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माल बिकेगा नहीं तो बनाने से क्या फायदा? सरकार फैक्ट्री से पहले खोले बाजार: PHD चैंबर

PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स का कहना है, कोरोना के कारण मंदी, बेरोजगारी जैसी आर्थिक समस्याएं मंडरा रही हैं. इसकी गंभीरता से बचना है तो कारोबारियों की हर प्रकार से मदद करनी होगी.

PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स का कहना है, कोरोना के कारण मंदी, बेरोजगारी जैसी आर्थिक समस्याएं मंडरा रही हैं. इसकी गंभीरता से बचना है तो कारोबारियों की हर प्रकार से मदद करनी होगी.

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Ashutosh Ojha
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govt to announce stimulus package for MSME also resume markets before says PHD chambers amid coronavirus lockdown

नौकरी के नए मौके तो आएंगे लेकिन कोरोना काल के बाद यह अनुपात और गिरने की आशंका है. (PTI)

govt to announce stimulus package for MSME also resume markets before says PHD chambers amid coronavirus lockdown नौकरी के नए मौके तो आएंगे लेकिन कोरोना काल के बाद यह अनुपात और गिरने की आशंका है. (PTI)

कोरोनावायरस संक्रमण (Coronavirus) की चेन को तोड़ने के लिए बीते 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन है. इस बंदी में हर तरह की गतिविधि थम गई है. छोटे-बड़े सभी तरह के बिजनेस कमोबेश ठप हैं. ऐसे में इस महामारी से उबरने के साथ-साथ लोगों की आमदनी भी चलती रहे, रोजगार भी बचा रहे और अर्थव्यवस्था भी बढ़े, इसको भी सुनिश्चित करना आवश्यक है. इंडस्ट्री का कहना है कि कोरोना के कारण मंदी, बेरोजगारी जैसी आर्थिक समस्याएं हमारे सिर पर मंडरा रही हैं. इसकी गंभीरता से बचना है तो कारोबारियों की हर प्रकार से मदद करनी होगी. PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स के को-चेयरमैन (यूपी चैप्टर) मनीष खेमका ने ''फाइनेंशियल एक्सप्रेस हिंदी ऑनलाइन'' से बातचीत में कहा कि फैक्ट्री से पहले बाजार खोलना अधिक जरूरी है. यदि माल बिकेगा नहीं तो बनाने से क्या फायदा.

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खेमका का कहना है जहां कोरोना नहीं फैला है वहां अनुमति देने में कोई हर्ज नहीं. अनजाने में हुई चूक के लिए कारोबारी को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है. हालांकि, केंद्र सरकार ने स्पष्टीकरण दे दिया है लेकिन प्रदेश सरकारों को दोबारा यह दोहराना चाहिए कि एफआईआर या सीलिंग की काईवाई नहीं होगी.

अव्यावहारिक आदेश बढ़ा रहे कारोबारियों की मुश्किलें

मनीष खेमका का कहना है कि कोरोना के कारण आर्थिक समस्याएं गहराने का संकट है. इसकी गंभीरता से बचना है तो कारोबारियों की हर प्रकार से मदद हमें करनी होगी. अनेक प्रकार के अव्यावहारिक आदेश कारोबारियों की मुश्किल बढ़ा रहे हैं. जिनसे सरकार को बचना चाहिए. जैसेकि स्कूलों को कहा गया फीस न लें और सैलरी भी समय पर दें. किसी को नौकरी से न निकालें. यह सारी बातें एक साथ कैसे संभव हैं? सरकार खुद जो कर सकती है पहले वह करे. सभी बातों के लिए अनेक कानून पहले ही मौजूद हैं.

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सिर्फ यूपी में उसकी GDP के 10% नुकसान का आकलन

खेमका का कहना है कि अर्थव्यवस्था या स्टेट जीडीपी के लिहाज से यूपी भारत का पांचवा सबसे बडा राज्य है. उत्तर प्रदेश की वर्तमान जीडीपी करीब 18 लाख करोड़ रुपये की है. हर पांच साल में इसमें दोगुनी से कुछ कम वृद्धि होती है. करीब दो माह के लॉकडाउन से फिलहाल 10 फीसदी के आसपास करीब डेढ़ से दो लाख करोड़ के नुकसान की उम्मीद है. लॉकडाउन जारी रहा तो यह और बढ़ सकता है.

खेमका का कहना है कि उत्तर प्रदेश में भारत की सबसे अधिक आबादी रहती है. भारत में मंदी की वजह से देश के सबसे अधिक बेरोजगार उत्तर प्रदेश में होंगे. फरवरी 2020 में यूपी सरकार के पोर्टल पर 34 लाख बेरोजगार दर्ज थे. कोरोना काल में यह संख्या बढ़कर दोगुनी हो सकती है.

MSME को पैकेज पर केंद्र का इंतजार

मझोले और छोटे उद्योग यानी MSME सेक्टर को इस संकट काल में राहत देने के मसले पर मनीष खेमका का कहना है कि सरकार की मंशा सही है लेकिन कई बार दवा गलत हो जा रही है. जिसके दूरगामी साइड इफेक्ट हो सकते हैं. एमएसएमई पर कोई पैकेज देने से पहले प्रदेश सरकारें केंद्र के पैकेज का इंतजार कर रही है. यह जल्दी जारी होना चाहिए. विभिन्न करों और बिजली की दरों को कम करना होगा.

कोरोना काल के बाद देश में नई नौकरियों के मसले पर खेमका ने बताया कि भारत में करीब 60 फीसदी की लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेशियो की दर पहले ही काफी कम है. जबकि चीन और अनेक विकसित देशों में यह 80% से भी ज्यादा है. नौकरी के नए मौके तो आएंगे लेकिन कोरोना काल के बाद यह अनुपात और गिरने की आशंका है.

दवा/वैक्सीन तय करेगी आर्थिक रिकवरी का समय

यहां एक अहम मसला यह भी है कि कोरोना संकट के बाद अर्थव्यवस्था को उबरने में कितना समय लगेगा, खेमका कहते हैं, 1929 की महामंदी अमेरिका में शुरू हुई थी. जहां इसका जोर पहले दो साल तक ज्यादा रहा था. पूरी तरह इससे मुक्त होकर अर्थव्यवस्था को दोबारा रफ्तार पकड़ने में 10 साल लगे थे. वर्तमान संकट कमोवेश सभी देशों में एक सा है. यह प्रमुख रूप से स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा से जुड़ा है. आर्थिक समस्या तो यह बाद में साबित होगा. इतना कहा जा सकता है कि यदि कोरोना की प्रभावी दवा साल भर में आ गई तो पिछली महामंदी की तुलना में इससे हम जल्दी उबर जाएंगे.