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M S Swaminathan passes away : महान कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन का चेन्नई में 98 साल की उम्र में निधन हो गया. (File Photo: PTI)
Father of India's Green Revolution MS Swaminathan passes away : भारत में हरित क्रांति के जनक प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन नहीं रहे. देश के महान कृषि वैज्ञानिक ने गुरुवार को 98 साल की उम्र में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में आखिरी सांस ली. कृषि उत्पादन में क्रांतिकारी सुधार लाकर देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में एम एस स्वामीनाथन की अगुवाई में हुई हरित क्रांति का बड़ा योगदान माना जाता है. प्रोफेसर स्वामीनाथन की पहल और मार्गदर्शन के तहत 1960 और 1970 के दशक के दौरान देश में अनाज की ऐसी किस्मों का विकास किया गया, जिनसे उपज में भारी बढ़ोतरी हुई. इससे न सिर्फ भोजन के मामले में भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म हुई, बल्कि किसानों की आय में भी सुधार आया.
किसानों के हितों के सबसे बड़े पैरोकार
देश के तमाम किसान नेता किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग बार-बार उठाते हैं, उसका सबसे बेहतर फॉर्मूला भी स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों पर ही आधारित है. दरअसल, प्रोफेसर स्वामीनाथन को 2004 में किसानों की समस्याओं पर विचार करके उनका समाधान सुझाने के लिए गठित नेशनल कमीशन ऑन फॉर्मर्स का चेयरमैन बनाया गया था. इसी कमीशन के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने 2006 में अपनी वो मशहूर सिफारिश सरकार को सौंपी थीं, जिसमें किसानों को उनकी लागत के मुकाबले कम से कम 50 फीसदी ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने का सुझाव दिया गया था.
कृषि क्षेत्र के विकास के लिए समर्पित जीवन
प्रोफेसर स्वामीनाथन ने अपने लंबे और बेहद सम्मानित करियर के दौरान देश के कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई अहम जिम्मेदारियां निभाईं. सन 1961 से 1972 के दौरान वे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute - IARI) के डायरेक्टर रहे. इसके बाद 1972 से 1979 तक वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के डायरेक्टर जनरल और भारत सरकार के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव रहे. इसके अलावा 1979 से 1980 तक वे कृषि मंत्रालय के प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी रहे. 1960 और 1970 के इन्हीं दो दशकों के दौरान भारत के कृषि उत्पादन में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी का श्रेय स्वामीनाथन की उस रणनीति को दिया जाता है, जो सारी दुनिया में हरित क्रांति के नाम से मशहूर है. प्रोफेसर स्वामीनाथन ने 1980 से 1982 तक योजना आयोग (Planning Commission) के कार्यकारी उपाध्यक्ष और सदस्य (कृषि एवं विज्ञान) के तौर पर काम किया. एक कृषि वैज्ञानिक के तौर पर स्वामीनाथ की प्रतिष्ठा सारी दुनिया में रही है. 1982 से 1988 तक उन्होंने इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर जनरल के तौर पर चावल के उत्पादन जुड़ी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च का मार्गदर्शन किया.
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सारी दुनिया में हुआ प्रो स्वामीनाथन का सम्मान
टाइम मैगजीन ने प्रोफेसर स्वामीनाथन का नाम 20वीं सदी के दौरान एशिया के 20 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था. यूनाइटेड नेशन्स एनवायर्नमेंट प्रोग्राम (United Nations Environment Programme) ने ग्रीन रिवोल्यूशन का नेतृत्व करने के लिए प्रोफेसर स्वामीनाथन को 'फादर ऑफ इकनॉमिक इकोलॉजी' कहकर सम्मानित किया था. 1971 में उन्हें प्रतिष्ठित रैमन मैगसैसे अवॉर्ड (Ramon Magsaysay Award) भी दिया गया था. 1986 में उन्हें अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवॉर्ड और 1987 में पहला वर्ल्ड फूड प्राइज भी दिया गया था. उन्होंने इन पुरस्कारों से मिली राशि का इस्तेमाल चेन्नई में एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना करने में किया, जिससे कृषि क्षेत्र के विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का पता चलता है. सन 2000 में उन्हें यूनेस्को की तरफ से महात्मा गांधी पुरस्कार दिया गया. इसके अलावा भारत सरकार उन्हें 1967 में पद्मश्री, 1972 में पद्म भूषण और 1989 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित कर चुकी है. प्रोफेसर स्वामीनाथन के परिवार में उनकी तीन बेटियां - सौम्या स्वामीनाथन, मधुरा स्वामीनाथन और नित्या स्वामीनाथन हैं. उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन का 2022 में निधन हो चुका है.