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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने की आशंका के बीच भारत ने शांति की अपील की है.
Russia, Ukraine and India: पिछले करीब डेढ़ महीने से रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे विवाद के बाद भारत ने इस हफ्ते पहली बार आधिकारिक बयान जारी किया है. दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ने की आशंका के बीच भारत ने इस मसले पर सभी पक्षों से शांति की अपील की है और यूक्रेन के प्रभावित क्षेत्रों से एयर इंडिया की विशेष उड़ानों के जरिए फंसे भारतीयों को निकाला जा रहा है. रूस और यूक्रेन की बीच चल रहे तनाव पर भारत करीब से नजर रखे हुए हैं. भारत के दोनों ही देशों से गहरे संबंध है. रूस भारत का अहम रक्षा साझीदार है और यूक्रेन में भारत से बड़ी संख्या में बच्चे मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं.
रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध
भारत और रूस के बीच पिछले सत्तर वर्षों से मजबूत संबंध हैं और रक्षा क्षेत्र में रूस लंबे समय से अहम साझीदार रहा है. भारत अन्य देशों से भी हथियारों की खरीदारी करता है लेकिन 60-70 फीसदी सप्लाई डिफेंस इक्विपमेंट रूस से आते हैं. पीएम मोदी ने सिर्फ दो ही देशों के प्रमुखों के साथ अनौपचारिक मुलाकात की है- रूस व चीन और रूस भारत व चीन के बीच विवाद पर प्रमुख रणनीतिक किरदार के रूप में उभरा है. भारत के विदेश व रक्षा मंत्री अपने चीनी समकक्षों के साथ रूस में पिछले साल में बातचीत कर चुके हैं. मौजूदा वक्त में रूस का पश्चिमी देशों के साथ विवाद पर भारत की अहम चिंता ये है कि इससे रूस चीन के करीब हो सकता है जिससे भारत की दिक्कतें बढ़ सकती हैं.
वर्ष 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया था तो पश्चिमी देशों के रूख को लेकर रूस और चीन के बीच दूरिया घटी थी. तेल कीमतों के लुढ़कने से खपत को लेकर रूस चीन पर निर्भर हो गया लेकिन खास बात ये है कि रूस व चीन के बीच विशेष दोस्ताना संबंध नहीं है और चीन क्रीमिया को रूस के हिस्सा के रूप में मान्यता नहीं देता है तो रूस दक्षिणी चीन सागर पर चीन के दावे पर न्यूट्रल है. जब क्रीमिया पर रूस ने कब्जा किया था तो भारत ने इस मसले को लेकर चिंता जाहिर की थी लेकिन लेजिटमेट रसियन इंटेरेस्ट्स (रूस के हितों को लेकर की गई कार्रवाई) भी कहा. इस पर पुतिन ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह का आभार जताया था.
यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हजारों भारतीय
भारत की यूक्रेन से जुड़ाव की बात करें तो यूक्रेन में भारतीय बड़ी संख्या में रहते हैं जिसमें अधिकतर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे बच्चों की है. फंसे भारतीयों को बाहर निकालने के लिए क्यीव (यूक्रेन की राजधानी) में स्थित भारतीय दूतावास ने जानकारी जुटानी शुरू की है और सरकारी आकलन के मुताबिक वर्ष 2020 में यूक्रेन में 18 हजार भारतीय स्टूडेंट्स थे लेकिन कोरोना के चलते लॉकडाउन व ऑनलाइन क्लासेज के चलते यह संख्या कम हो सकती है.
रूस और यूक्रेन के बीच के विवाद को समझें
- पिछले साल दिसंबर 2021 के मध्य में रूस ने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को अपनी मांगों के बारे में बताया था. रूस पश्चिमी देशों से लिखित आश्वासन चाहता था कि नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) के पूर्व की तरफ न बढ़ें. इसके अलावा रूस ने पोलैंड व बाल्टिक राज्यों से नाटो की सेनाओं को हटाने और यूरोप से अमेरिकी नाभिकीय हथियार हटाने की मांग की थी. इन मांगों में सबसे अहम रहा कि यूक्रेन को कभी नाटो में शामिल होने की मंजूरी न दी जाए. अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इसे स्वीकार नहीं किया.
- न्यूयॉर्कर के एडिटर डेविड़ रैमनिक 1987-1991 के बीच वाशिंगटन पोस्ट करेस्पोंडेंट थे. उन्होंने अपनी पुस्तक Lenin’s Tomb: Last Days of the Soviet Empire में लिखा है कि लेनिन के लिए यूक्रेन को खोना रूस का सिर कटने जैसा है. पुतिन भी सोवियत संघ के विघटन को पिछली सदी की सबसे बड़ी त्रासदी कह चुके हैं और वह लगातार सोवियर संघ से अलग हुए देशों में रूस के प्रभाव को फिर से कायम रखने की कोशिश में हैं. पुतिन के मुताबिक रूस और यूक्रेन एक ही इतिहास और आध्यात्मिक विरासत साझा करते हैं.
- पिछली सदी के 90के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद नाटो का विस्तार पूर्व की तरफ हुआ और इसमें वे भी देश शामिल हुए जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे. रूस ने इसे खतरे के रूप में देखा. यूक्रेन अभी इसका हिस्सा तो नहीं है लेकिन यूक्रेन द्वारा नाटो देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास और अमेरिकी एंटी-टैंक मिसाइल्स जैसे हथियारों के हासिल करने से रूस सतर्क हो गया. पुतिन के मुताबिक नाटो रूस पर मिसाइल के हमले के लिए यूक्रेन का लॉन्चपैड के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. नाटो की वेबसाइट पर टारस कुजियो के लेख के मुताबिक मौजूदा संकट की सबसे बड़ी वजह ये है कि रूस वापस यूक्रेन को अपने प्रभाव में शामिल करना चाहता है.
- इस विवाद की एक वजह आर्थिक है क्योंकि रूस यूनियन का खर्च अपनी दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी यानी यूक्रेन के बिना नहीं उठा सकता है.
- रूस की भौगोलिक स्थिति भी इस विवाद का एक कारक है. रूस के बाद यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है. यूक्रेन के पास काला सागर के पास अहम पोत हैं और इसकी सीमा चार नाटो देशों से मिलती है. यूरोप की जरूरत का एक तिहाई नेचुरल गैस रूस सप्लाई करता है और एक प्रमुख पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुजरता है. ऐसे में यूक्रेन पर कब्जे से पाइपलाइन की सुरक्षा मजबूत होगी.
(इनपुट: इंडियन एक्सप्रेस)