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Parliament Monsoon Season: अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद, निचले सदन को हंगामा बढ़ गया, जिसके चलते दोपहर 2 बजे तक के लिए सदन स्थगित कर दिया गया. (PTI)
Parliament Monsoon Season: देश के उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर में पिछले 80 दिनों से हिंसा जारी है. अब मणिपुर का मुद्दा सड़क से होकर ससंद तक पहुंच गया है. इस बीच, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. लोकसभा के नियमों के अनुसार, कम से कम 50 सांसदों को प्रस्ताव स्वीकार करना होता है. अगर ऐसा होता है तो स्पीकर चर्चा के लिए एक तारीख की घोषणा करेंगे, जो 10 दिनों के भीतर होनी है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा विपक्षी दलों द्वारा दायर अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद, निचले सदन को हंगामा बढ़ गया, जिसके चलते दोपहर 2 बजे तक के लिए सदन स्थगित कर दिया गया.
कांग्रेस का क्या है कहना?
मणिपुर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग को लेकर विपक्षी दलों का संसद में प्रदर्शन जारी है. इस बीच कांग्रेस ने भी पार्टी के संसदीय कार्यालय में अपने लोकसभा सांसदों की बैठक बुलाई और उन्हें आज संसद में उपस्थित रहने के लिए तीन लाइन का व्हिप जारी किया. समाचार एजेंसी एएनआई ने मंगलवार को लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के हवाले से कहा, “आज, यह निर्णय लिया गया है कि हमारे पास अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होगा, क्योंकि सरकार मणिपुर पर प्रधानमंत्री के साथ विस्तृत चर्चा करने की विपक्ष की मांग को स्वीकार नहीं कर रही है. उन्हें मणिपुर हिंसा पर बयान देना चाहिए क्योंकि वह संसद में हमारे नेता हैं.''
कांग्रेस अध्यक्ष का अमित शाह को जवाब
दूसरी तरफ, मंगलवार को लोकसभा ने विपक्षी दल के सदस्यों की नारेबाजी के बीच बहु-राज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित कर दिया, जो सदन में मणिपुर हिंसा पर चर्चा की मांग करते रहे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने दोनों सदनों के एलओपी को पत्र लिखकर कहा है कि सरकार मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है, और उनसे ऐसे संवेदनशील मामले के लिए अनुकूल माहौल बनाने का आग्रह किया है. संसद में अमित शाह के बयान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे ने ट्विटर पर एक पोस्ट लिखा. उन्होंने लिखा, “एक ही दिन में आदरणीय प्रधानमंत्री देश के विपक्षी दलों को अंग्रेज शासकों और आतंकवादी दल से जोड़ते हैं और उसी दिन गृहमंत्री भावनात्मक पत्र लिखकर विपक्ष से सकारात्मक रवैये की अपेक्षा करते हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष में समन्वय का अभाव वर्षों से दिख रहा था, अब यह खाई सत्तापक्ष के अंदर भी दिखने लगी है. इस पर प्रधानमंत्री द्वारा विपक्षी दलों को दिशाहीन बताना बेतुका ही नहीं बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण भी है. प्रधानमंत्री जी से हम सदन में आकर मणिपुर पर बयान देने का आग्रह कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि उनका ऐसा करना उनके सम्मान को ठेस पहुंचाता है. हमारी इस देश की जनता के प्रति प्रतिबद्धता है और हम इसके लिए हर कीमत देंगे. गृहमंत्री अमित शाह के पत्र पर मेरा जवाब.”
क्या मोदी सरकार को है इससे खतरा?
लोकसभा के स्पीकर द्वारा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद क्या होगा, ये सवाल सबके जेहन में चल रहा होगा. सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का अधिकार विपक्ष का होता है. अगर किसी भी सांसद के पास 50 सांसदों का समर्थन है तो वो अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है.1963 में पहली बार तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ इसे पेश किया गया था. 1999 में अटल विहारी वाजपेयी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव के कारण ही गिर गई थी. हालांकि विपक्ष के इस बार के अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार के उपर कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सरकार के पास बहुमत है. लोकसभा में एनडीए के पास 331 सांसद और कांग्रेस के सपोर्ट में करीब 143 सांसद हैं.