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सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त टेक्निकल कमेटी को 5 फोन में मालवेयर मिला लेकिन उसके पेगागस होने का ठोस सबूत नहीं.
इजरायली कंपनी के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस का भारत में इस्तेमाल किए जाने के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई टेक्निकल कमेटी को केंद्र सरकार ने सहयोग नहीं दिया. पेगासस जासूसी मामले की जांच के संदर्भ में मोदी सरकार के रुख पर ये गंभीर टिप्पणी देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन वी रमना ने की है. उन्होंने ये बात विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों के मोबाइल फोन में खुफिया तरीके से पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर डाले जाने के आरोपों से जुड़े केस की सुनवाई के दौरान कही. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच कर रही है, जिसमें सीजेआई के अलावा जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट की बनाई टेक्निकल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है, जिसमें सरकार से सहयोग न मिलने की बात भी सामने आई है.
5 मोबाइल फोन में मालवेयर मिला : CJI
चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई टेक्निकल कमेटी ने जिन 29 मोबाइल फोन की जांच की उनमें से 5 में मालवेयर मिला. लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि वो मालवेयर पेगासस ही था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए खुद तीन सदस्यों की टेक्निकल कमेटी बनाई है. कोर्ट ने इस कमेटी के काम की निगरानी का जिम्मा रिटायर्ड जज जस्टिस आर वी रवींद्रन को सौंपा था. इस कमेटी ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है, जिसका अध्ययन करने के बाद ही सीजेआई ने आज मोदी सरकार के रवैये पर गंभीर टिप्पणी की है. सीजेआई का कहना है कि इस कमेटी के साथ भी सरकार का रुख वैसा ही रहा, जैसा सुप्रीम कोर्ट में नजर आया था.
टेक्निकल कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने के मसल पर अदालत ने कहा कि जिन लोगों ने कमेटी को जांच के लिए अपने फोन दिए थे, उनमें से कुछ ने रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किए जाने का अनुरोध किया है, क्योंकि उसमें कुछ सेंसेटिव डेटा भी हो सकता है. बेंच ने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्हें तय करना है कि रिपोर्ट के कौन से हिस्से सार्वजनिक किए जा सकते हैं. जस्टिस सूर्य कांत ने इस मसले पर कहा, हम रिपोर्ट को पूरी तरह पढ़ेंगे और जो भी हिस्सा सार्वजनिक किए जाने लायक लगेगा, उसे शेयर किया जाएगा.
सरकार ने 'सीमित हलफनामे' में नहीं दी थी विस्तृत जानकारी
पेगासस का इस्तेमाल करके गैरकानूनी ढंग से जासूसी कराए जाने के आरोप लगाने वाली 12 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के सामने आई थीं, जिनमें पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा कि इन याचिकाकर्ताओं ने अदालत के सामने जो तथ्य रखे, वो पहली नजर में विचार करने लायक हैं. इन याचिकाओं के जवाब में केंद्र सरकार ने जो लिमिटेड एफिडेविट या सीमित हलफनामा दायर किया था, उसमें आरोपों का बेहद अस्पष्ट ढंग से खंडन किया गया था. सरकार ने याचिकाओं में लगाए गए आरोपों का कोई स्पेसिफिक या मुद्दावार खंडन पेश नहीं किया था. इन हालात में हमारे पास याचिकाओं में लगाए गए आरोपों को पहली नजर में विचार करने लायक मानकर उनकी जांच करने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह गया.
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सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी को जानकारी देने का वादा किया था
इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने जो हलफनामा दायर किया था, उसमें अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों का खंडन करते हुए कहा गया था कि यह मसला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है, लिहाजा सारी बातें हलफनामे में लिखकर सार्वजनिक नहीं की जा सकती हैं. इस पर कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में कोर्ट का न्यायिक समीक्षा का अधिकार काफी सीमित होता है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सरकार को हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र करने भर से कुछ भी करने की खुली छूट मिल जाए. कोर्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में दखल नहीं देना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि सिर्फ नेशनल सिक्योरिटी का नाम लेने से ही कोर्ट की जुबान बंद हो जाए और वह महज तमाशबीन बनकर रह जाए.
इस पर सरकार ने कहा था कि अगर इस मामले की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाए तो वो उसे ज्यादा जानकारी मुहैया करा सकती है. सरकार ने खुद ही एक्सपर्ट कमेटी बनाने की इजाजत भी कोर्ट से मांगी थी. लेकिन कोर्ट ने सरकार का अनुरोध यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ऐसा करना न्याय के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ होगा, क्योंकि इंसाफ सिर्फ होना ही काफी नहीं है, यह दिखना भी जरूरी है कि इंसाफ हो रहा है. इसके बाद कोर्ट ने खुद ही तीन तकनीकी विशेषज्ञों की एक्सपर्ट कमेटी बनाई और उसकी निगरानी का काम जस्टिस रवींद्रन को सौंपा. इतना ही नहीं, कोर्ट ने जस्टिस रवींद्रन की मदद के लिए अदालत ने साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट डॉ संदीप ओबरॉय और पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी को भी नियुक्त किया था. लेकिन अब खुद चीफ जस्टिस रमना को कहना पड़ रहा है कि सरकार ने इस एक्सपर्ट कमेटी के साथ भी जांच में सहयोग नहीं किया. विपक्ष की प्रतिक्रियाओं से साफ है कि सरकार के इस रवैये ने पूरे मामले में नए सिरे से सवाल उठाए जाने का रास्ता खोल दिया है.