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इंडोनेशिया ने 28 अप्रैल से आरबीडी पामोलिन का एक्सपोर्ट बंद करने का एलान किया है, जिससे खाद्य तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं.
Indonesian Palm Oil Export Ban to Instigate Price Hike: देश में खाने के तेल की कीमतें पहले से आसमान छू रही हैं. फरवरी के अंत में यूक्रेन पर रूस के हमले बाद से अब तक देश में खाने के तेल की कीमतें करीब 12 से 17 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं. इंपोर्ट ड्यूटी हटाने और जमाखोरी पर रोक लगाने की सरकारी कोशिशों के बावजूद कीमतें ऊंचे स्तर पर ही बनी हुई हैं. ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े पाम आयल एक्सपोर्टर इंडोनेशिया का रिफाइंड पामोलिन के निर्यात पर पाबंदी लगाने का फैसला खाने के तेल की कीमतों में लगी आग को और भड़का सकता है.
10 से 15 फीसदी तक बढ़ सकती हैं कीमतें
दरअसल इंडोनेशिया ने इसी 28 अप्रैल से आरबीडी पामोलिन का एक्सपोर्ट बंद करने का एलान किया है. उसने यह फैसला अपने घरेलू बाजार में खाने की कीमतें बेतहाशा बढ़ने के बाद आम लोगों के सड़कों पर उतर आने के बाद लिया है. लेकिन इंडोनेशिया के इस कदम से पूरी दुनिया में खाने के तेल की सप्लाई पर काफी बुरा असर पड़ने की आशंका है. खाद्य तेलों की जरूरत के लिए इंपोर्ट पर निर्भर होने की वजह से भारत पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ने का खतरा है. कुछ अनुमानों के मुताबिक इंडोनेशिया के एक्सपोर्ट बैन की वजह से शॉर्ट टर्म में खाने के तेल की कीमतें 10 से 15 फीसदी तक और ऊपर जा सकती हैं.
इंडोनेशिया और बढ़ा सकता है पाबंदी का दायरा
अब कुछ ऐसी खबरें भी आ रही हैं जो इस चिंता को और बढ़ाने वाली हैं. दरअसल, इंडोनेशिया ने अब तक जो फैसला किया है, उसके तहत 28 अप्रैल से RBD यानी रिफाइन्ड, ब्लीच्ड और डी-ऑडोराइज़्ड पामोलिन का एक्सपोर्ट तो बंद हो जाएगा, लेकिन कच्चे पाम ऑयल के निर्यात पर फिलहाल पाबंदी नहीं लगाई गई है. इंडोनेशिया के कुल पाम ऑयल एक्सपोर्ट में RBD पामोलिन का हिस्सा 30 से 40 फीसदी के बीच है. इंडोनेशिया की सरकार उम्मीद कर रही है कि उसके इस कदम से घरेलू बाजार में खाने के तेल की कीमतें काबू में आ जाएंगी. लेकिन रॉयटर्स के मुताबिक सोमवार को इंडोनेशिया की सरकार की तरफ से ऑयल प्रोडक्शन और एक्सपोर्ट से जुड़ी कंपनियों को दिए गए एक प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि अगर घरेलू बाजार में खाद्य तेल की सप्लाई इतने से भी नहीं सुधरी तो पाबंदी का दायरा और बढ़ाया भी जा सकता है. यानी जरूरत पड़ी तो इंडोनेशिया कच्चे पाम ऑयल के एक्सपोर्ट पर भी रोक लगा सकता है. अगर ऐसा हुआ तब तो दुनिया भर में खाद्य तेलों का संकट और भी गहरा हो जाए देगा.
रूस और यूक्रेन की जंग के कारण दुनिया भर में सनफ्लावर ऑयल की सप्लाई पहले ही लगभग 80 फीसदी कम हो चुकी है. जिससे पाम ऑयल, सोयाबीन के तेल और दूसरे वैकल्पिक खाद्य तेलों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं. ऐसे में अब पाम ऑयल की सप्लाई पर मंडराता खतरा न सिर्फ खाने के तेल की किल्लत पैदा करेगा, बल्कि इससे फूड इंफ्लेशन के बेकाबू होना की आशंका भी और बढ़ेगी.
खाने के तेल के लिए इंपोर्ट पर निर्भर है भारत
दरअसल भारत में हर साल करीब 20-21 मिलियन टन खाने के तेल की खपत होती है, जिसमें करीब 14-15 मिलियन टन इंपोर्ट किया जाता है. भारत में खाद्य तेलों की खपत में सबसे ज्यादा 45 फीसदी हिस्सा पाम ऑयल का ही है. खास तौर पर फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री तो इस पर बहुत ज्यादा निर्भर है. इसके बाद सोयाबीन ऑयल का नंबर आता है, जिसकी खपत करीब 20 फीसदी है. जबकि सरसों के तेल का हिस्सा 10 फीसदी के आसपास है. बाकी 25 फीसदी हिस्सा सनफ्लावर ऑयल, मूंगफली के तेल और कॉटनसीड आयल का है. जाहिर है पाम ऑयल की किल्लत और कीमतों में उछाल का भारत पर काफी असर पड़ेगा.
सिर्फ खाद्य तेल की कीमतों पर ही असर नहीं
पाम ऑयल की सप्लाई में गिरावट और कीमतों में बढ़ोतरी का असर सिर्फ खाने के तेल की कीमतों पर ही नहीं पड़ेगा. इसका असर उन तमाम उत्पादों के प्रोडक्शन और लागत पर भी पड़ेगा, जिनमें पाम ऑयल का इस्तेमाल कच्चे माल के तौर पर किया जाता है.
दरअसल पाम ऑयल एक ऐसा उत्पाद है जिसका इस्तेमाल सैकड़ों प्रोडक्ट्स बनाने में किया जाता है. इनमें फूड प्रोडक्ट्स से लेकर पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स और बायो-फ्यूल तक शामिल हैं. मिसाल के तौर पर नूडल्स, बिस्किट, केक, आइसक्रीम, मेयोनीज़, चिप्स और दूसरे फ्राइड स्नैक्स में पाम ऑयल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इनके अलावा साबुन, हेयर और स्किन केयर प्रोडक्ट्स समेत तमाम पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स में भी पाम ऑयल की खपत होती है. दूसरे खाद्य तेलों में ब्लेंडिंग के लिए भी पाम ऑयल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है.
जाहिर है, पाम ऑयल की कीमतों में उछाल का असर इन तमाम उत्पादों की लागत पर पड़ेगा. इसका बोझ बढ़ी हुई कीमतों के रूप में आम लोगों पर तो पड़ सकता है, जो महंगाई दर को और ऊपर की तरफ ले जाएगा. अगर कंपनियों ने लागत में बढ़ोतरी का पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाला, तो उनकी प्रॉफिटेबिलिटी प्रभावित होगी, जिसका असर उनकी बॉटमलाइन और शेयर प्राइस पर पड़ेगा.