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फिच ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था जनवरी-मार्च, 2022 से पहले महामारी से पूर्व का स्तर हासिल नहीं कर पाएगी.
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फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) में 10.5 फीसदी की भारी गिरावट का अनुमान लगाया है. रेटिंग एजेंसी ने मंगलवार को चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के वृद्धि दर के अनुमान को संशोधित कर -10.5 फीसदी कर दिया. इससे पहले फिच ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया था. फिच ने कहा कि देश में कोविड-19 संक्रमण लगातार बढ़ रहा है. इसके चलते देश के विभिन्न हिस्सों में टुकड़ों में लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है, जिससे आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है. यह दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट के सबसे ऊंचे आंकड़ों में से है. हालांकि, फिच का मानना है कि अर्थव्यवस्था अब खुल रही है, जिससे जुलाई-सितंबर की तिमाही में इसमें उल्लेखनीय सुधार देखने को मिल सकता है. इसके साथ ही उसने कहा कि इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार सुस्त और असमान रहेगी.
वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर अपने सितंबर के अपडेट में फिच ने कहा कि सबसे अधिक मंदी भारत, ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों में देखने को मिल रही है. फिच ने कहा कि इन देशों में लॉकडाउन काफी सख्त और लंबा (अप्रैल-जून) रहा है. इन देशों के खुदरा और अन्य क्षेत्रों में आवाजाही सबसे अधिक प्रभावित रही है.
फिच ने कहा कि लघु और मध्यम अवधि में कई चुनौतियों हैं जिनसे वृद्धि में सुधार रुका हुआ है. फिच ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस के नए मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसकी वजह से कुछ राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को अंकुशों को फिर से सख्त करना पड़ा है. महामारी के लगातार फैलने तथा देशभर में छिटपुट बंदी की वजह से धारणा कमजोर हुई है और आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं.’’
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कंपनियों और हाउसहोल्ड की आमदनी घटी
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि गतिविधियों में भारी गिरावट से परिवारों और कंपनियों की आय भी बुरी तरह प्रभावित हुई है. इस दौरान वित्तीय समर्थन भी सीमित रहा है. इसके साथ ही वित्तीय क्षेत्र की संपत्ति की गुणवत्ता नीचे आ रही है, जिससे बैकों के कमजोर पूंजी बफर के बीच ऋण प्रावधान पर असर पड़ेगा. फिच ने कहा कि मुद्रास्फीति ऊंची रहने से परिवारों की आय पर दबाव बढ़ा है और सप्लाई चेन बाधित हुई है. उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी से कीमतें बढ़ रही हैं. हालांकि, उसका अनुमान है कि कमजोर मांग, सप्लाई चेन की बाधाएं समाप्त होने तथा मानसून अच्छा रहने से मुद्रास्फीति नीचे आएगी.
फिच ने कहा, ‘‘हमने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी के अपने अनुमान को संशोधित कर -10.5 फीसदी कर दिया है. जून में जारी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट के अनुमान को पांच प्रतिशत अंक बढ़ाया गया है. हमारा अनुमान है कि हमारे वायरस पूर्व के अनुमान की तुलना में 2022 की शुरुआत तक गतिविधियों में करीब 16 प्रतिशत की गिरावट आएगी.’’
सितंबर तिमाही में GDP में 9.6% आएगी गिरावट?
फिच का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी जुलाई-सितंबर की तिमाही में जीडीपी में 9.6 फीसदी की गिरावट आएगी. तीसरी अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में अर्थव्यवस्था 4.8 फीसदी नीचे आएगी. वहीं, जनवरी-मार्च की चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 4 फीसदी रहेगी. फिच ने कहा कि अगले वित्त वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 11 फीसदी रहेगी. 2022-23 में अर्थव्यवस्था 6 फीसदी की दर से बढ़ेगी. इस बीच, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने भी मंगलवार को चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान को संशोधित कर -11.8 फीसदी कर दिया. इससे पहले इंडिया रेटिंग्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 5.3 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया था.
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फिच ने कहा कि चीन को छोड़कर अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में यह महामारी काफी तेजी से फैल रही है. इस समय कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे अधिक मामले ब्राजील, रूस और भारत जैसे देशों में हैं. फिच ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था दो अंकीय वृद्धि दर्ज करेगी. इसकी मुख्य वजह पिछले वित्त वर्ष का आधार प्रभाव होगा. फिच ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था जनवरी-मार्च, 2022 से पहले महामारी से पूर्व का स्तर हासिल नहीं कर पाएगी.’’