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मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ में कोविड19 से पैदा हुए आर्थिक अवरोधों के कारण 25.5 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है. यह बात Barclays की एक रिपोर्ट में कही गई है. Barclays के मुताबिक, 31 अगस्त को आ रहा देश का अप्रैल-जून तिमाही का जीडीपी डेटा इस बात की पुष्टि कर सकता है कि कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए किए गए उपायों ने अर्थव्यवस्था को बेहद बड़ा झटका दिया है. कड़े लॉकडाउन के कारण लगभग सभी आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सरकारी खर्च और जरूरी चीजें ही ऐसे सेक्टर होंगे, जहां अवरोध थोड़े कम उत्पन्न हुए होंगे.
Barclays की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि पूरे देश में लागू लॉकउाउन जून में हटना शुरू हुआ और कुछ संकेतकों जैसे पावर व फ्यूल खपत और फ्रेट ने धीमी रफ्तार से सामान्य होना शुरू किया. अनुमान है कि भारत की ग्रोथ के दिसंबर तिमाही तक वापसी करने की संभावना नहीं है. यद्यपि आर्थिक मोर्चे पर अप्रैल और मई सबसे खराब माह रहे लेकिन कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों और कई राज्यों द्वारा अपने स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन ने एक बार फिर बेहतर होते संकेतकों के सामने अवरोध खड़ा कर दिया है. इससे यह चिंता पैदा हो गई है कि गतिविधियों का पटरी पर लौटना अपेक्षाकृत अल्पकालिक हो सकता है.
दिसंबर तिमाही में 8% गिर सकती है ग्रोथ
कारोबारों और इंडस्ट्रीज के सामने पैदा हुई अनिश्चितता को देखते हुए Barclays ने दिसंबर तिमाही के लिए जीडीपी अनुमान को घटा दिया है. Barclays का अनुमान है कि दिसंबर तिमाही में जीडीपी 8 फीसदी और पूरे वित्त वर्ष में 6 फीसदी गिरेगी. सेक्टर्स के मामले में Barclays का कहना है कि पहली तिमाही में कंस्ट्रक्शन 48 फीसदी, ट्रेड व कॉमर्स 40 फीसदी, मैन्युफैक्चरिंग 45 फीसदी घटेगी और वित्तीय सेवाओं के मामले में 20 फीसदी ​की गिरावट आएगी. हालांकि कोविड19 वैक्सीन की उपलब्धता और महामारी के मामलों की संख्या बाकी के साल में आर्थिक स्थिति तय करेगी.
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FY21 में (-) 4.5% रह सकती है GDP ग्रोथ: RBI
वहीं रिजर्व बैंक ने अनुमान जताया है कि भारत की जीडीपी ग्रोथ वित्त वर्ष 2020-21 में (-) 4.5% रह सकती है. ग्लोबल ग्रोथ को लेकर आरबीआई का अनुमान है कि यह सिंगल हिट सिनेरियो में (-) 6.0% फीसदी और डबल हिट सिनेरियो में (-) 7.6% रह सकती है. आरबीआई का कहना है कि 68 दिनों के लॉकडाउन से आय में नुकसान (कैपिटल और लेबर) के कारण मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग सेक्टर्स को 2.7 लाख करोड़ रुपये तक का झटका लग सकता है.
रिजर्व बैंक ने मंगलवार को 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट पेश की. इसके एक हिस्से ‘आकलन और संभावनाएं’ में आरबीआई ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के बीच भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए गहरे और व्यापक सुधारों की जरूरत है. केंद्रीय बैंक ने आगाह किया है कि इस महामारी की वजह से देश की संभावित वृद्धि दर की क्षमता नीचे आएगी. कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से तोड़ दिया है. भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार इस बात पर निर्भर करेगा कि इस महामारी का फैलाव कैसा रहता है, यह महामारी कब तक रहती है और कब तक इसके इलाज का टीका आता है.
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गहरे और व्यापक सुधारों की जरूरत
रिजर्व बैंक ने आगे कहा कि एक बात जो उभरकर आ रही है, वह यह है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया बदल जाएगी और एक नया 'सामान्य’ सामने आएगा. महामारी के बाद के परिदृश्य में गहराई वाले और व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. उत्पाद बाजार से लेकर वित्तीय बाजार, कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मोर्चे पर व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. तभी आप वृद्धि दर में गिरावट से उबर सकते हैं और अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और सतत वृद्धि की राह पर ले जा सकते हैं.
रिजर्व बैंक ने कहा कि शेष दुनिया की तरह भारत में भी संभावित वृद्धि की संभावनाएं कमजोर होंगी. कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में प्रोत्साहन पैकेज और नियामकीय रियायतों से हासिल वृद्धि को कायम रखना मुश्किल होगा क्योंकि तब प्रोत्साहन हट जाएंगे. आरबीआई का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार भी कुछ अलग होगा. वैश्विक वित्तीय संकट कई साल की तेज वृद्धि और वृहद आर्थिक स्थिरता के बाद आया था. वहीं कोविड-19 ने ऐसे समय अर्थव्यवस्था को झटका दिया है, जबकि पिछली कई तिमाहियों से यह सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही थी.