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ज्ञानवापी सर्वे में शिवलिंग मिलने के अपुष्ट दावे ने फैलाई सनसनी, सर्वे रिपोर्ट अब तक पेश नहीं. (File Photo: Indian Express)
SC to Hear Petition Against Gyanvapi Survey : वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थानीय कोर्ट के आदेश पर कराए जा रहे सर्वे ने सोमवार को एक नया ही मोड़ ले लिया. सर्वे के लिए कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर ने तो सोमवार को अपना काम खत्म करने के बाद कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया, लेकिन सर्वे के वक्त मौके पर मौजूद एक पक्ष के लोगों ने मस्जिद परिसर के भीतर शिवलिंग मिलने के दावे करने शुरू कर दिए. वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा कहते रहे कि सर्वे में क्या मिला, इस बारे में कोई भी आधिकारिक जानकारी जारी नहीं की गई है, अगर कोई व्यक्ति निजी तौर पर किसी तरह का दावा कर रहा है, तो उसकी सच्चाई की पुष्टि नहीं की जा सकती. लेकिन डीएम की बातों को हाशिए पर रखते हुए एक पक्ष के वकील ने स्थानीय अदालत में शिवलिंग मिलने के दावे के आधार पर अर्जी दायर कर दी और कोर्ट ने भी उसे मंजूर करते हुए उस हिस्से को सील करने का आदेश दे दिया, जहां कथित शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है. इस बीच, मस्जिद पक्ष से जुड़े लोगों का यह बयान भी सामने आया कि जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है, वह दरअसल पानी का फव्वारा है.
सोमवार को पूरा हुआ ज्ञानवापी सर्वे
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में तीन दिन से जारी यह सर्वे सोमवार 16 मई को सुबह 8 बजे से 10.15 बजे तक चली कार्रवाई के बाद पूरा हुआ. एक पक्ष ने इसी दौरान मस्जिद परिसर में मौजूद 'वजूखाने' के जलाशय में शिवलिंग मिलने का दावा किया, जबकि मस्जिद की मैनेजमेंट कमेटी के एक प्रवक्ता ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है, वह दरअसल फव्वारा है. उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय कोर्ट ने उस हिस्से को सील करने का आदेश जारी करने से पहले मस्जिद कमेटी के वकीलों की बात पूरी तरह नहीं सुनी.
ज्ञानवापी में बाबा महादेव का प्रकटीकरण : केशव प्रसाद मौर्य
बहरहाल, मीडिया का एक बड़ा हिस्सा शिवलिंग मिलने के दावे को किसी अंतिम सत्य की तरह पेश करते हुए सनसनीखेज तरीके से उछालने में जुट गया. उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ट्वीट से इन खबरों पर मुहर लगाने का काम किया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर ज्ञानवापी में बाबा महादेव के प्रकटीकरण ने देश की सनातन हिंदू परंपरा को एक पौराणिक संदेश दिया है." इसके बाद उन्होंने ज्ञानवापी मंदिर और ज्ञानवापी ट्रुथ नाउ (#GyanvapiTruthNow) हैशटैग के साथ लिखा, "सत्य" को आप कितना भी छुपा लीजिए, लेकिन एक दिन सामने आ ही जाता है क्योंकि "सत्य ही शिव" है." दूसरी तरफ एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने भी यह बयान जारी करके माहौल को गर्माने का काम किया कि अयोध्या के बाद अब हम एक और मस्जिद खोने को तैयार नहीं हैं.
