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SBI की रिसर्च टीम ने अपनी स्पेशल रिपोर्ट में देश के एक्सपोर्ट के आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण किया है.
SBI Research : Special Report : देश के एक्सपोर्ट ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान नई ऊंचाई हासिल की, तो इस खबर ने काफी सुर्खियां बटोरीं. सरकार ने जमकर अपनी पीठ थपथपाई. लेकिन सुर्खियों से आगे इस खबर की पूरी कहानी क्या है? क्या यह उपलब्धि वाकई उतनी ही चमकदार है, जितनी बताई गई? या कुछ पुराने आंकड़ों के साथ रखकर देखने पर कोई और बात भी सामने आती है? स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च टीम ने एक्सपोर्ट के इन आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण करके एक स्पेशल रिपोर्ट पेश की है, जो भारतीय एक्सपोर्ट की स्थिति के बारे में हेडलाइन से आगे की जानकारी देती है.
प्रधानमंत्री मोदी ने देश को दी थी बधाई
पिछले महीने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान किया था कि उनके राज में देश के एक्सपोर्ट ने पहली बार 400 अरब डॉलर का शानदार आंकड़ा पार किया है, वो भी तय समय से 9 दिन पहले. उन्होंने इसे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ने वाला कदम बताते हुए देश के किसानों, बुनकरों, लघु और मंझोले उद्योगों, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और निर्यातकों को बधाई भी दी थी.
India set an ambitious target of $400 Billion of goods exports & achieves this target for the first time ever. I congratulate our farmers, weavers, MSMEs, manufacturers, exporters for this success.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2022
This is a key milestone in our Aatmanirbhar Bharat journey. #LocalGoesGlobalpic.twitter.com/zZIQgJuNeQ
ऊंचाई पर पहुंचे, पर बेहद धीमी रफ्तार से : रिपोर्ट
सफलता के इन आंकड़ों का विश्लेषण करके अब SBI रिसर्च ने बताया है कि देश के एक्सपोर्ट ने नई ऊंचाई तो जरूर छू ली, लेकिन यह सफर बेहद सुस्त रफ्तार रहा है. 400 अरब डॉलर के मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट का आंकड़ा वित्त वर्ष 2021-22 के लिए तय समय सीमा से 9 दिन पहले भले ही हासिल कर लिया गया हो, लेकिन देश के पिछले रिकॉर्ड से तुलना करें तो यह तेज नहीं बल्कि बेहद सुस्त रफ्तार से हासिल किया गया लक्ष्य है. एसबीआई रिसर्च की स्पेशल रिपोर्ट को देखने से तो ऐसा ही लगता है.
10 साल में तय हुआ 5 साल का सफर : रिपोर्ट
एसबीआई के ग्रुप चीफ इकनॉमिक एडवाइज़र डॉ सौम्य कांति घोष के मार्गदर्शन में तैयार यह रिपोर्ट बताती है कि भारत का मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट वित्त वर्ष 2005-06 के दौरान करीब 100 अरब डॉलर था, जो वित्त वर्ष 2010-11 में ही, यानी महज 5 साल के भीतर दोगुना होकर 200 अरब डॉलर पर जा पहुंचा. इतना ही नहीं, वित्त वर्ष 2011-12 में तो देश के मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट ने 300 अरब डॉलर का आंकड़ा भी हासिल कर लिया. यानी 2005-06 से 2011-12 के दरम्यान, सिर्फ छह साल में ही देश का एक्सपोर्ट करीब तीन गुना बढ़ गया! लेकिन 300 अरब डॉलर से 400 अरब डॉलर का रास्ता तय करने में हमें पूरी दस साल लग गए !
इस ऐतिहासिक संदर्भ में रखकर देखने पर लगता है कि 400 अरब डॉलर के एक्सपोर्ट का लक्ष्य हासिल करना अच्छा तो है, लेकिन ये मामला "देर आये, दुरुस्त आए" वाला है, पिछली तमाम सरकारों के मुकाबले बेहतर काम करके दिखाने वाले अंदाज़ में अपनी पीठ थपथपाने वाला नहीं.
GDP में एक्सपोर्ट का योगदान भी घटा
बहरहाल, एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में एक्सपोर्ट के इन आंकड़ों का सही संदर्भ समझाने वाले कुछ और आंकड़े भी दिए गए हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि देश की जीडीपी में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात का सबसे ज्यादा 25.4 फीसदी योगदान 2013 में था. लेकिन इसके बाद इसमें लगातार गिरावट देखने को मिली. साल 2020 के दौरान देश की जीडीपी में एक्सपोर्ट का योगदान घटकर महज 18.7 फीसदी रह गया था. वित्त वर्ष 2021-22 में यह करीब 2 फीसदी बढ़कर 20.8 फीसदी रहा. रिपोर्ट में बताया गया है कि 2013 के बाद जीडीपी में एक्सपोर्ट का योगदान घटने का मुख्य कारण आर्थिक विकास की रफ्तार का धीमा पड़ना है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि जीडीपी ग्रोथ और एक्सपोर्ट ग्रोथ आपस में सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं. इनमें से एक के कम या ज्यादा होने का दूसरे पर सीधा असर पड़ता है.
एक्सपोर्ट ग्रोथ में महंगाई का 45% योगदान
रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश के निर्यात में जो तेजी देखी गई, उसमें 45 फीसदी योगदान कीमतों में बढ़ोतरी यानी महंगाई का है, जबकि 55 फीसदी बढ़ोतरी एक्सपोर्ट की मात्रा बढ़ने के कारण देखने को मिली है. लेकिन पेट्रोलियम उत्पादों के मामले में स्थिति कुछ अलग है. इन उत्पादों के एक्सपोर्ट में आई तेजी में 69 फीसदी योगदान कीमतों में वृद्धि का है, जबकि निर्यात की मात्रा बढ़ने का असर सिर्फ 31 फीसदी है. जाहिर है. पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में आई अंतरराष्ट्रीय तेजी का प्रभाव इन आंकड़ों में नजर आ रहा है.
चीन से हमारा इंपोर्ट तेजी से बढ़ा
एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में चीन से भारत का इंपोर्ट काफी बढ़ा. भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में चीन से 19 अरब डॉलर का ज्यादा इंपोर्ट किया. हम जिन देशों से सबसे ज्यादा वस्तुएं और सेवाएं खरीदते हैं, उनमें चीन 5.2 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ तीसरे नंबर पर है. अमेरिका हमारे इंपोर्ट में 18.1 फीसदी हिस्सेदारी के साथ पहले नंबर पर है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात 6.6 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर है. चीन के बाद चौथे नंबर पर बांग्लादेश है, जिसका हमारे कुल इंपोर्ट में 3.9 फीसदी हिस्सा है.
CAD की हालत चिंताजनक
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में भारत के चालू खाते के घाटे (CAD - Current Account Deficit) पर चिंता जाहिर की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल से दिसंबर 2021 के दौरान देश का करेंट एकाउंट डेफिसिट जीडीपी के 1.2 फीसदी के बराबर था, 2021-22 के पूरे वित्त वर्ष के लिए 1.7 फीसदी के बराबर रहने की आशंका है. रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष (2022-23) के दौरान CAD में और बढ़ोतरी की आशंका है और यह जीडीपी के 2.5 फीसदी से भी ज्यादा (2.7 फीसदी तक) हो सकता है, जो 10 साल का सबसे ऊंचा स्तर होगा.