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दशहरे के मौके पर मैसूर के राजा भव्य रूप में पारंपरिक शोभायात्रा निकालते हैं जिसमें एक हाथी पर सोने के हौदे पर देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति रखी जाती है.
Many faces of Dussehra: नवरात्रि के अंतिम और दसवें दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है. इसे भगवान राम की रावण के ऊपर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है या इसे अन्य शब्दों में कहें तो बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में इस पर्व को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे दशहरा, दशरा, बिजोय दशोमी, विजयादशमी या दशैन के रूप में अपने विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है. यह पर्व कहीं 75 दिनों तक मनाया जाता है तो कहीं रावण का दहन नहीं होता है और कहीं मां दुर्गा की पूजा होती है. इस बार दशहरा 15 अक्टूबर को है.
गंगा दशहरा
स्वर्ग से धरती पर गंगा के अवतरण को गंगावतरण के रूप में मनाया जाता है. इसे मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल के हिंदू लोग मनाते हैं; जहां से होकर गंगा नदी गुजरती है. गंगा दशहरा को हरिद्वार, वाराणसी, रिषिकेश और पटना में भव्य रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर भक्त लोग आरती के लिए गंगा किनारे जुटते हैं. वे गंगा में डुबकी लगाते हैं.
मैसूर दशहरा
नवरात्रि के साथ 10 दिनों का स्टेट फेस्टिवल मैसूर दशहरा शुरू हो जाता है. मैसूर के राजा भव्य रूप में पारंपरिक शोभायात्रा निकालते हैं जिसमें एक हाथी पर सोने के हौदे पर देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति रखी जाती है. हाथी की इस शोभायात्रा को जंबो सवारी कहते हैं. मैसूर दशहरा की शुरुआत विजयपुर के राजाओं ने 15वीं सदी में की थी. इस त्योहार की दोबारा 17वीं सदी में शुरुआत हुई जब मैसूर के वोडेयारों ने अपना राज्य दक्षिण में स्थापित किया और महानवमी के जश्न की शुरुआत की.
गुजरात
नवरात्रि गुजरात के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है. इसमें भक्त व्रत रखते हैं, दिन में पूजा करते हैं, परंपरा निभाते हैं और विभिन्न रंगों के कपड़े पहनकर गरबा और डांडिया करते हैं. इसके अलावा भक्त अंबाजी मंदिर, चौमांडा माता मंदिर, देवी अशपुरा माता के भी दर्शन करते हैं. इस उत्सव पर देश भर के भक्त यहां पहुंचते हैं. इस मौके पर लोकगीत गाए जाते हैं और डांडिया व गरबा के मौके पर गायकों को आमंत्रित किया जाता है. यह कार्यक्रम देर रात तक जारी रहता है.
पश्चिम बंगाल
बंगाल में दुर्गा पूजा के 10वें दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है. इसे महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय के रूप में मनाया जाता है. विवाहित महिलाएं इस मौके पर देवी के सिंदूर चढ़ाती हैं और पान के पत्ते व मिठाइयों के साथ यह पर्व मनाया जाता है. इसके बाद महिलाएं एक-दूसरे के गालों पर सिंदूर लगाती हैं. हिंदूओं की शाक्त परंपार में दुर्गा पूजा महत्वपूर्ण त्योहार है.
दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली में दशहरा बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. रामलीला मैदान और लाल किले में 10 दिनों तक रामलीला होती है और फिर रावण दहन के साथ इसका समापन होता है. इस उत्सव की शुरुआत पुरानी दिल्ली से अजमेरी गेट के रामलीला मैदान तक रामलीला में काम करने वालों के परेड के साथ उत्सव की शुरुआत होती है. इस मौके पर हजारों की भीड़ जुटती है लेकिन इस बार कोरोना के चलते इस बार दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने सख्ती के साथ इस पर्व को मनाने की मंजूरी दी है.
कुल्लू
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है और दुनिया भर से 5 लाख से अधिक लोग इस मौके पर कुल्लू घाटी के धलपुर मैदान में जुटते हैं. यहां दशहरे की शुरुआत बढ़ते चांद के दसवें दिन से होती है यानी विजयादशमी के दिन और फिर सात दिनों तक यह जारी रहता है. इसकी शुरुआत 17वीं सदी से हुई जब रघुनाथ की मूर्ति को राजा जगत सिंह की गद्दी पर स्थापित की गई. इस मौके पर भगवान रघुनाथ की पूजा होती है और गांव वाले यहां स्थानीय देवताओं की मूर्ति लेकर जाते हैं.
छत्तीसगढ़
दशहरा का पर्व छत्तीसगढ़ में देवी दंतेश्वेरी का सूचक है और इसे यहां बस्तर दशहरा कहते हैं. बस्तर के समीप जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर में विशेष पूजा कार्यक्रम आयोजित होते हैं. बस्तर कुछ मामलों में खास है कि यहां दशहरा 75 दिनों तक मनाया जाता है औऱ रावन के पुतले का दहन नहीं किया जाता है. देश भर से लोग इस मौके पर यहां आते हैं. इस त्योहार की शुरुआत पट जात्रा से होती है जब जंगल से एक रथ बनाने के लिए लकड़ी को लाया जाता है और फिर इसका मूरिया दरबार के साथ अंत हो जाता है. इस दौरान बस्तर के महाराज दरबार में आम लोगों की समस्याओं को सुना जाता है.
तमिल नाडु
दक्षिणतम राज्य तमिलनाडु के तटीय इलाके कुलशेखरपट्टीनम में स्थित मुथरम्नन मंदिर दशहरा के दस दिनों के त्योहारी मौके पर एकदम जीवंत हो उठता है. इस मौके पर लाखों भक्त राजा, भिखारी, बंदर, शैतान या देवी के रूप में मंदिर के दर्शन करते हैं. भक्त कॉस्टूयम में भीख भी मांगते हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे उन्हें अहंकार पर जीत हासिल करने में मदद मिलेगी. इसके लिए वे अपने समस्याओं व बीमारियों से मुक्ति के लिए भी प्रार्थना करते हैं.