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Women's Day: अपने शौक को बनाया आमदनी का जरिया, लीक से हटकर कर रहीं कुछ अलग

जब आपका शौक ही आपका प्रोफेशन बन जाए तो ​फिर शिकायत की गुंजाइश नहीं रह जाती है.

जब आपका शौक ही आपका प्रोफेशन बन जाए तो ​फिर शिकायत की गुंजाइश नहीं रह जाती है.

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Ritika Singh
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International Women's Day: story of two ola bike driver partners who convert their hobby into profession, sushmita dutta and harshika pandya

हर्षिका पांड्या (बाएं) और सुष्मिता दत्ता (दाएं)

International Women's Day: story of two ola bike driver partners who convert their hobby into profession, sushmita dutta and harshika pandya हर्षिका पांड्या (बाएं) और सुष्मिता दत्ता (दाएं)

International Women's Day: भारत समेत पुरी दुनिया में महिला सशक्तिकरण पर काफी जोर है. महिलाओं को आत्मसम्मान के साथ जीने के साथ-साथ वित्तीय रूप से सशक्त बनाया जा सके, इसके लिए कई पहलें की जा रही हैं. आज कई ऐसे प्लेटफॉर्म मौजूद हैं, जो महिलाओं को आगे बढ़ने का और आत्मनिर्भर होने का मौका दे रहे हैं. अपनी पहचान बनाने के लिए काम करना उस वक्त और मजेदार और सु​कूनदायक हो जाता है, जब वह आपका पुराना शौक हो. जब आपका शौक ही आपका प्रोफेशन बन जाए तो ​फिर शिकायत की गुंजाइश नहीं रह जाती है.

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हर्षिका पांड्या और सुष्मिता दत्ता भी दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपने शौक को अपनी कमाई का जरिया बना लिया और आज इससे काफी खुश भी हैं और संतुष्ट भी. गुजरात के सूरत की हर्षिका और पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से ताल्लुक रखने वाली सुष्मिता दोनों को ही टूव्हीलर चलाना बेहद पंसद है. अपने इसी शौक को आज उन्होंने अपना प्रोफेशन बना लिया और इसमें उनकी मदद की ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्टेशन सर्विस प्रोवाइडर ओला (Ola) ने.

ओला महिलाओं को अपने साथ जुड़ने और ड्राइवर पार्टनर बनने का मौका देती है. यानी महिलाएं भी ओला कैब ड्राइवर या बाइक ड्राइवर बन सकती हैं. ओला की इसी पहल से जुड़ गईं हर्षिका और सुष्मिता. फाइनेंशियल एक्सप्रेस हिंदी ने आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर इन दोनों महिलाओं से बात की और जाना कि कैसे इनका शौक इन्हें सशक्त बना रहा है...

कुछ अलग करने का था मन: ​हर्षिका

हर्षिका पांड्या 39 साल की हैं. वह ओला की पहली वुमन ड्राइवर पार्टनर और सूरत में अकेली महिला बाइक राइडर हैं. हर्षिका जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री रखती हैं. वह पहले NJ फाइनेंस में काम करती थीं. 9 साल कॉरपोरेट जॉब करने के बाद उन्हें कुछ अलग करने का मन हुआ. वह एक एंटरप्रेन्योर बनना चाहती थीं. हर्षिका बताती हैं कि उन्हें टूव्हीलर चलाना बहुत पंसद है.

ऐसे में जब उन्हें यह पता चला कि ओला महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ रही है तो उन्होंने अपने शौक को अपनी अर्निंग का जरिया बनाने का सोचा. हर्षिका को ओला की कैब सर्विस को लेकर जानकारी नहीं थी. एक दिन उन्होंने एक ऑटो पर ओला के बारे में पढ़ा तो उन्होंने ऑटो वाले से इस बारे में जानना चाहा. जब ऑटो वाले ने यह भी बताया कि ओला महिलाओं को भी ड्राइवर पार्टनर बनाती है और वे बाइक राइडर के तौर पर भी जुड़ सकती हैं तो तो उनके मन में भी ऐसा करने की इच्छा जागी और उन्होंने ओला से कॉन्टैक्ट किया. इसके बाद उन्होंने ओला पिक अप-ड्रॉप के बारे में सारी जानकारी हासिल की और ओला ने उन्हें ट्रेंड किया.

