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शास्त्री जी सादगी पसंद करते थे और उनकी यह आदत देश के प्रधानमंत्री जैसे अति उच्च पद पर जाकर भी बरकरार रही. (PTI)
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देश को 'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज 115वीं जयंती है. शास्त्री जी सादगी पसंद करते थे और उनकी यह आदत देश के प्रधानमंत्री जैसे पद पर जाकर भी बरकरार रही. उनकी खुद्दारी ने मिसाल कायम की और र्इमानदार तो वह इतने थे कि उन्होंने कभी भी प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें मिली हुई गाड़ी का निजी काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने अपने बेटे के गलत तरीके से प्रमोशन को भी रद्द करवा दिया था. आइए बताते हैं शास्त्री जी की ईमानदारी और खुद्दारी के ऐसे ही कुछ किस्से-
लोन लेकर खरीदी थी कार
प्रधानमंत्री बनने तक शास्त्री जी के पास न ही अपना घर था और न ही कार. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह उपलब्ध कराई गई कार का इस्तेमाल निजी कामों के लिए नहीं करते थे. इसी के चलते बच्चों के कहने पर उन्होंने लोन लेकर एक फिएट कार खरीदी. उस वक्त एक फिएट कार 12,000 रुपये में आती थी. शास्त्री जी का बैंक बैलेंस मात्र 7,000 रुपये था. उन्होंने कार ख़रीदने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से 5,000 रुपये का लोन लिया. एक साल बाद लोन चुकाने से पहले ही उनकी मौत हो गई. इसके बाद वह लोन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने चुकाया. शास्त्री जी के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने सरकार की ओर से लोन माफ करने की पेशकश की लेकिन ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया और उनकी मौत के चार साल बाद तक अपनी पेंशन से उस लोन को चुकाती रही.
जब 50 रु की बजाय 40 रु करवा दिया अपना आर्थिक खर्च
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपत राय ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य गरीब पृष्ठभूमि वाले स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक मदद देना था. इनमें शास्त्री जी भी थे. उन्हें घर चलाने के लिए सोसायटी की ओर से हर माह 50 रुपये मिलते थे. एक बार उन्होंने जेल से अपनी पत्नी ललिता को चिट्ठी लिखकर पूछा कि क्या उन्हें ये 50 रुपये समय से मिल रहे हैं और क्या इनमें गुजारा हो जाता है? इस पर उनकी पत्नी का जवाब आया कि ये पैसे उनके लिए काफी हैं. वह तो सिर्फ 40 रुपये खर्च कर रही हैं और हर महीने 10 रुपये बचा रही हैं. इसके बाद शास्त्री जी ने तुरंत सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी को चिट्ठी लिखी और कहा कि उनके परिवार का गुजारा 40 रुपये में हो जा रहा है, इसलिए उनकी आर्थिक मदद घटाकर 40 रुपये कर दी जाए और बाकी के 10 रुपये किसी और जरूरतमंद को दे दिए जाएं.
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जब बेटे का गलत तरीके से प्रमोशन करवा दिया रद्द
प्रधानमंत्री होने के बावजूद शास्त्री जी ने अपने बेटे के कॉलेज एडमिशन फॉर्म में अपने आपको प्रधानमंत्री न लिखकर गवर्मेंट सर्वेंट लिखा. उन्होंने कभी भी अपने निजी जीवन या परिवार के लिए अपने पद का इस्तेमाल नहीं किया. उनके बेटे ने एक आम इन्सान के बेटे की तरह खुद को इंप्लॉयमेंट एक्सचेंज में जॉब के लिए रजिस्टर करवाया था. यहां तक कि एक बार जब उनके बेटे को गलत तरह से प्रमोशन दे दिया गया तो शास्त्री जी ने खुद उस प्रमोशन को रद्द करवा दिया.
जब अमेरिका को ठहराया गलत
शास्त्री जी के समय में भारत में खाद्यान्न उत्पादन बहुत कम था. देश बहुत हद तक खाने के आयात पर निर्भर था, जो कि अमेरिका से होता था. उसके बावजूद 1965 में शास्त्री जी ने अमेरिका द्वारा वियतनाम में लड़ाई को गलत और आक्रामक करार दे दिया था. उनके बयान से नाराज होकर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत को खाने का निर्यात बंद कर दिया, जिसके चलते देश में भुखमरी के हालात उत्पन्न हो गए.
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महिला ड्राइवर नियुक्ति को किया संभव
जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में रहते हुए शास्त्री जी ने कई परिवर्तनकारी फैसले लिए. ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर के तौर पर वह देश में पहले इंसान थे, जिन्होंने ट्रांसपोर्टेशन में महिलाओं को ड्राइवर और कंडक्टर नियुक्त किए जाने की पैरवी की. इसके अलावा मिनिस्टर ऑफ पुलिस के तौर पर सबसे पहले उन्होंने ही भीड़ पर लाठी चार्ज की बजाय पानी इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. गृह मंत्री के तौर पर भ्रष्टाचार पर पहली कमेटी उन्होंने ही नियुक्त की थी.
शास्त्री नहीं है सरनेम
लाल बहादुर शास्त्री जन्म से वर्मा थे. लेकिन वह जाति प्रथा के घोर विरोधी थे, इसलिए उन्होंने कभी भी अपने नाम के साथ अपना सरनेम नहीं लगाया. उनके नाम के साथ लगा 'शास्त्री' उन्हें काशी विद्यापीठ द्वारा दी गई उपाधि है.