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निर्मला सीतारमन ने कहा कि यूएस जैसी मजबूत अर्थव्यवस्थाओं के साथ समझौते जितनी जल्दी होंगे, हमारे लिए उतना अच्छा होगा. (Express Photo)
जैसे-जैसे 9 जुलाई की समय सीमा नजदीक आ रही है, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका के दंडात्मक जवाबी शुल्क से बचा जा सके, सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ बिना किसी झिझक के समझौते की ओर इशारा किया है. लेकिन उसने भारत के किसानों और पशुपालकों के सर्वोत्तम हित में स्पष्ट रूप से अपनी सीमाएं तय करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है.
पिछले सप्ताह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बयान दिया था कि भारत के साथ एक इंटरिम द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA), अमेरिका के लिए भारतीय बाजार खोल देगा. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन (Nirmala Sitharaman) ने कहा कि हां, हम एक समझौता करना चाहेंगे, एक बड़ा, अच्छा, शानदार समझौता; क्यों नहीं?
फाइनेंशियल एक्सप्रेस के साथ बातचीत में, सीतारमन ने कहा कि जहां हम खड़े हैं और हमारे विकास लक्ष्यों और 2047 तक विकसित भारत बनने की हमारी महत्वाकांक्षा को देखते हुए, ऐसी मजबूत अर्थव्यवस्थाओं के साथ समझौते जितनी जल्दी होंगे, हमारे लिए उतना ही अच्छा होगा. वित्त मंत्री के अनुसार, कृषि और डेयरी क्षेत्र "बहुत बड़ी लाल रेखाएं" रहे हैं, जहां बीटीए बातचीत के दौरान बेहद सतर्कता बरती गई है.
निजी निवेश और क्षमता विस्तार
निजी क्षेत्र द्वारा निवेश में कथित गिरावट पर, उन्होंने कहा कि चीजें बेहतर हो रही हैं. कम से कम पिछले छह महीनों में, यह साफ दिख रहा है कि निजी निवेश और क्षमता विस्तार हो रहा है.निश्चित रूप से निजी कंपनियों के पास सरप्लस कैश है, और वे शायद पैसिव इनकम कर रही हैं. लेकिन बदलाव के संकेत स्पष्ट हैं.
अर्बन स्लोडाउन पर क्या है योजना
जब पूछा गया कि अर्बन स्लोडाउन को रिवर्स करने के लिए सरकार क्या योजना बना रही है, तो निर्मला सीतारमन ने कहा कि स्थिति में निश्चित रूप से सुधार हो रहा है. उन्होंने कहा कि अप्रैल से, (आयकर राहतों की वजह से) कंज्यूमर्स के सेंटीमेंट में सुधार के स्पष्ट संकेत दिख रहे हैं.
बैंकों की मजबूती पर फोकस
सीतारमन ने अर्थव्यवस्था को संरचनात्मक बढ़ावा देने के लिए जल्द ही शुरू किए जाने वाले "दूसरी पीढ़ी के सुधारों" की जानकारी दी. इनमें बैंकों की स्थिति सुधारने और परमाणु ऊर्जा में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने जैसे कदम शामिल हैं. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि 8 साल पुराने व्यापक अप्रत्यक्ष कर, वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दरों और श्रेणियों में पुनर्गठन के हिस्से के रूप में औसत GST दर मौजूदा स्तरों से कम हो सकती है.
शुक्रवार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों के साथ प्रदर्शन समीक्षा बैठक के बाद, सीतारमन ने स्वीकार किया कि उनके जमा दरें (CASA) पहले की तरह तेजी से नहीं बढ़ रही हैं. उन्होंने कहा कि बैंक इस पर सुधार के लिए कुछ कदम उठाएंगे. बैंकर्स के सामने एक "संतुलन बनाने" की चुनौती है, जहां लोग चाहते हैं कि लोन सस्ता हो और डिपॉजिट पर बेहतर रिटर्न मिले.
उन्होंने कहा कि हालांकि बैंक फंड जुटाने के लिए बाजार का रुख कर सकते हैं, लेकिन CASA (करंट अकाउंट और सेविंग्स अकाउंट) चीप कैपिटल सोर्स था. साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि चुनौती इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि रिटेल बचत बड़ी तेजी से शेयर बाजारों की ओर जा रही है.
व्यापारिक निर्यात को अतिरिक्त समर्थन
उन्होंने व्यापारिक निर्यात को अतिरिक्त समर्थन देने की आवश्यकता पर जोर दिया, यह बताते हुए कि एक्सपोर्टेड प्रोडक्ट्स में शामिल टैक्स की मात्रा को अभी पूरी तरह से न्यूट्रलाइज्ड नहीं किया गया है, क्योंकि कुछ राज्य और स्थानीय शुल्क शामिल रहते हैं.
उन्होंने कहा कि लैंड एंड एसेट मोनेटाइजेशन के अलावा हम रिफॉर्म के अलग अलग डाइमेंशन पर काम कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि 3 लेबर कोड को वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं है, जिन पर राज्य सक्रियता से कामकर रहे हैं.
औसत GST दर कम करने पर हो रहा है काम
उन्होंने कहा कि GST काउंसिल में एकमत से "बहुत सरल और पालन करने में आसान" टैक्स सिस्टम बनाने का समय आ गया है. उम्मीद है कि औसत GST दर कम होगी, और हम इस पर काम कर रहे हैं. अगर दरें काफी कम हों तो रेवेन्यू बढ़ने की संभावना रहती है, और इससे विस्तार होता है, जो कि अर्थशास्त्र में एक सामान्य धारणा है. कई देशों में जिन्होंने पिछले दशकों में GST/VAT प्रणाली को अपनाया, उनकी शुरुआती दरें भारत से कम थीं, और कुछ ने बाद में बिना रेवेन्यू पर असर डाले दरों को और कम कर दिया.
मंत्री के बयान से संकेत मिलता है कि मजबूत GST रेवेन्यू के साथ, बार-बार उठने वाली औसत GST दर को रेवेन्यू न्यूट्रल रेट (15%) तक बढ़ाने की मांग अब शायद आगे नहीं बढ़ेगी, और दरों को आम तौर पर कम ही किया जा सकता है. यह अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा कंजम्पशन बूस्टर साबित हो सकता है. वित्त मंत्री ने सभी राज्यों को निवेश माहौल को और बेहतर बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.
एनर्जी एफिशिएंसी बढ़ाने पर जोर
एनर्जी एफिशिएंसी के लिए उठाए गए एक बड़े कदम के बारे में उन्होंने कहा कि छोटे, मध्यम और छोटे मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर स्थापित करने की योजना बनाई गई है. भारत को अपनी बुनियादी ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, जो तेजी से बढ़ती पावर डिमांड को पूरा करने के लिए कोयला आधारित थर्मल पावर पर फिर से जोर देने के संदर्भ में था. सोलर और विंड हमेशा एक अतिरिक्त विकल्प हो सकते हैं. न्यूक्लियर पावर का काम तेजी से पूरा हो रहा है. इसके लिए कानून में भी संशोधन करना होगा, जो जल्द ही होगा.
(By - Prasanta Sahu, K.G. Narendranath)