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Karnataka New CM : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार (Photo : ANI)
Why Siddaramaiah won Karnataka CM Race: कर्नाटक में जबरदस्त चुनावी जीत हासिल करने के पांचवें दिन कांग्रेस ने राज्य के नए मुख्यमंत्री का नाम तय करने का मुश्किल काम भी पूरा कर लिया. कांग्रेस ने एलान किया है कि कर्नाटक के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एक बार फिर से राज्य की कमान संभालेंगे. जबकि कांग्रेस की एतिहासिक जीत में अहम भूमिका निभाने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार को उप-मुख्यमंत्री पद से संतोष करना होगा. इसके साथ ही वे राज्य में पार्टी अध्यक्ष भी बने रहेंगे. ऐसे क्या कारण हो सकते हैं, जिनके चलते राज्य के नए मुख्यमंत्री पद की रेस में 75 साल के सिद्धारमैया 61 साल के डीके शिवकुमार से आगे निकल गए?
सिद्धारमैया की जननेता की छवि
कर्नाटक की राजनीति के सबसे वरिष्ठ राजनेताओं में एक सिद्धरमैया अब से 40 साल पहले 1983 में पहली बार विधायक बने. तब से अब तक वे राज्य की राजनीति में लगातार सक्रिय रहे हैं. पिछड़ी कुरुबा जाति से ताल्लुक रखने वाले सिद्धारमैया को वंचित तबकों के हित में काम करने वाला नेता माना जाता है. कई जानकारों का मानना है कि कर्नाटक में इस वक्त सिर्फ तीन ही जननेता हैं - बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, जेडीएस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और कांग्रेस के सिद्धारमैया. कांग्रेस की जीत में सिद्धारमैया की अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और दलितों के समर्थक नेता की छवि की बड़ी भूमिका मानी जाती है. चुनाव के बाद कराए गए लोकनीति नेटवर्क और CSDS के सर्वेक्षण में शामिल सबसे ज्यादा 39 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया को अपनी पहली पसंद बताया था. जबकि उससे कुछ दिनों पहले इसी नेटवर्क द्वारा कराए गए एक और सर्वे में सीएम पद के लिए शिवकुमार को पहली पसंद बताने वाले लोग सिर्फ 4 फीसदी थे.
सिद्धारमैया का 'अहिंदा' समीकरण
सिद्धारमैया न सिर्फ कर्नाटक की आबादी में आठ फ़ीसद हिस्सेदारी रखने वाली अपनी 'कुरुबा' जाति के सर्वमान्य नेता हैं, बल्कि राज्य की सियासत में काफी अहमियत रखने वाले 'अहिंदा' समीकरण पर भी उनका सबसे ज्यादा प्रभाव है. दरअसल, इस समीकरण के आर्किटेक्ट भी सिद्धारमैया ही माने जाते हैं. 'अहिंदा' में अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग के मतदाता और दलित शामिल हैं. AHINDA शब्द कन्नड़ के तीन शब्दों से मिलकर बना है - अल्पसंख्यतारा (Alpasankhyatara), हिंदुलिदारु (Hindulida) और दलितारु (Dalitaru). कर्नाटक में दलितों, आदिवासियों और मुस्लिमों की आबादी मिलाकर 39 फीसदी है. इनके अलावा सिद्धारमैया की कुरबा जाति भी 7 फीसदी के आसपास है. कर्नाटक में कांग्रेस की मजबूत स्थिति में इस जातीय समीकरण की बड़ी भूमिका है, जिसे कांग्रेस किसी भी हाल में दांव पर लगाना नहीं चाहेगी.
गांवों, किसानों के बीच सिद्धारमैया की पकड़
कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों और किसानों पर सिद्धारमैया का काफी असर माना जाता है. देश के बड़े किसान नेता रहे प्रोफेसर एमडी नंजुंदास्वामी के कर्नाटक राज्य रैयत संघ का राज्य के किसानों पर जबरदस्त प्रभाव रहा है. सिद्धारमैया अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में प्रोफेसर नंजुंदास्वामी के साथ जुड़े रहे हैं. यही वजह है कि उन्हें किसानों और कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों की समस्याओं को बारीकी से समझने वाला नेता माना जाता है. कांग्रेस अगर अपने चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी को गरीब-किसान विरोधी और भ्रष्ट पूंजीपति समर्थक पार्टी बताने में सफल रही, तो उसका श्रेय काफी हद तक सिद्धारमैया की गरीब-पिछड़ा-वंचित और किसान समर्थक छवि को जाता है.
