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67 फीसदी लोगों को तीनों कानून के बारे में जानकारी है.
तीन कृषि कानूनों का विरोध या समर्थन कर रहे आधे से अधिक किसानों को इसके बारे में जानकारी तक नहीं है. यह खुलासा गांव कनेक्शन द्वारा किए गए सर्वेक्षण में हुआ है. सर्वेक्षण के मुताबिक 25 फीसदी लोग इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन उसमें से 36 फीसदी लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं हैं. इसके अलावा जो 35 फीसदी लोग समर्थन कर रहे हैं, उनमें से 18 फीसदी लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है. यह सर्वेक्षण "नए कृषि कानूनों को लेकर भारतीय किसानों की जानकारी" विषय को लेकर किया गया है.
एमएसपी सिस्टम को अनिवार्य कानून बनाने की मांग
यह सर्वे देश के 16 राज्यों में 3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर के बीच आमने-सामने कराया गया था. गांव कनेक्शन द्वारा जारी बयान के मुताबिक इस सर्वे के लिए 5022 किसानों से बातचीत कर उनकी राय ली गई है. सर्वे की रिपोर्ट The Rural Report 2: The Indian Farmer's Perception of the New Agri Laws'के मुताबिक नए कृषि कानूनों को लेकर 57 फीसदी किसानों को सबसे बड़ा भय इस बात का है कि अब उन्हें खुले बाजार में अपनी फसल को कम दाम में बेचने को मजबूर होना पड़ेगा जबकि 33 फीसदी किसानों को इस बात का डर है कि सरकार न्यूनतम समर्थन राशि (MSP)सिस्टम को खत्म कर देगी. 59 फीसदी किसान चाहते हैं कि एमएसपी सिस्टम को देश भर में अनिवार्य कानून बनाया जाए.
छोटे किसान कानून के समर्थन में
मध्यम और बड़े किसानों (जिनके पास 5 एकड़ से अधिक जमीन है) की तुलना में सीमांत और छोटे किसान (जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन है) कृषि बिल के समर्थन में अधिक है. कृषि बिल का विरोध कर रहे 52 फीसदी लोगों में करीब 44 फीसदी लोगों का मानना है कि मोदी सरकार किसानों का समर्थक कहा और 28 फीसदी लोगों ने विरोधी. ऐसे ही एक अन्य सवाल पर 35 फीसदी किसानों ने कहा कि मोदी सरकार किसानों के समर्थन में है जबकि 20 फीसदी लोगों का मानना है कि इन कानूनों से कॉरपोरेट कंपनियों का फायदा होगा.
ये हैं तीनों प्रमुख कृषि कानून
पिछले मानसून सत्र के दौरान तीन नए कृषि बिल लाए गए थे जो 27 सितंबर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की मंजूरी के बाद कानून बन गए हैं.
- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020, के तहत किसान अपनी फसल को मंडी के बाहर भी बाजार में बेच सकता है.
- फार्मर्स (इंपॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस एश्योरेंस एंड सर्विसेज एक्ट, 2020 के मुताबिक किसानों के पास यह अधिकार हो गया है कि वह कृषि सेक्टर की कंपनियों से फसल की बुवाई से पहले अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार कांट्रैक्ट कर सकता है.
- आवश्यक वस्तु (संशोधित) अधिनियम, 2020 के तहत अनाज, दाल, तिहलहन, प्याज और आलू को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से निकाल दिया गया है और इनके भंडारण को लेकर अधिकतम सीमा भी हटा दी गई है. अभी तक इन्हें सीमा से अधिक भंडारण करने पर सजा का प्रावधान था.
67% लोगों को तीनों कानून के बारे में जानकारी
नए कृषि कानूनों को लेकर कई किसान और किसानों के संगठन विरोध कर रहे हैं. गांव कनेक्शन के सर्वेक्षण में पाया गया कि 67 फीसदी लोगों को तीनों कानून के बारे में पता है. इसके अलावा इन कानूनों को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बारे में भी दो तिहाई किसानों को जानकारी है. इन विरोध प्रदर्शनों के बारे में सबसे अधिक उत्तर-पश्चिम क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश) के किसान (91 फीसदी) लोग जानते हैं. सबसे कम जानकारी पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के किसानों को है, करीब 46 फीसदी.
विरोध और समर्थन करने वाले किसानों के नजरिए
नए कृषि कानूनों के समर्थन में जो किसान हैं, उनका मानना है कि इससे उन्हें अपनी फसलों को देश भर में कहीं भी बेचने की छूट रहेगी. वहीं, दूसरी ओर इन कानूनों का विरोध कर रहे किसानों का मानना है कि इससे उन्हें खुले बाजार में अपनी फसल को कम दाम में बेचने को मजबूर होना पड़ेगा.
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