/financial-express-hindi/media/post_banners/FUlMenS5gK21TqglFQB5.jpg)
फिच सॉल्यूशन्स के मुताबिक मरीजों की तेजी से बढ़ी तादाद का बोझ नहीं उठा पाने के कारण भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा रही हैं.
Fight Against COVID-19: अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फिच सॉल्यूशन्स ने कहा है कि भारत कोरोना की नई लहर का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है. एजेंसी का मानना है कि मरीजों की अचानक तेजी से बढ़ी तादाद के कारण भारत के अस्पतालों पर क्षमता से ज्यादा बोझ पड़ गया है, जिसे संभालने में वे सक्षम नहीं हैं. कोरोना महामारी की ताजा लहर के सामने भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा रही हैं.
महामारी को जल्द काबू में नहीं किया तो हालात और बिगड़ सकते हैं
एजेंसी ने आगाह किया है कि अगर भारत में महामारी को अगर जल्द ही काबू में नहीं किया गया तो हालात और भी बिगड़ सकते हैं. एजेंसी के मुताबिक भारत में हर 10 लोगों की आबादी के लिए महज 8.5 हॉस्पिटल बेड और 8 ही डॉक्टर मौजूद हैं. जाहिर है कि डॉक्टरों और हॉस्पिटल बेड की इतनी कम संख्या इतनी बड़ी महामारी से निपटने के लिए काफी नहीं है. फिच के मुताबिक भारत की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी के पास अब तक जरूरत के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है. भारत के 68 फीसदी लोगों के लिए तो ज़रूरी दवाएं तक पहुंच से बाहर हैं.
भारत में टीकाकरण की रफ्तार धीमी, 25 में सिर्फ 1 व्यक्ति को लगा टीका
फिच ने यह भी कहा है कि भारत में टीकाकरण की रफ्तार धीमी रही है. हालांकि भारत में अब तक 8.09 करोड वैक्सीन्स लगाई जा चुकी हैं, जो अमेरिका और चीन के बाद सबसे बड़ी संख्या है, लेकिन 135 करोड़ की आबादी को देखते हुए भारत टीकाकरण की औसत दर के लिहाज से काफी पीछे है. दुनिया भर में सबसे ज्यादा वैक्सीन भारत में ही बनती है, फिर भी यहां अब तक 25 में से सिर्फ एक व्यक्ति को ही टीका लगाया जा सका है. जबकि ब्रिटेन में हर दो में से एक व्यक्ति को और अमेरिका में हर तीन में से एक शख्स को वैक्सीन लगाई जा चुकी है.
सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने में लापरवाही नई लहर की बड़ी वजह
फिच के मुताबिक 2020 में महामारी की पहली लहर के समय भारत वायरस पर काबू पाने में काफी हद तक सफल रहा था. जिसके बाद साल की दूसरी छमाही के दौरान देश की अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौटने लगी थी. लेकिन पिछले कुछ हफ्तों के दौरान कोरोना वायरस एक बार फिर तेजी से फैलने लगा. एजेंसी के मुताबिक सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने में लापरवाही बरता जाना महामारी की इस नई लहर की एक बड़ी वजह है.
भारतीय अस्पताल मरीजों की बढ़ती तादाद का बोझ उठाने में अक्षम
फिच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोविड-19 के नए मरीजों की तादाद एक दिन में दो लाख की निराश करने वाली हद को भी पार कर चुकी है. ऐसे में भारत के तमाम अस्पतालों पर उनकी क्षमता से ज्यादा बोझ पड़ रहा है और इस बेहद संक्रामक महामारी के बढ़ते प्रकोप का सामना करना उनके बस के बाहर की बात है.
ऑक्सीजन, वेंटिलेटर समेत तमाम जरूरी चीजों और उपकरणों की कमी है
एजेंसी के मुताबिक महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु, पंजाब और कर्नाटक समेत जिन राज्यों में महामारी का सबसे ज्यादा बोझ है,वहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होने लगी है. ऑक्सीजन से लेकर वेंटिलेटर तक तमाम जरूरी चीजें और उपकरण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं. फिच के मुताबिक मौजूदा हालात बता रहे हैं कि भारत में अब तक किए गए हेल्थकेयर रिफ़ॉर्म्स कोरोना वायरस के तेजी से फैलने से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए काफी नहीं हैं.
हेल्थकेयर सेक्टर में निवेश और बढ़ाने की जरूरत
फिच सॉल्यूशन्स का कहना है कि भारत में नजर आ रहे इस अभूतपूर्व संकट ने हेल्थकेयर सेक्टर में निवेश और बढ़ाने की जरूरत को एक बार फिर से सामने ला दिया है. एजेंसी का मानना है कि हेल्थकेयर सेक्टर में कई रिफॉर्म्स किए जाने के बावजूद भारत पूरे देश में फैल रही महामारी से निपटने में पूरी तरह सक्षम नहीं है. इतना ही नहीं, बड़े पैमाने पर मौजूद अक्षमता, कामकाजी अड़चनें और पब्लिक सेक्टर में हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम की भारी कमी भारतीय जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं हैं.
हेल्थ पर बेहद कम सरकारी खर्च इस खस्ता हालत की बड़ी वजह
एजेंसी का कहना है कि हेल्थ पर बेहद कम सरकारी खर्च भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की इस खस्ता हालत की एक बड़ी वजह है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से मुकाबले ने स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में पब्लिक सेक्टर की अहमियत को एक बार फिर से उजागर कर दिया है. इस विकराल संकट ने साफ कर दिया है कि हेल्थकेयर सेक्टर में निवेश बढ़ाना कितना जरूरी है.
वैक्सीन के ग्लोबल सप्लायर के तौर पर भारत की स्थिति भी खतरे में
भारत में कोरोना इंफेक्शन के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए वैक्सीन के ग्लोबल सप्लायर के तौर पर उसकी स्थिति भी खतरे में पड़ती जा रही है. घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत को वैक्सीन का निर्यात रोकना पड़ रहा है. इसका असर श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों में टीकाकरण की मुहिम पर भी पड़ रहा है.