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India Population: आबादी में नंबर 1 हुआ भारत, देश के आर्थिक विकास के लिए क्या है इसका मतलब?

World Population Report : संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है, जबकि चीन की जनसंख्या 142.57 करोड़ है.

World Population Report : संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है, जबकि चीन की जनसंख्या 142.57 करोड़ है.

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Viplav Rahi
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India Population: जनसंख्या के मामले में भारत के दुनिया में नंबर वन होने की खबर को हमें कैसे देखना चाहिए? क्या ये जश्न मनाने की बात है? या फिर चिंता बढ़ाने वाली खबर? (Photo : AP)

India becomes most populous country in the world: भारत हाल ही में दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है. संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट (SOWP Report) के मुताबिक भारत की आबादी अब 142.86 करोड़ हो गई है, जो चीन की 142.57 करोड़ की आबादी से अधिक है. पॉपुलेशन के मामले में दुनिया में नंबर वन होने की खबर को हमें कैसे देखना चाहिए? क्या ये जश्न मनाने की बात है? या फिर चिंता बढ़ाने वाली खबर? इस सवाल का सही जवाब ये है कि आबादी का इस कदर बढ़ना एक दोधारी तलवार है. इतनी बड़ी आबादी इकॉनमी के लिए चुनौती तो है, लेकिन साथ ही इसमें विकास के जबरदस्त मौके भी मौजूद हैं.

भारत के हक में है ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’

भारत की आबादी में युवाओं का हिस्सा काफी बड़ा है, जो इकनॉमिक ग्रोथ को आगे बढ़ाने के लिए डेमोग्रेफिक डिविडेंड का काम कर सकता है. यूनाइडेट नेशंस पॉपुलेशन फंड (United Nations Population Fund) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 25 फीसदी आबादी की उम्र 0-14 साल है, जबकि 26 फीसदी जनसंख्या की उम्र 10 से 24 साल है. 68 फीसदी आबादी 15 से 64 साल की है. 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का अनुपात महज 7 फीसदी है. इसके मुकाबले चीन में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का अनुपात काफी अधिक है. यही वजह है कि आबादी के मामले में भारत के नंबर वन हो जाने की खबर मिलते ही चीन ने बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया जाहिर की है, जिसमें उसने दावा किया है कि वर्किंग पॉपुलेशन के मामले में वो अब भी दुनिया का बड़ा देश है. यही नहीं, उसने भारत के डेमोग्राफिक डिविडेंड के मुकाबले खुद को बेहतर दिखाने के लिए अब यह कहना शुरू किया है कि वर्किंग पॉपुलेशन की सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि क्वॉलिटी भी देखनी चाहिए.

ग्रोथ के लिए अच्छा है डिमांड बढ़ना

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बढ़ती जनसंख्या के सबसे महत्वपूर्ण प्रभावों में से एक वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती डिमांड है. डिमांड में यह बढ़ोतरी आर्थिक विकास को रफ्तार दे सकती है, क्योंकि बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादकों को पहले से ज्यादा प्रोडक्शन करना होगा. इसका मतलब यह है कि भोजन और कपड़ों से लेकर घर और हेल्थ सर्विस तक हर चीज की मांग में बढ़ोतरी होगी, जिससे बिजनेस के विकास और विस्तार के नए अवसर पैदा होंगे.

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वर्क फोर्स ट्रेनिंग में भी मिलेंगे ग्रोथ के मौके

जैसा कि हमने पहले कहा, युवाओं की आबादी में बढ़ोतरी से वर्क फोर्स में बढ़ोतरी होती है, जो भारत के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड का काम करती है. वर्क फोर्स में इजाफा भारत को सारी दुनिया के लिए प्रोडक्शन का बड़ा पावरहाउस बना सकता है. हालांकि ऐसा करने के लिए वर्क फोर्स के एजुकेशन और ट्रेनिंग पर काफी ध्यान देना होगा. ताकि उनकी क्वॉलिटी, एफिशिएंसी और प्रोडक्टिविटी में सुधार हो. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि बड़े पैमाने पर वर्कफोर्स की ट्रेनिंग का काम भी अपने आप में ग्रोथ और रोजगार का बड़ा मौका मुहैया करा सकता है.

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आबादी बढ़ने से जुड़ी चुनौतियां

बढ़ती आबादी की वजह से अर्थव्यवस्था को कुछ बड़ी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बढ़ती जनसंख्या देश के संसाधनों पर दबाव डाल सकती है. इससे खाद्य सुरक्षा, पानी की उपलब्धता और पर्यावरण के मोर्चे पर दिक्कतें कुछ बढ़ सकती हैं. बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन होने चाहिए. संसाधनों की इस बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए भारत को परिवहन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास जैसे बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा. तभी बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा. लेकिन सरकार सही आर्थिक नीति पर चलकर निवेश की इस जरूरत को विकास के नए अवसरों में तब्दील कर सकती है.

रोजगार की बढ़ती जरूरत

बढ़ती जनसंख्या से जुड़ी बड़ी चुनौतियों में से एक रोजगार की जरूरत में इजाफा होना है. भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है. इन युवाओं को सार्थक रोजगार मुहैया कराना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं हो पाया तो युवा बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी, जिसका न सिर्फ आर्थिक विकास, बल्कि सामाजिक स्थिरता पर भी बुरा असर पड़ सकता है.

हर तबके का हो विकास

भारत के सामने एक और चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक विकास समावेशी हो यानी उसका लाभ समाज के हर तबके तक पहुंचाया जाए. अगर इस मसले पर ध्यान न दिया जाए, तो विकास की प्रक्रिया समाज में पहले से मौजूद आर्थिक गैर-बराबरी को बढ़ाने वाली साबित हो सकती है. इसलिए आर्थिक विकास के लाभ को सभी लोगों तक समान रूप से पहुंचाना जरूरी है. फिर भले ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो. भारत में बढ़ती जनसंख्या को आर्थिक विकास के अवसर में तब्दील करने के लिए बुनियादी ढांचे, शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना जरूरी है. तभी हम अपनी बढ़ती जनसंख्या को एक ऐसे एसेट में बदल सकते हैं, जो देश की तरक्की की नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मददगार साबित हो.

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