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महामारी में जब हर सेक्टर में नकारात्मक ग्रोथ थी, अकेले कृषि क्षेत्र ऐसा रहा, जिसमें सकारात्मक विकास दर रही.
Indian Economy 2020: दुनिया के इतिहास में साल 2020 'कोरोना महामारी' के बुरे समय के रूप में याद किया जाएगा. कोविड-19 महामारी से दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह चरमरा गई. भारतीय अर्थव्यवस्था में भी रिकॉर्ड नकारात्मक ग्रोथ दर्ज की गई. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली यानी जून तिमाही की विकास दर नकारात्मक 24 फीसदी रही. कोविड-19 लॉकडाउन और उसके चलते ठप पड़ी कमोबेश सभी आर्थिक गतिविधियां इसकी प्रमुख वजह रहीं. इन सबके बीच कई ऐसे बदलाव भी हुए, जिनका सकारात्मक असर आने वाले समय में दिखाई देगा. इस महामारी में जब हर सेक्टर में नकारात्मक ग्रोथ थी, अकेले कृषि क्षेत्र ऐसा रहा, जिसमें सकारात्मक विकास दर रही. यानी, एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद कृषि सेक्टर ही साबित हुआ.
बहरहाल, इस महामारी से न केवल आर्थिक नजरिए में बड़े पैमाने पर बदलाव आया, बल्कि सरकार की प्राथमिकताएं और आम लोगों की खर्च और बचत करने की आदतें भी बदलती दिखाई दी. सरकार का मजबूत पक्ष यह रहा कि राजकोषीय घाटे की बहुत ज्यादा परवाह न कर सरकार ने खर्च को बनाए रखने और आर्थिक सुधार के कदमों को जारी रखा. अभी इस बात को सटीक तौर पर नहीं कहा जा सकता कि सरकार अपने सुधार के उपायों को धरातल पर उतारने में कितना कामयाब रही. कोविड-19 महामारी के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या बदलाव हुए, कंज्यूमर से लेकर छोटे कारोबार पर कैसा असर हुआ, इन अहम मुद्दों को हमने एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरूआ से समझने का प्रयास किया.
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1. कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने दिखाई ताकत
अभीक बरूआ बताते हैं, कोविड-19 महामारी के समय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताकत समझ में आई. महामारी का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर तुलनात्मक रूप से कम रहा. इससे जुड़े क्षेत्रों का प्रदर्शन भी दूसरों से बेहतर रहा. वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में कृषि विकास दर 3.4 फीसदी की दर से बढ़ी और पहली तिमाही यह इकलौता क्षेत्र रहा, जिसमें सकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई. बरूआ अनुमान जताते हैं कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 16 फीसदी तक पहुंच सकती है, जो वित्त वर्ष 2020 में 14.6 फीसदी रही थी. यानी, महामारी कृषि और इससे जुड़े सेक्टर को एक व्यापक अवसर के रूप में सामने लेकर आई.
2. उपभोक्ताओं की बदल गई खर्च की आदतें
अभीक बरूआ का कहना है, महामारी में उपभोक्ताओं के व्यवहार में एक व्यापक बदलाव देखा गया. घर में रहने के दिशानिर्देश, सामाजिक दूरी और वर्क फ्राम होम के विकल्पों से उपभोक्ताओं के व्यवहार के तौर-तरीकों में बदलाव आया. मसलन, सोशल डिस्टेंसिंग के चलते पर्सनल व्हीकल खरीदने पर उपभोक्ताओं का जोर बढ़ा, जिससे आटो सेक्टर को बल मिल रहा है. दूसरे, आपसी संपर्क वाले जितनी भी सेवाएं थीं, वो बुरी तरह प्रभावित रही जबकि ई-कॉमर्स और डिजिटल सर्विसेज में जोरदार मांग देखी गई.
बरूआ बताते हैं, 'ऑनलाइन' मोड में खरीदारी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि UPI पेमेंट्स में मई 2020 से लगातार बढ़ोतरी है. वस्तुओं की ई-शॉपिंग के अलावा ऑनलाइन सेवाएं जैसेकि ऑनलाइन शिक्षा, कंसल्टेंसी या स्वास्थ्य सेवाओं की अच्छी खासी डिमांड रही. इसके अलावा, लैपटॉप, कम्यूटर्स, स्मार्टफोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान और हेल्दी फूड प्रोडक्ट्स कोरोना में सबसे हिट आइटम रहे. इस बात की संभावना है कि महामारी के दौर के बाद भी उपभोक्ताओं का यह व्यवहार बना रह सकता है.
3. महामारी ने सिखाई 'बचत' की आदत
कोविड-19 महमारी के चलते घरेलू बचत यानी हाउसहोल्ड सेविंग्स की आदतों में बदलाव देखा गया है. दरअसल, आर्थिक विकास दर पर महामारी के असर के चलते जो अनिश्चितता बनी, उसने 2020 में बचत की आदतों को काफी बढ़ावा दिया है. इसके चलते इस साल बैंकों की जमा यानी डिपॉजिट में बढ़ोतरी देखी गई. रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में हाउसहोल्ड फाइनेंशियल सेविंग्स जीडीपी का 21.4 फीसदी हो गई, जो वित्त वर्ष 2020 की चौथी तिमाही में 10 फीसदी थी. इसमें सबसे अधिक रुझान म्यूचुअल फंड्स और इंश्योरेंस की तरफ दिखाई दिया. शेयर में अधिक रिटर्न के चलते, म्यूचुअल फंडों में नेट हाउसहोल्ड इन्वेस्टमेंट वित्त वर्ष 2021 पहली तिमाही में म्यूचुअल जीडीपी का 1.7 फीसदी हो गया.
