scorecardresearch

National Girl Child Day 2024: लड़कियों के लिए शिक्षा ऐसी हो, जो उनकी गरिमा, योग्यता और अवसर के 3 मानदंडों को पूरा करे

Education System for Girls: स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र का निर्माण हो, मानसिक शक्ति को बढ़ाए, बुद्धि का विस्तार हो ताकि व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके.

Education System for Girls: स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र का निर्माण हो, मानसिक शक्ति को बढ़ाए, बुद्धि का विस्तार हो ताकि व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके.

author-image
guest
New Update
National Girl Child Day

National Girl Child Day: लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाले कई कार्यक्रम चल रहे हैं. (File Image)

National Girl Child Day: स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि हम ऐसी शिक्षा (Education System) चाहते हैं जिससे चरित्र का निर्माण हो, मानसिक शक्ति को बढ़ाए, बुद्धि का विस्तार हो ताकि व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके. भारत में लड़कियां अभी भी अवसर की तलाश में हैं, ताकि वे अपने पैर जमा सकें. उन्हें शिक्षित करना ही काफी नहीं है; बल्कि ऐसी शिक्षा देनी चाहिए, जो उन्हें हर बाधाओं को तोड़ने, सामाजिक रीति-रिवाजों को चुनौती देने, अपने जीवन के बारे में जानकारीपूर्ण निर्णय लेने और परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक बनने में सक्षम कर सके.

शिक्षा के माध्यम से लड़कियों को सशक्त बनाना, किसी भी राष्ट्र के भविष्य का एक रणनीतिक निवेश है, जिसमें लड़कियां बड़े पैमाने पर अपने परिवारों और समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास में सक्रिय योगदान देती हैं. इसके लिए पारंपरिक स्कूली शिक्षा प्रतिमानों से आगे बढ़ने की जरूरत है, ऐसा आह्वान किया गया है, ताकि लड़कियों की सशक्तिकरण और राष्ट्रीय उन्नति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को हल किया जा सके.

शिक्षा को शैक्षणिक उपलब्धियों से आगे बढ़ने की जरूरत 

Advertisment

लड़कियों की शिक्षा (Girls Education) और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाले कई कार्यक्रम चल रहे हैं. सरकार ने छात्रवृत्ति, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट (बुनियादी ढांचे के विकास) और पॉलिसी फ्रेमवर्क (नीतिगत ढांचे) को प्रस्तुत किया है, जबकि सिविल सोसायटी (नागरिक समाज) विभिन्न पहलों पर काम कर रहा है - स्कूल में छात्र नामांकन और शिक्षा के फायदे से लेकर शैक्षिक ढांचे और परिष्कृत सरकारी छात्रवृत्ति प्रणाली, जीवन कौशल, मानवाधिकार जागरूकता, डिजिटल समावेशन, रोजगार क्षमता निर्माण, पोषण, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य क्षेत्र.

हालांकि, जेंडर बेस्ड (लिंग-आधारित) भेदभाव और हिंसा, बाल विवाह और आर्थिक बाधाएं इन पहलों को वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने से रोकती हैं. स्कूल प्रणालीगत सुधारों और जन जागरूकता के माध्यम से लड़कियों की समान मर्यादा और शैक्षणिक उपलब्धियों पर जोर दिया जाता है, लेकिन वहां उनके भविष्य को आकार देने वाले लाइफलॉन्ग स्कील्स (आजीवन कौशल) के निर्माण पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है.

एंड-टू-एंड समाधानों को लक्षित करके, 21वीं सदी के वर्कप्लेस (कार्यस्थल) का निर्माण, कैरियर योजना, तकनीकी कौशल प्रशिक्षण, डिजिटल समावेशन, वित्तीय समावेशन और क्रेडिट के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित कर, हम लड़कियों के बीच आत्म-विश्वास, गंभीर मामलों में विचार करने और निर्णय लेने के कौशल को बढ़ा सकते हैं. 

