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भारत की बात करें तो पेट्रोल के भाव कई राज्यों में 100 रुपये/लीटर के पार जा चुका है.
Petrol@100: देश-दुनिया में पेट्रोल और डीजल की कीमतें (Petrol and Diesel Prices) आर्थिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हैं. भारत की बात करें तो पेट्रोल के भाव कई राज्यों में 100 रुपये के पार जा चुका है. ऐसा पहली बार हो रहा है, जब उपभोक्ताओं को एक लीटर पेट्रोल के लिए सौ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में बदलाव का असर भारतीय बाजार में निश्चित रूप से पड़ता है. इस साल जनवरी से अबतक ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) का भाव करीब 30 फीसदी बढ़ चुका है. इस दौरान प्रति लीटर पेट्रोल 6.17 रुपये से अधिक और प्रति लीटर डीजल 6.4 रुपये महंगा हो चुका है. यहां यह जानना जरूरी है कि पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में तकरीबन 70 फीसदी हिस्सा टैक्स व सेस का होता है. यानी, पेट्रोल और डीजल केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई का एक बड़ा स्रोत है. बीते 3 साल में केंद्र और राज्य सरकारें करीब 14 लाख करोड़ रुपये की कमाई पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कर चुकी हैं.
भारत सहित दुनिया के तमाम देश अनलॉक और वैक्सीनेशन की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. ऐसे में जैसे-जैसे स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, प्लांट और अन्य संस्थान पूरी संख्याबल के साथ खुलने लगेंगे, वैसे-वैसे ही पेट्रोल और डीजल की मांग भी बढ़ेगी. और, यह सीधे तौर पर आम आदमी की जेब पर असर डालेगी. यानी, महंगाई बढ़ने की संभावना है. जैसाकि रिजर्व बैंक ने भी अपनी पिछली मौद्रिक समीक्षा में खुदरा महंगाई के लक्ष्य को संसोधित कर बता दिया है. आरबीआई ने चौथी तिमाही में खुदरा महंगाई दर 5.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है. अब अहम सवाल यह है कि अब जबकि पेट्रोल 100 रुपये के पार और डीजल 90 रुपये प्रति लीटर पर है, क्या सरकार आम आदमी को तेल की महंगाई से राहत देगी? आम आदमी को कितनी राहत मिल तत्काल मिल सकती है और कबतक यानी किन हालातों में यह मुमकिन हो जाएगा? और, आखिर भाव बढ़ क्यों रहे हैं?
क्यों महंगा हो रहा है पेट्रोल-डीजल?
देश के जाने-माने एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का इस बारे में कहना है, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा तीन प्रमुख कारणों से हैं. पहला, क्रूड की कीमतें लगातार बढ़ रहा है. बीते दो महीने में करीब 65 फीसदी क्रूड महंगा हो चुका है. दूसरा, दुनिया की कई रिफाइनरी में काम ठप है, जिससे सप्लाई कम हो रही है. तीसरा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल की मांग ज्यादा अधिक है. सर्दियों में आमतौर पर डिमांड ज्यादा रहती है. उस हिसाब से सप्लाई नहीं हो पा रही है.
तनेजा का यह भी कहना है कि, देश में तेल पर लगने वाला टैक्स निश्चित तौर पर अपने रिकॉर्ड स्तर पर है. इसमें केंद्र सरकार की तरफ से लिया जाने वाला एक्साइज और राज्यों का वैट शामिल है. एक्साइज ड्यूटी का करीब 41 फीसदी राज्यों को मिलता है. पेट्रोल-डीजल पर सेस यानी उपकर केंद्र सरकार अपने पास रखती है. वहीं, वैट पूरी तरह राज्य सरकारों के खजाने में जाता है.
