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एक रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना से संक्रमित लोगों को दो साल तक कई तरह की मानसिक बीमारियों का खतरा बाकी लोगों के मुकाबले अधिक रहता है.
कोविड से उबरने वाले लोगों में मेंटल हेल्थ और न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर दुनिया भर में चिंता की बड़ी वजह बने हुए हैं. एक ताजा स्टडी से पता चला है कि कोविड संक्रमण का शिकार बन चुके लोगों में इस तरह की समस्याओं का अनुपात दो साल बाद भी बाकी लोगों के मुकाबले अधिक है.
द लैंसेट साइकियाट्री (The Lancet Psychiatry) में छपे एक रिसर्च पेपर ने इस मुद्दे पर कई अहम बातें बताई हैं.
इस स्टडी से पता चला कि कोविड संक्रमण के बाद सामान्य मानसिक विकार जैसे बेचैनी और अवसाद (anxiety and depression) के अधिक मामले सामने आए. हालांकि यह बढ़ा हुआ जोखिम तेजी से कम हो गया. जिन लोगों को कोविड था, उन लोगों में इन विकारों की दर उन लोगों से अलग नहीं थी, जिन्हें कुछ महीने पहले सांस की बीमारी पैदा करने वाले दूसरे इंफेक्शन हुए थे.
राहत की बात यह रही कि कोविड संक्रमण के बाद बेचैनी और डिप्रेशन जैसी परेशानियों का खतरा बच्चों में बढ़ा नहीं था. साथ ही जिन लोगों को कोविड हुआ था, उन्हें पार्किंसंस रोग होने की आशंका भी दूसरे लोगों से ज्यादा नहीं पाई गई. जबकि महामारी की शुरुआत में इसे लेकर काफी चिंता जाहिर की जा रही थी.
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स्टडी के चिंताजनक नतीजे
कोविड संक्रमण के बाद पूरे दो साल तक मनोविकृति, दौरे पड़ने या मिर्गी, ब्रेन फॉग और याददाश्त चले जाने (डिमेंशिया) जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा हुआ नजर आया. उदाहरण के लिए कोविड के बाद के दो वर्षों में बुजुर्गों को डिमेंशिया की शिकायत होने यानी उनकी याददाश्त चले जाने का खतरा 4.5 फीसदी रहा, जबकि सांस की दूसरी बीमारियों से पीड़ित लोगों के मामले में यह जोखिम 3.3 फीसदी ही था. बच्चों में कोविड के कारण मनोविकृति और दौरे (psychosis and seizures) का खतरा भी बढ़ा हुआ पाया गया. यह स्टडी इस बात की भी पुष्टि करती है कि कोरोना का ओमिक्रॉन वैरिएंट इसके पिछले डेल्टा वेरिएंट की तुलना में बहुत कम खतरनाक है, लेकिन इससे संक्रमित लोगों में भी न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग के जोखिम उतने ही हैं, जितने डेल्टा इंफेक्शन से पीड़ित लोगों में हैं.
मैक्सिम टैक्वेट (Maxime Taquet) के नेतृत्व में हुए इस शोध के दौरान कोविड 19 से संक्रमित लगभग 12.5 लाख लोगों के ई- हेल्थ रिकॉर्ड को खंगाला गया. इनमें से ज्यादातर लोग अमेरिका में रहने वाले थे. इन सभी लोगों के दो साल तक के रिकॉर्ड को 14 प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट्स (neurologists) और मनोरोग विशेषज्ञों (psychiatrists) की टीम ने ट्रैक किया. इन रोगियों में मिले लक्षणों की तुलना दूसरे समूह से की गई, जिन्हें फेफड़े के किसी और इंफेक्शन का सामना करना पड़ा था. शोधकर्ताओं की टीम ने 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों, 18 से 65 साल के वयस्कों और 65 वर्ष से अधिक उम्र वाले बुजुर्गों की अलग-अलग जांच की. टीम ने उन लोगों की भी तुलना की, जो कोराना के नए वैरिएंट के उभरने के बाद कोविड से संक्रमित हुए थे. हाल ही में सामने आए ओमिक्रोन वैरिएंट से संक्रमित लोगों के आंकड़े इंफेक्शन के करीब पांच महीने बाद तक के ही हैं. लिहाजा उससे जुड़े नतीजों में आगे चलकर बदलाव भी हो सकते हैं.
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मिला-जुला नतीजा
कुल मिलाकर इस अध्ययन से एक मिश्रित तस्वीर सामने आई, जिसमें कोविड इंफेक्शन के बाद कुछ बीमारियों का खतरा कुछ अरसे के लिए बढ़ा हुआ नजर आ रहा है. जबकि कुछ बीमारियों के मामले में यह जोखिम ज्यादा लंबे समय के लिए दिखाई दे रहा है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अधिकांश मामलों में इस स्टडी के नतीजे बच्चों की सेहत के मामले में भरोसा बढ़ाने वाले हैं.
इस स्टडी में उन लोगों का अध्ययन शामिल नहीं किया जा सका है, जिन्हें शायद कोविड हुआ तो था, लेकिन यह उनके स्वास्थ्य रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. शायद इसलिए, क्योंकि उनमें बीमारी के लक्षण नहीं मिले थे. स्टडी में वैक्सीनेशन के प्रभाव का अध्ययन भी पूरी तरह से शामिल नहीं है. अध्ययन शामिल कुछ लोगों को वैक्सीन लगने से पहले ही कोविड का संक्रमण हो चुका था. यह स्टडी सिर्फ ऑब्जर्वेशन पर आधारित है और इसलिए इसमें यह जानकारी शामिल नहीं है कि कोविड इंफेक्शन का कुछ बीमारियों का खतरा बढ़ने से जो संबंध आंकड़ों में दिख रहा है उसकी वजह क्या है?