दिन मे 8-9 राइड

हर्षिका फरवरी 2019 में ओला से जुड़ी थीं. वह अपनी मर्जी और सहूलियत के हिसाब से एक दिन में 8—9 राइड करती हैं और बाकी के वक्त अपने परिवार और अन्य शौक व कामों को देती हैं.

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बनानी थी हाउसवाइफ से अलग पहचान: सुष्मिता

सुष्मिता दत्ता दुर्गापुर में अकेली महिला बाइक राइडर हैं. वह 35 साल की हैं और ओला से 6 माह पहले जुड़ी थीं. इससे पहले उनकी पहचान एक गृहिणी, पत्नी और मां की थी. सुष्मिता बताती हैं कि वह हाउसवाइफ से अलग अपनी एक पहचान बनाना चाहती थीं. इसके लिए क्या किया जाए, यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था. एक दिन वह अपने दोस्त से मिलीं, जो ओला के साथ जुड़कर कैब चलाता है. उससे उन्होंने पूछा कि क्या महिलाएं भी ओला के साथ ड्राइवर पार्टनर बन सकती हैं? जवाब हां में मिला और साथ ही सुष्मिता को समझ आ गया कि उन्हें अपनी अलग पहचान पाने के लिए क्या करना है. उसके बाद उन्होंने ओला से कॉन्टैक्ट किया और बन गईं ओला बाइक राइडर.

दिन में 4-5 घंटे करती हैं राइड

सुष्मिता दिन में सुबह और शाम मिलाकर 4-5 घंटे ओला बाइक चलाती हैं. सुष्मिता कहती हैं कि उनका यह शौक उनके अपने और बेटी के खर्चे चलाने के लिए काफी है. शुरुआती अनुभव कैसा रहा, इस सवाल के जवाब में सुष्मिता कहती हैं कि शुरुआत में इस काम के लिए अपने परिवार की नाराजगी झेलनी पड़ी लेकिन अब वह न केवल सम्मान और सराहना पा रही हैं बल्कि घर चलाने में अपने पति का साथ भी दे रही हैं.

वर्किंग ऑवर की फ्लेक्सिबिलिटी है सुविधाजनक

हर्षिका और सुष्मिता दोनों का कहना है कि ड्राइवर पार्टनर पहल महिलाओं के लिए काफी मददगार है, खासकर उनके लिए जो कम पढ़ी-लिखी हैं और ऑफिस जॉब नहीं कर सकती हैं. इसके अलावा यह पार्ट टाइम जॉब के तौर पर भी एक्स्ट्रा अर्निंग का जरिया बन रहा है.

बाइक पिकअप व ड्रॉप में वर्किंग आवर की फ्लेक्सिबिलिटी होना महिलाओं के लिए सहूलियत भरा है. वे अपनी सुविधानुसार काम के घंटे और वक्त चुन सकती हैं और जब मर्जी लॉग आउट कर सकती हैं. इससे उन्हें अन्य काम करने के लिए भी वक्त मिल जाता है. वे चाहें तो काम के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हैं, घर संभाल सकती हैं और बच्चों को टाइम दे सकती हैं.

केवल टूव्हीलर का करना पड़ा इन्वेस्टमेंट

ओला ड्राइवर पार्टनर बनने के लिए हर्षिका और सुष्मिता को केवल टूव्हीलर का इन्वेस्टमेंट करना पड़ा. अगर कोई ऐसा है, जिसके पास टूव्हीलर नहीं है लेकिन वह ओला बाइक राइडर बनना चाहता है तो किराए पर टूव्हीलर लेकर भी वह ऐसा कर सकता है. इसके लिए मंथली रेंट लगभग 3000 रुपये रहता है और बाइक का मेंटीनेंस कंपनी कराकर देगी. ओला ड्राइवर पार्टनर्स को टूव्हीलर में फ्यूल का खर्च खुद ही वहन करना होता है. ओला अपने ड्राइवर पार्टनर्स को हेल्थ इंश्योरेंस और एक्सीडेंटल इंश्योरेंस की सुविधा देती है. महिला ड्राइवर पार्टनर्स के लिए भी यह सुविधा उपलब्ध है. इसके अलावा ओला अपनी महिला बाइक राइडर्स की सेफ्टी का भी पूरा ध्यान रखती है.