इसे लाइफ स्कील्स (जीवन कौशल) और एस्पिरेशंस (आकांक्षाओं) की एक सामान्य समीक्षा करने भर से ही पूरा नहीं किया जा सकता, बल्कि पीस बिल्डिंग (शांति स्थापित कर), करुणा और नैतिकता में अंतर्निहित मानव क्षमताओं के माध्यम से मजबूत बनाया जा सकता है. 

पर्सनल एंड इंटरपर्सनल ट्रांसफॉर्मेशन

लड़कियां ऐसे वातावरण में रहती हैं, जिसका दूरगामी प्रभाव हो सकता है. जीएसएसएस फरात में सातवीं कक्षा की शांत दिखनेवाली छात्रा कनिका ने पीरामल फाउंडेशन की एक सामाजिक भावनात्मक शिक्षण पहल 'खुशियों का गुल्लक' के तहत कक्षा से परे खुद को अभिव्यक्त करना सीखा है. अपनी भावनाओं को पहचानकर और उन्हें नियंत्रित करके, एक नई अभिव्यक्ति का संचार हुआ, जिससे उसके व्यक्तित्व में समग्र विकास और सुधार आया. 

लड़कियों के शिक्षा कार्यक्रमों को व्यक्तिगत स्तर पर, परिवारों और दोस्तों को पारस्परिक स्तर पर, और समुदायों, फ्रंटलाइन वर्कर्स, सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशंस (नागरिक समाज संगठनों) को व्यापक स्तर पर शामिल करने की आवश्यकता है. इससे सूचना और सेवाओं की मांग बढ़ सकती है, निगोशीएशन एंड  डिसिश़न मेकिंग (व्यवहारिक और निर्णय लेने) में सुधार हो सकता है, साथ ही लैंगिक समानता वाली सकारात्मक भूमिकाओं को बढ़ावा मिल सकता है और लैंगिक अनुकूल नीतियों और प्रणालियों का विस्तार हो सकता है.

स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने में स्कूल की भूमिका

स्कूली शिक्षा में प्रजनन स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण पर व्यापक और उम्र-अनुकूल शिक्षा लड़कियों को उनके स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए तैयार कर सकती है. यह शिक्षा स्कूली पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जा सकती है और कम्युनिटी आउटरीच प्रोग्राम (समुदाय संपर्क  कार्यक्रमों) द्वारा पूरक बनाया जा सकता है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुसार जेंडर इन्क्लुजन फंड (लिंग-समावेशन निधि) के तहत सशक्त स्कूल प्रबंधन समितियां स्कूल से संबंधित लिंग-आधारित हिंसा हॉटस्पॉट और परिवहन, स्वच्छता और स्वच्छता तक भेदभावपूर्ण पहुंच की बाधाओं को खत्म करने के लिए स्कूल परिसरों का ऑडिट करा सकती हैं. इन ऑडिट प्रक्रिया में किशोर लड़कियों और लड़कों को शामिल करने से समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ सकती है, जिम्मेदारी को बढ़ावा मिल सकता है और समस्या-समाधान कौशल (प्रॉब्लम सॉल्विंग स्कील्स ) पैदा हो सकता है.

परिवर्तन के प्रतिरोधों को हटाने के लिए रिवर्स-डिस्कवरी सीखना

जमीनी स्तर पर जो अनुभव हैं, वहां अक्सर लिंग आधारित मानदंडों और शक्ति गतिशीलता को खत्म करने के उद्देश्य से (जेंडर राइट्स) लिंग अधिकार-आधारित स्कूली शिक्षा पहल के प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. इसलिए, कार्यक्रमों के लिए अधिक स्कूल फ्रेंडली (स्कूल-अनुकूल), सूक्ष्म और क्रिएटिव अप्रोच (रचनात्मक दृष्टिकोण) अपनाना आवश्यक है.