मुख्यमंत्री-वित्तमंत्री के तौर पर सिद्धारमैया की छवि
सिद्धारमैया 2013 से 2018 तक 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले कर्नाटक के दूसरे मुख्यमंत्री रहे हैं. उनसे पहले सिर्फ देवराज अर्स ने ही 1972 से 1978 के दौरान अपना कार्यकाल पूरा किया था. 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाने का श्रेय सिद्धारमैया को जाता है. उस वक्त मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्धारमैया ने अपनी सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग में अन्न भाग्य योजना को मंजूरी दी थी, जिसके तहत गरीब परिवारों को हर महीने 5 किलो चावल देना शुरू किया गया. बाद में उन्होंने इसे बढ़ाकर प्रति माह 7 किलो कर दिया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री के साथ-साथ कर्नाटक के वित्त मंत्री भी रहे हैं और 13 बार राज्य का बजट पेश कर चुके हैं. उनकी आर्थिक नीतियों को आमतौर पर गरीब-किसान-पिछड़ा समर्थक माना जाता है.
लोकसभा चुनाव पर नजर
माना जा रहा है कि सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी लोकप्रिय जननेता की छवि और विधानसभा चुनाव में बेहद सफल साबित हुए अहिंदा समीकरण का लाभ लेना चाहती है. अगर सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता, तो कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान होने की आशंका थी. नए मुख्यमंत्री का फैसला किए जाने के दौरान ऐसी अटकलें भी लगाई गईं कि कांग्रेस पहले दो साल सिद्धारमैया को और फिर तीन साल के लिए डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने के फॉर्मूले पर विचार कर रही है. इन चर्चाओं के पीछे भी यह दलील काम कर रही थी कि कांग्रेस अगला लोकसभा चुनाव सिद्धारमैया को मु्ख्यमंत्री बनाकर ही लड़ना चाहेगी.
डीके शिवकुमार से जुड़े कानूनी मामले
माना जा रहा है कि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया को तरजीह देने का फैसला करते वक्त उन कानूनी मामलों पर भी विचार किया होगा, जिनमें सीबीआई और ईडी जैसी केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां डीके शिवकुमार के खिलाफ जांच कर रही हैं. सितंबर 2019 में ईडी ने शिवकुमार को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया था और इस केस में उन्हें 50 दिन तक तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद मोदी सरकार की पहल पर राज्य के तत्कालीन डीजीपी प्रवीण सूद को जिस तरह ताबड़तोड़ सीबीआई चीफ बनाया गया, यह भी सबने देखा है. प्रवीण सूद वही अधिकारी हैं, जिन्हें डीके शिवकुमार ने कांग्रेस की सरकार बनने पर जेल भेजने का एलान किया था. वही अधिकारी अब शिवकुमार के खिलाफ जांच कर रही एक केंद्रीय एजेंसी के मुखिया हैं. जाहिर है, केंद्रीय एजेंसियों की इन लटकती तलवारों के साथ उन्हें इतने अहम राज्य की कमान सौंपना आसान नहीं था. खासतौर पर तब, जबकि कांग्रेस ने कर्नाटक के चुनाव में पिछली सरकार के कथित भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया था.
डीके शिवकुमार की अनदेखी नहीं
इन अड़चनों के बावजूद कांग्रेस अपने संकट मोचक कहे जाने वाले प्रदेश अध्यक्ष और राज्य की बेहद प्रभावशाली वोक्कालिगा जाति के बड़े नेता डीके शिवकुमार की अनदेखी नहीं कर सकती. यही वजह है कि उन्हें नई राज्य सरकार में एकमात्र उप-मुख्यमंत्री के तौर पर सिद्धारमैया के बाद दूसरी सबसे अहम भूमिका सौंपी जा रही है. चर्चा यह भी है कि उन्हें कई महत्वपूर्ण विभाग दिए जाएंगे. इसके साथ ही डीके शिवकुमार कर्नाटक के कांग्रेस अध्यक्ष भी बने रहेंगे. प्रदेश के कांग्रेस संगठन में नई जान फूंकने और विधानसभा चुनाव अभियान के संचालन का काम उन्होंने जिस सफलता के साथ किया है, उसे देखते हुए ऐसा किया जाना स्वाभाविक ही है. डीके शिवकुमार ने भी पार्टी और प्रदेश के हित में सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले को मंजूर करके कांग्रेस का अनुशासित सिपाही होने के अपने दावे को और मजबूत किया है. लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि दोनों दिग्गज नेताओं का यह तालमेल आगे भी जारी रहेगा या फिर कर्नाटक में भी राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसी स्थिति देखने को मिल सकती है?