मालूम हो, अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में उछाल सउदी अरब की तरफ से उत्पादन में फरवरी व मार्च के दौरान 10 लाख बैरल प्रति दिन अतिरिक्त कटौती के चलते भी देखा जा रहा है. आर्गनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (OPEC) और उसके सहयोगी, जिसे OPEC+ भी कहते हैं और इसमें रूस भी शमिल है, के बीच समझौते के तहत सउदी अरब उत्पादन में अतिरिक्त कटौती का वादा किया है. इसी के चलते क्रूड की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गई हैं, जोकि एक साल में सर्वाधिक है.
इस बीच, कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन और अनलॉक के बीच आए एक्साइज कलेक्शन के आंकड़े पर गौर करना चाहिए. कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स (CGA) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-नवंबर 2020 के दौरान एक्साइज कलेक्शन 48 फीसदी बढ़कर 1.96 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा. जबकि, अप्रैल-नवंबर 2019 में यह आंकड़ा 1.32 लाख करोड़ था. जबकि, इस अवधि में पेट्रोल की बिक्री 2.04 करोड़ टन से घटकर 1.74 करोड़ टन रही. वहीं, डीजल की 5.54 करोड़ टन से घटकर 4.49 करोड़ टन रही.
पेट्रोल-डीजल पर कितनी कटौती संभव?
नरेंद्र तनेजा बताते हैं, मौजूदा हालात में सरकारों के पास विकल्प सीमित हैं. इसकी एक अहम वजह कोरोना महामारी के दौर की चुनौतियां हैं. सरकारों के सामने अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने की चुनौती है. बावजूद इसके, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब क्रूड 20 डॉलर पर था और सरकारों ने एक्साइज ड्यूटी और वैट बढ़ाकर राजस्व बढ़ाने का काम किया था, तो उपभोक्ताओं ने साथ दिया. अब जबकि पेट्रोल-डीजल की कीमतें रिकॉर्ड टॉप पर हैं, उपभोक्ता परेशान हैं, ऐसे में उनकों राहत दिए जाने की आवश्यकता है.
तनेजा का कहना है, इसमें एक मध्य मार्ग अपनाया जा सकता है. जिसमें सभी पक्षकारों को इसमें आगे आना होगा. इसके तहत, तेल कंपनियां अपने खर्च और रिफाइनरी लागत में कमी करें और 3 रुपये प्रति लीटर की तत्काल राहत दें. इसी तरह केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी में 1.25 रुपये से 1.50 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज कटौती करनी चाहिए. इसी के साथ राज्य सरकारें भी तुरंत 1.50 रुपये से 2.50 रुपये प्रति लीटर का वैट घटाएं. यदि ये कदम उठाए जाते हैं तो उपभोक्ताओं को तत्काल 6 रुपये प्रति लीटर तक की राहत पेट्रोल-डीजल पर मिल सकती है.
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कब तक राहत की उम्मीद?
एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का कहना है, सरकारों के सामने विकल्प सीमित हैं. ऐसे में यह देखना है कि वो कब टैक्स में कटौती का फैसला करती हैं. लेकिन, यदि कच्चे तेल यानी क्रूड की कीमतों में लगातार तेजी बनी रही और यह 70 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के पार चला जाता है, तो उपभोक्ताओं को राहत देने की पहल हो सकती है. यानी, सरकारें टैक्सेस में कटौती कर सकती हैं.
मालूम हो, केंद्र सरकार फिलहाल पेट्रोल पर 32.90 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है. मार्च 2020 से अबतक पेट्रोल की खुदरा कीमत 20.29 रुपये प्रति लीटर बढ़ चुकी है. वहीं, डीजल 17.98 रुपये प्रति लीटर महंगा हुआ है.
वहीं, पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में प्रति रुपये इजाफे से सरकारी खजाने में तकरीबन 14 हजार करोड़ रुपये सालाना की बढ़ोतरी होती है. भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. ऐसे में महंगा होता क्रूड आयात बिल भी बढ़ा देगा, जिससे देश का चालू खाता घाटा (CAD) भी बढ़ सकता है.