पितृसत्ता, लिंग-आधारित भेदभाव और स्कूल के वातावरण में हिंसा के दृष्टिकोण अक्सर विफल हो जाते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि बदलाव को अपनाने से पहले हितधारकों (स्टैकहोल्डर्स) को अधूरे अधिकारों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है. दूसरी ओर, एक रिवर्स डिस्कवरी परिवर्तन मॉडल परिवर्तन की अव्यक्त इच्छा को पहचानता है और सोक्रेटिक डॉयलॉग्स (सुकराती संवाद) जैसी इंटरैक्टिव तकनीकों का उपयोग करके इसे सुविधाजनक बना सकता है.

सौंदर्य संबंधी साक्षरता, शारीरिक साक्षरता और प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग (परियोजना-आधारित शिक्षा) को बढ़ावा देने के लिए लिंग, जाति, विश्वास, सामाजिक स्थिति, क्षमता, भाषा, रूप और भूगोल से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक भागीदारी की आवश्यकता होती है और यह गहरे परिवर्तन लाने में काफी मदद कर सकता है.

हार्नेसिंग पीयर सपोर्ट एंड टेक्नोलॉजी

हाल ही में जारी 'एएसईआर - बियॉन्ड बेसिक्स' के अध्ययनों ने किशोर शिक्षा में अवसरों का पता लगाया है, जो उनके सहयोगियों के समर्थन और डिजिटल अनुभव का उपयोग करती हैं. ओडिशा में, गांव में स्थित सामुदायिक शिक्षण केंद्र से किशोर लड़कियों के एक समूह ने अपने दोस्तों के साथ औपचारिक रूप से शॉर्ट टर्म (अल्पकालिक) इलेक्ट्रिकल कोर्स पूरा किया, लेकिन उनमें से कई शाइनिंग रोल मॉडल के रूप में उभरे हैं, जो इलेक्ट्रीशियन के रूप में अब पैसे कमा रहे हैं. यह एसटीईएम शिक्षा में लैंगिक बाधाओं का मुकाबला करने और काम के अवसर पैदा करने की सामूहिक शक्ति पर प्रकाश डालता है. शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, विशेष रूप से दूरदराज और वंचित भौगोलिक क्षेत्रों में, इस अंतराल को पाट सकता है और लड़कियों को समग्र शैक्षिक संसाधनों तक पहुंच प्रदान कर सकता है.

मल्टी-फैसटिड एंड टू एंड सॉल्यूशंस 

इसलिए गर्ल्स एजुकेशन प्रोग्राम (लड़कियों के शिक्षा कार्यक्रमों) के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो अकेडेमिक्स (शिक्षाविदों) से परे हो, जिसमें केंद्र में स्कूल के साथ लड़कियों की संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हो, और जो सदियों पुरानी बाधाओं को तोड़ने के लिए विघटनकारी तरीकों को अपनाता हो. यह बहुआयामी दृष्टिकोण एक लड़की की क्षमता को आकार देते हुए, व्यक्तिगत से सामाजिक स्तर तक बदलाव लाते हुए समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा.

जब लड़कियां आगे बढ़ती हैं, तो सामाजिक चुनौतियों का अंतर-पीढ़ीगत चक्र समाप्त हो जाता है. जब लड़कियां सीखती हैं और आकांक्षा रखती हैं, तो वे देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने में सक्षम हो जाती हैं. यह केवल स्कूली कक्षाओं तक पहुंच प्रदान करने के बारे में नहीं है; यह समग्र शिक्षा के माहौल को बढ़ावा देने के बारे में है, जो जिज्ञासा को बढ़ावा देता है, कौशल का निर्माण करता है, और लड़कियों को लीडर्स (नेता) और बदलाव लाने में उन्हें सशक्त बनाता है, जो अधिक समावेशी भारत की वकालत करते हैं.

लेखक: डॉ स्वाति पीरामल, वाइस चेयरपर्सन - पीरामल ग्रुप और मोनल जयाराम, डायरेक्टर - पीरामल फाउंडेशन

National Girl Child Day Education Systrem Girls Education