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Image: Loksabha TV
लोकसभा (Lok Sabha) में बुधवार को बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक पारित हो गया. इस विधेयक के जरिए सहकारी (को-ऑपरेटिव) बैंकों को रिजर्व बैंक के सुपरविजन में लाने का प्रस्ताव किया गया है. लोकसभा में इस विधेयक की वकालत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हम इस संशोधन को जमाकर्ताओं को प्रोटेक्ट करने के लिए लाने की कोशिश कर रहे हैं. बैंकों में दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा होने पर जमाकर्ताओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
वित्त मंत्री ने कहा कि 277 शहरी सहकारी बैंकों का वित्तीय स्टेटस कमजोर है. 105 सहकारी बैंक मिनिमम रेगुलेटरी कैपिटल जरूरत को पूरा करने में असमर्थ हैं. 47 बैंकों की नेटवर्थ निगेटिव है. 328 शहरी सहकारी बैंकों का ग्रॉस NPA रेशियो 15 फीसदी से भी अधिक है.
केन्द्र द्वारा टेक ओवर करने के लिए नहीं है संशोधन
सीतारमण ने यह भी कहा कि बिल सहकारी बैंकों को रेगुलेट नहीं करता है. संशोधन सहकारी बैंकों को केन्द्र सरकार द्वारा टेक ओवर कर लिए जाने को लेकर नहीं है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि किसी प्रावधान के जरिए रिजर्व बैंक को कुछ और पावर दिए जा रहे हैं. सीतारमण ने कहा, ‘‘यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि केंद्र सरकार सहकारी बैंकों पर निगरानी रखना चाहती है. कोविड-19 के समय में कई स्थितियां सामने आ रही हैं. जमाकर्ताओं की सुरक्षा बेहद जरूरी थी. कई सहकारी बैंकों में जमाकर्ता परेशानी का सामना कर रहे थे. हम नहीं चाहते थे कि पंजाब महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) जैसी स्थिति का सामना करना पड़े.
उन्होंने स्पष्ट किया कि इसके दायरे में केवल ऐसी ही सहकारी सोसाइटी आयेंगी जो बैंकिंग क्षेत्र में काम रही हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि राज्यों के सहकारिता कानूनों को नहीं छुआ गया है और प्रस्तावित कानून इन बैंकों में वैसा ही नियमन लाना चाहता है, जैसे दूसरे बैंकों पर लागू होते हैं. यह विधेयक भारतीय रिजर्व बैंक को अवश्यकता पड़ने पर सहकारी बैंकों के प्रबंधन में बदलाव करने का अधिकार देता है. इससे सहकारी बैंकों में अपना पैसा जमा करने वाले आम लोगों के हितों की रक्षा होगी. कृषि सहकारी समितियां या मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में काम करने वाली सहकारी समितियां इस विधेयक के दायरे में नहीं आयेंगी.