निजी दावों की सच्चाई की पुष्टि नहीं : डीएम, वाराणसी
सनसनीखेज कवरेज के इस शोर में वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा का मीडिया को दिया यह बयान कहीं गुम हो गया कि कोर्ट के आदेश पर हुए सर्वे में क्या मिला है, इस बारे में कोई भी आधिकारिक जानकारी जारी नहीं की गई है. अगर कोई व्यक्ति निजी तौर पर किसी तरह का दावा कर रहा है, तो उसकी सच्चाई की पुष्टि नहीं की जा सकती और सिर्फ अदालत ही सर्वे में मिली जानकारी की कस्टोडियन है. डीएम ने यह भी कहा कि कोर्ट ने एडवोकेट कमिश्नर को अपनी सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए मंगलवार तक का वक्त दिया है, जिसके बाद कोर्ट का अगला आदेश सामने आएगा. उससे पहले सर्वे के वक्त मौके पर मौजूद किसी भी शख्स को इस बारे में कोई बात सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए कि सर्वे में क्या मिला है. लेकिन ऐसा लगा कि उनकी बात कोई सुन नहीं रहा है.
मंगलवार को भी सुर्खियों में बना रहेगा मुद्दा
बहरहाल, ज्ञानवापी सर्वे का यह मसला मंगलवार को भी सुर्खियों में बने रहने के आसार हैं. ऐसा दो वजहों से होगा. एक तो वाराणसी की स्थानीय अदालत के पिछले आदेश के मुताबिक ज्ञानवापी सर्वे की आधिकारिक रिपोर्ट उसे मंगलवार को सौंपी जानी है. और दूसरा कारण यह कि सुप्रीम कोर्ट भी मंगलवार को इस मसले की सुनवाई करने वाला है. सर्वोच्च न्यायालय की मंगलवार की कामकाजी सूची के मुताबिक जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की खंडपीठ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन देखने वाली कमेटी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की याचिका पर सुनवाई करेगी. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने ज्ञानवापी में सर्वे रोकने का अंतरिम आदेश जारी करने की मस्जिद पक्ष की मांग तो ठुकरा दी थी, लेकिन उनकी याचिका को जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के सामने पेश करने का लिखित आदेश दे दिया था.
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की अनदेखी?
सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद कमेटी का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने दलील दी थी कि ज्ञानवापी मस्जिद हमेशा से एक मस्जिद रही है और उसकी स्थिति में कोई बदलाव करना पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 (Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991) के खिलाफ होगा. दरअसल संसद में पारित यह कानून देश के किसी भी धार्मिक स्थल को उसी हैसियत में बनाए रखने की बात करता है, जो देश की आजादी के दिन यानी 15 अगस्त 1947 को थी. मतलब यह कि देश के जिस धार्मिक स्थल का जो स्वरूप 15 अगस्त 1947 को था, वो आगे भी बना रहेगा, उसे किसी अन्य धर्म से जुड़े उपासना स्थल में परिवर्तित नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं, यह कानून किसी धार्मिक स्थल को कन्वर्ट करने की मांग करने वाली कानूनी याचिका को स्वीकार करने या ऐसी किसी कानूनी प्रक्रिया को शुरू करने पर भी रोक लगाता है. यही वजह है कि मस्जिद पक्ष ज्ञानवापी परिसर में सर्वे कराने के स्थानीय अदालत के आदेश को असंवैधानिक बताकर उसका विरोध कर रहा है.
दिल्ली की महिलाओं की याचिका पर आया आदेश
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे का यह मसला दरअसल दिल्ली की रहने वाली पांच महिलाओं की याचिका से जुड़ा है. इन महिलाओं की याचिका में हर रोज ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार के पास स्थित श्रृंगार गौरी की पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग की गई थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान ही वाराणसी के सिविल जज रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का आदेश दे डाला. कोर्ट ने एक एडवोकेट को सर्वे कमिश्नर नियुक्त करते हुए उन्हें 17 मई तक सर्वे पूरा करके रिपोर्ट देने को कहा है, लेकिन उससे एक दिन पहले ही मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के दावे ने पूरे मसले को अलग ही तूल दे दिया. बहरहाल, अब सबकी नजरें मंगलवार को वाराणसी की अदालत में सर्वे की आधिकारिक रिपोर्ट पेश किए जाने के साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट पर भी टिकी रहेंगी, जहां इस मसले पर मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई होनी है.
(इनपुट : पीटीआई)