद.

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पांच दशक लंबा करियर

अथैया ने 2012 में अपना ऑस्कर सुरक्षित रूप से रखे जाने के लिये एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंसेज को लौटा दिया था. उन्होंने बताया था कि उन्हें पुरस्कार को वापस देने के बारे में कोई पछतावा नहीं है. उन्होंने कहा था कि वे कुछ समय से यह चाहती थीं. वे उनकी मदद करने के लिए अकादमी का धन्यवाद करना चाहती हैं. पहले भी बहुत से ऑस्कर विजेताओं ने अपने ऑस्कर को सुरक्षित रखने के लिए लौटाया है. यह अकादमी के साथ एक परंपरा है.

अथैया ने पांच दशक के अपने लंबे करियर में 100 से ज्यादा फिल्मों के लिए अपना योगदान दिया. उन्हें गुलजार की फिल्म लेकिन (1990) और आशुतोष गोविरकर की फिल्म लगान (2001) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.

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