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केवल कर्ज नहीं है किसानों की आत्महत्या की वजह: PMEAC मेंबर शमिका रवि

राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, डेमोग्राफिक ग्रुप्स के बीच बड़े पैमाने पर यह बहस चल रही है कि भारत के किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. इसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में आत्महत्याएं खतरनाक रूप से बढ़ रही हैं.

राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, डेमोग्राफिक ग्रुप्स के बीच बड़े पैमाने पर यह बहस चल रही है कि भारत के किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. इसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में आत्महत्याएं खतरनाक रूप से बढ़ रही हैं.

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Bloomberg
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High debt is not driving Indian farmers to suicide: PMEAC member Shamika Ravi

In UP alone, ITC has covered 2 lakh farmer households under the programme and so far about 30,000 have reported doubling of their income, Rai said.

High debt is not driving Indian farmers to suicide: PMEAC member Shamika Ravi भारत के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक, हाल के वर्षों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या वास्तव में घटी है. (Image: Express)

भारत में इस वक्त चुनावी सीजन चल रहा है. कई राज्यों की सरकारों ने किसानों को लुभाने के लिए गरीब किसानों का करोड़ों डॉलर का कर्ज माफ करना शुरू कर दिया है. राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, डेमोग्राफिक ग्रुप्स के बीच बड़े पैमाने पर यह बहस चल रही है कि भारत के किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. इसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में आत्महत्याएं खतरनाक रूप से बढ़ रही हैं. लेकिन किसानों की आत्महत्या की एकमात्र वजह कर्ज ही है, यह जरूरी नहीं है, कैसे? बता रही हैं प्राइम मिनिस्टर्स इकोनॉमिक एडवायजरी काउंसिल (PMEAC) की मेंबर शमिका रवि....

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किसानों की आत्महत्या के आंकड़े एक अलग ही कहानी बयां करते हैं. भारत के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक, हाल के वर्षों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या वास्तव में घटी है. 2016 में ऐसी मौतों की संख्या उससे पहले के 16 सालों के मुकाबले कुछ कम रही थी.

किसान आत्महत्या और गरीबी में स्पष्ट लिंक नहीं

किसानों की आत्महत्या और गरीबी के बीच कोई स्पष्ट लिंक नहीं दिखता है. आत्महत्या का आंकड़ा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे गरीब प्रदेशों से ज्यादा महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत अमीर राज्यों में है. अगर कर्ज में डूबे होने के मामलों की जांच की जाए, बैंकों या अन्य कर्जदाताओं से कर्ज लेने वाले परिवारों का परसेंटेज देखा जाए तो यह सच है कि गरीब किसानों पर देनदारी ज्यादा रहती है. उनका डेट टू असेट रेशियो बहुत ज्यादा होता है और अमीर परिवारों के मुकाबले उन पर फॉर्मल व इनफॉर्मल लोन भी ज्यादा होते हैं.

अमीर किसान भी कर रहे आत्महत्या

नेशल सैंपल सर्वे ऑफिस के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले किसानों में से लगभग 90 फीसदी के पास 2 एकड़ से ज्यादा जमीन थी. हर 10 में से 6 किसान 4 एकड़ से ज्यादा जमीन के मालिक थे. यह सदियों पुरानी इस धारणा को तोड़ता है कि आज भी हर किसान लालची और बेशर्म कर्जदाताओं का मोटा कर्ज चुकाने के लिए खेतों में श्रमिकों की तरह काम करता है.

1950 के बाद से सरकार की ज्यादातर सब्सिडी वाली लोन स्कीमों का एक मकसद किसानों को लालची कर्जदाताओं के अलावा भी विकल्प उपलब्ध कराना है. बिहार जैसे राज्यों, जहां कर्जदाताओं का बोलबाला है, वहां कम आत्महत्याएं देखने को मिली हैं. कुल फॉर्मल लोन में किसान आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामलों वाले महाराष्ट्र का आंकड़ा 87 फीसदी है, जबकि नेशनल एवरेज 57 फीसदी है.

FMCG सेक्टर की 45% खपत ग्रामीण इलाकों में

कई लोगों को ऐसा लगता है कि किसान अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं, जबकि हकीकत ये है कि भारत के किसान काफी अच्छा कर रहे हैं. ग्रामीण परिवारों की ​आर्थिक स्थिति जानने का एक तरीका है कि यह देखा जाए कि उनकी खरीदारी कितनी है. इस वक्त फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स यानी एफएमसीजी सेक्टर में ग्रामीण इलाके की ओर से खपत 45 फीसदी है. यह दर्शाता है कि ग्रामीण इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी बेहतर होने और डिजिटाइजेशन की बदौलत मांग में इजाफा हुआ है. पिछले तीन सालों में ग्रामीण इलाकों में बिक्री, शहरी इलाकों के मुकाबले तेजी से बढ़ी है. वहां खपत में ग्रोथ इस वक्त 9.7 फीसदी है.

पॉलिसीमेकर्स को क्या महसूस करने की है जरूरत

पहला यह कि भारत में ग्रामीण इकोनॉमी नाम की कोई चीज नहीं है. संकटग्रस्त परिवार हर जगह मिल जाएंगे. हां ये हो सकता है कि वे या तो बहुत ही निचले स्तर के हों, या शायद देश के किसी विशेष राज्य में हों या शायद अमीर किसान हों. समस्या को ज्यादा प्रभावी तरीके से हल करने के लिए ज्यादा लक्षित प्रोग्राम्स की जरूरत है.

दूसरा किसानों की परेशानी की कर्ज ही एकमात्र वजह हैं, यह जरूरी नहीं है. हां ये जरूर है कि कर्ज की वजह से किसानों की आत्महत्या के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. भारत में ऐतिहासिक रूप से आत्महत्या के आम कारण परिवार की परेशानियां और बीमारी होती हैं. इनमें से बीमारी को लेकर पर्याप्त पॉलिसीज हों, इस पर पिछले कुछ दशकों से फोकस बढ़ा है. हेल्थकेयर तक पहुंच और रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर भी इस बात में अहम भूमिका निभाते हैं कि किसान कितना आशावादी और सुरक्षित महसूस करते हैं.

इन मुद्दों में से हर एक को एक अलग हल की जरूरत है. उदाहरण के तौर पर एक ओर जहां देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर किसानों को फसल की कम कीमतों की दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में उनकी मदद करने का सबसे प्रभावी तरीका डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर होगा.

आयुष्मान भारत और उज्ज्वला से हैं उम्मीदें

स्वास्थ्य के मामले में नए नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन मिशन यानी आयुष्मान भारत से रूरल हेल्थकेयर बेहतर होनी चाहिए. गरीब परिवारों को फ्री एलपीजी कनेक्शंस से उनका खर्च कम होना चाहिए और महिलाओं को चूल्हे पर खाना पकाने से सेहत के मोर्चे पर होने वाले नुकसान से राहत मिलनी चाहिए. भारत के कई इलाकों में महिलाओं की मौतें चूल्हे पर खाना पकाते वक्त उठने वाले धुंए के चलते होती हैं.

केवल कर्ज माफी पर्याप्त नहीं

कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि किसानों की हालत सुधारने के लिए केवल कर्ज माफी काफी नहीं है. उनकी सच में मदद करने की चाह रखने वालों को किसानों की वास्तविक जरूरतों का पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए.