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74th Independence Day: आज पूरे देश में 74वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाया जा रहा है. 15 अगस्त को एक बार फिर दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले हैं. लेकिन इस बार आई कोरोनावायरस महामारी का असर राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री पर भी पड़ा है. कोविड19 के चलते लागू लॉकडाउन की वजह से बिक्री 50 फीसदी घट गई है.
देश के लाल किले, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, हर सरकारी बिल्डिंग पर, हमारी सेना द्वारा फ्लैग होस्टिंग के वक्त यहां तक कि विदेशों में मौजूद इंडियन एंबेसीज में फहराए जाने वाले तिरंगे को बनाने के लिए देश में केवल एक ही ऑथराइज्ड व सर्टिफाइड नेशनल फ्लैग मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है और वह है कर्नाटक के हुबली शहर के बेंगेरी इलाके में स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (फेडरेशन) यानी KKGSS. यह फेडरेशन खादी व विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन द्वारा सर्टिफाइड है. यहां बनने वाले झंडे केवल कॉटन और खादी के होते हैं.
KKGSS (फेडरेशन) के सेक्रेटरी शिवानंद माथापति ने फाइनेंशियल एक्सप्रेस हिंदी को बताया कि कोविड19 लॉकडाउन से राष्ट्रीय ध्वज की मैन्युफैक्चरिंग व बिक्री भी अछूती नहीं रही है. इसे 50 फीसदी का झटका लगा है. लॉकडाउन के समय में तो यूनिट में काम बंद रहा ही, अभी भी समय—समय पर शॉर्ट टर्म लॉकडाउन व महामारी के डर के कारण मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में वर्कर्स का आना कम है. शिवानंद के मुताबिक, KKGSS के तहत तिरंगे के लिए धागा बनाने से लेकर झंडे की पैंकिंग तक से इस वक्त लगभग 500 वर्कर जुड़े हैं. इनमें से 90 फीसदी महिलाएं हैं. पिछले साल KKGSS ने 3 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री की थी.
1957 में फेडरेशन आया अस्तित्व में
KKGSS की स्थापना नवंबर 1957 में हुई थी और इसने 1982 से खादी बनाना शुरू किया. 2005-06 में फेडरेशन को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) से सर्टिफिकेशन मिला और उसके बाद यहां राष्ट्रीय ध्वज बनना शुरू हुआ. देश में जहां कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज इस्तेमाल होता है, यहीं के बने झंडे सप्लाई होते हैं. अन्य राष्ट्रों में मौजूद भारतीय दूतावासों के लिए भी यहीं से तिरंगे बनकर जाते हैं. राष्ट्रीय ध्वज को तैयार करने के चरण इस तरह हैं- धागा बनाना, कपड़े की बुनाई, ब्लीचिंग व डाइंग, चक्र की छपाई, तीनों पटिृयों की सिलाई, आयरन करना और टॉगलिंग (गुल्ली बांधना).
बागलकोट यूनिट में बनता है हाई क्वालिटी धागा
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बागलकोट में स्थित KKGSS की एक अन्य यूनिट में राष्ट्रीय ध्वज के लिए हाई क्वालिटी के कच्चे कॉटन से धागा बनाया जाता है. इस यूनिट को बागलकोट यूनिट भी कहते हैं. तिरंग को धागा हाथ से मशीनों और चरखे को चलाकर बनाया जाता है. इसके बाद गाडनकेरी, बेलॉरू, तुलसीगिरी यूनिट में कपड़ा तैयार किया जाता है. उसके बाद हुबली यूनिट में तिरंग के कपड़े की डाइंग व अन्य प्रॉसेस की जाती है. बता दें कि तिरंगे का कपड़ा जीन्स से भी ज्यादा मजबूत होता है.
अलग-अलग साइज के झंडे
टेबल पर रखे जाने वाले तिरंगे से लेकर राष्ट्रपति भवन पर फहरने वाले अलग-अलग साइज के तिरंगे का निर्माण किया जाता है. कुल 9 साइज के झंडे बनाए जाते हैं, जो इस तरह हैं....
1- सबसे छोटा 6:4 इंच- मीटिंग व कॉन्फ्रेंस आदि में टेबल पर रखा जाने वाला झंडा
2- 9:6 इंच- VVIP कारों के लिए
3- 18:12 इंच- राष्ट्रपति के VVIP एयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए
4- 3:2 फुट- कमरों में क्रॉस बार पर दिखने वाले झंडे
5- 5.5:3 फुट- बहुत छोटी पब्लिक बिल्डिंग्स पर लगने वाले झंडे
6- 6:4 फुट- मृत सैनिकों के शवों और छोटी सरकारी बिल्डिंग्स के लिए
7- 9:6 फुट- संसद भवन और मीडियम साइज सरकारी बिल्डिंग्स के लिए
8- 12:8 फुट- गन कैरिएज, लाल किले, राष्ट्रपति भवन के लिए
9- सबसे बड़ा 21:14 फुट- बहुत बड़ी बिल्डिंग्स के लिए
हर बारीकी का ध्यान रखना जरूरी
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KKGSS में बनने वाले राष्ट्रीय ध्वज की क्वालिटी को BIS चेक करता है और थोड़ा सा भी डिफेक्ट होने पर झंडे को रिजेक्ट कर दिया जाता है. हर सेक्शन पर 18 बार तिरंगे की क्वालिटी चेक होती है. KVIC और BIS ने तिरंगे के लिए रंग का जो शेड निर्धारित किया है, तैयार तिरंगों का कलर शेड उससे अलग नहीं होना चाहिए. केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाई-चौड़ाई में मामूली अंतर न हो, इसका भी ध्यान रखा जाता है. झंडे के अगले व पिछले भाग पर अशोक चक्र की छपाई समान होना जरूरी है. बता दें कि फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के प्रावधानों के मुताबिक, झंडे की मैन्युफैक्चरिंग में रंग, साइज या धागे को लेकर किसी भी तरह का डिफेक्ट एक गंभीर अपराध है और ऐसा होने पर जुर्माना या जेल या दोनों हो सकते हैं.