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4. MSMEs और सेवाओं पर असर
कोरोना महामारी का सबसे अधिक नकारात्मक असर छोटे, मझोले कारोबार यानी एमएसएमई सेक्टर और संपर्क से जुड़ी सेवाओं पर पड़ा. इसमें सरकार की इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम यानी ईसीजीएल जैसी योजनाओं के सहयोग से धीरे-धीरे सुधार आ रहा है. स्वास्थ्य आपदा के चलते सर्विस सेक्टर में ट्रैवल, टूरिज्म, ट्रांसपोर्ट, होटल्स एंड रेस्टोरेंट इंडस्ट्रीज बुरी तरह प्रभावित हुई. कोविड-19 वैक्सीन की उपलब्धता से इन सेक्टर में रिकवरी आने की उम्मीद है. हालांकि, तत्काल राहत की उम्मीद कम लग रही है.
5. RBI ने मौद्रिक नीतियों का लिया सहारा
महामारी के दौर में जब अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर रहा है, उस समय आरबीआई की तरफ से कई अहम नीतिगत निर्णय किए गए. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ से विकास दर को बूस्ट देने के लिए मई 2020 से नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया, जबकि खुदरा महंगाई दर 6 फीसदी ऊपर बनी हुई है. इसके अलावा, आरबीआई ने सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी सुनिश्चित कराई और उधारी यानी कर्ज लेने की लागत को कम रखने के लिए जरूरी उपाए किए.
अर्थव्यवस्था के लिए खर्च बढ़ाने पर फोकस
अर्थव्यवस्था में नकारात्मक ग्रोथ के बावजूद सरकार ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए सरकारी खर्च में बढ़ोतरी करने के मूड में है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि सरकार अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए खर्च में बढ़ोतरी कर सकती है, चाहे इससे बजट घाटे में और बढ़ोतरी हो जाए. सरकार जल्दबाजी में प्रोत्साह खर्च (राहत पैकेज) में कमी करने का फैसला नहीं लेगी. इसके अलावा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी सरकारी कंपनियां कैपिटल एक्सपेंडिचर जारी रखें. इस समय जिस तरह के हालात हैं, उसमें खर्च बढ़ाए जाने की जरूरत है और फिस्कल डेफिसिट से चिंतित होने की जरूरत नहीं है.
एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी खर्च का रुझान चौंकाने वाला है. इस साल सरकार ने करीब 24 लाख करोड़ रुपये के कई रिफॉर्म्स का एलान किया. इसमें अप्रैल में 20.97 लाख करोड़ (जिसमें आरबीआई का 8.01 लाख करोड़ शामिल), अक्टूबर में 0.73 लाख करोड़ और नवंबर 2020 में 2.65 लाख करोड़ रुपये का एलान शामिल है. इसका मससद सप्लाई और डिमांड को बूस्ट देना है. इनमें से अधिकांश खर्च सब्सिडी और ट्रांसफर के रूप में है. इसमें 3.70 लाख करोड़ का एमएसएमई के लिए कोलेटर फ्री आटोमेटिक लोन, अधीनस्थ कर्ज, इक्विटी इन्फ्यूजन शामिल है. इसके अलावा एनबीएफसी के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम, किसान क्रेडिट कार्ड लोन, स्ट्रीट वेंडर्स के लिए 10,000 रुपये तक लोन, प्रधानमंत्री आवास योजना क्रेडिटी लिंक्ड सब्सिडी, शिशु मुद्राा लोन में 2 फीसदी इंटरेस्ट सबवेंशन जैसे एलान शामिल रहे.
हालांकि, वित्त वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही में सरकारी खर्च घटकर 3.62 लाख करोड़ रहा, जोकि पहली तिमाही में 4.86 लाख करोड़ रुपये रहा. कंट्रोल जनरल आफ अकाउंट्स (CGA) के आंकड़ों को देखें तो वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही के मुकाबले दूसरी तिमाही में रेवेन्यू और कैपिटल एस्पेंडेजर यानी राजस्व एवं पूंजीगत व्यय दोनों में गिरावट रही. समीक्षाधीन अवधि में राजस्व व्यय में (-)19.5 फीसदी और पूंजीगत व्यय में (-)12.1 फीसदी की ग्रोथ रही. इसमें एक अच्छी बात यह रही कि खर्च में गिरावट के बावजूद ग्रोथ में सुधार है. चौथी तिमाही में इसमें और सुधार की गुंजाइश है.
राजकोषीय घाटा GDP का 8% रहने की उम्मीद
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार का राजस्व संग्रह बजटीय अनुमान से 3.8 लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है. वहीं, सरकार कोविड के चलते अधिक खर्च किया है, जो कि 4.5 लाख करोड़ हो गया है. दूसरी ओर, सीजीए के खर्च को लेकर ताजा रुझानों के अनुसार, सरकार अपने कुछ बजटीय खर्चों को कम कर सकती है, जो करीब 50 हजार से 80 हजार करोड़ रुपये है. इन सभी बातों पर ध्यान में रखते हुए यह आकलन है कि वित्त वर्ष 2021 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 7.8-8.0 फीसदी या करीब 15.5-15.8 लाख करोड़ रह सकता है.
पिछली तिमाहियों में GDP ग्रोथ
Q1FY21: (-)23-9%
Q4FY20: 3.1%
Q2FY20: 4.5%
Q3FY20: 4.7%
Q1FY20: 5%
(Source: CSO)